17-Jul-2013 09:00 AM
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विश्व की प्राचीनतम सभ्यता वाला देश मिस्र एक बार फिर आंतरिक समस्याओं से जूझ रहा है। राष्ट्रपति मोहम्मद मुर्सी को अपदस्थ किया जा चुका है और उनके समर्थकों तथा विरोधियों के बीच खूनी संघर्ष चल रहा है। सेना हमेशा की तरह मनमानी पर उतारू है। सैनिक आम नागरिकों पर गोली चला रहे हैं और सेना के इशारे पर मिस्र के मुख्य न्यायाधीश अदली मंसूर को अंतरिम राष्ट्रपति के रूप में शपथ दिला दी गई है।
मोहम्मद मुर्सी दो वर्ष पूर्व ही मिस्र के राष्ट्रपति चुने गए थे और उन्होंने अपनी सरकार का गठन किया था। लेकिन आज वे नजरबंद हैं। दरअसल मुर्सी के खिलाफ माहौल पिछले वर्ष ही बनना शुरू हो गया था जब लगभग एक वर्ष पूर्व संसद में एक विशेष कानून बनाकर राष्ट्रपति को असीम शक्तियां प्रदान कर दी गई थीं। इन शक्तियों के बाद मुर्सी तानाशाह जैसा व्यवहार करने लगे। मुर्सी की विदाई में सेना का बड़ा योगदान है। मुर्सी सरकार को बर्खास्त करने में नागरिकों ने सहयोग किया। सेना ने संविधान स्थगित करने और नए संविधान के तहत चुनाव कराने की घोषणा की। अब मुर्सी अपने घर में ही नजरबंद हैं और सेना ने नया संविधान बनाने की बात कही हैं। विशेष तथ्य यह है कि सेना की गतिविधियों के चलते मुस्लिम ब्रदरहुड पर भी पाबंदी लगी है। मुस्लिम ब्रदरहुड अभियान ने मुर्सी सरकार की बर्खास्तगी को तख्ता पलट की संज्ञा दी है। समझा जाता है कि मुस्लिम ब्रदरहुड को मुर्सी ने सह देकर रखी हुई थी अब मुर्सी विरोधी कह रहे हैं कि उन्हें मुर्सी और ब्रदरहुड से निजात मिल गई है। नवंबर 2012 में जब एक बार फिर मुर्सी के खिलाफ जनता में असंतोष उभर आया था तो लगा था कि मिस्र में हालात वैसे ही हो जाएंगे। जून माह के अंत में संसद द्वारा जल्दबाजी में तैयार किए गए संविधान के मसौदे को मंजूरी दिए जाने के बाद जनता का विरोध बढ़ गया। इसके बाद सेना हरकत में आई और अंतत: मुर्सी को जाना पड़ा। मुर्सी के समर्थकों को नजरबंद कर दिया गया है और सेना सारे देश में तलाश-तलाश कर मुर्सी समर्थकों को कुचलने में लगी हुई है। मुर्सी का जाना मिस्र में उदारवाद की वापसी समझा जा रहा है। कहा जा रहा है कि ईरान में जिस तरह सत्ता में बदलाव हुआ उसी का असर यहां भी देखने को मिला है। मुर्सी के स्थान पर अदली मंसूर को सत्ता के शीर्ष पर अंतरिम राष्ट्रपति के रूप में पदस्थ किया गया है वे उदारवादी समझे जाते हैं और उन्हें अच्छे प्रशासक के रूप में देश में पहचान मिली हुई है। पद संभालते ही मंसूर ने कहा कि शासक की आराधना का वक्त खत्म हो जाना चाहिए। उन्होंने लोगों से आव्हान किया कि वे नया संविधान आने तक शांति बनाए रखे। यह अंतरिम सरकार नए राष्ट्रपति का चुनाव होने तक काम करेगी। सेना प्रमुख जनरल अब्देल फतह अल-सीसी ने इस अभियान में प्रमुख भूमिका निभाई है। फतेह ने उन्हें चेतावनी दी थी कि मुर्सी जनता की मांग माने या फिर सैनिक हस्तक्षेप के लिए तैयार रहें।
इस तख्ता पलट ने यह संकेत दिया है कि मिस्र जैसे इस्लामी देशों में इस्लामी कट्टरपंथ और उदारवाद के बीच निर्णायक लड़ाई चल रही है। मुर्सी ने मुस्लिम ब्रदरहुड के साथ मिलकर मिस्र का इस्लामीकरण करने का जो प्रयास किया वह जनता की जागरुकता के कारण नाकाम हो गया। मिस्र की खासियत यह है कि यहां पर सेना इस्लामी कट्टरपंथ के खिलाफ है। जबकि पाकिस्तान जैसे देशों में सेना इस्लामी कट्टरपंथियों के समर्थन में खड़ी नजर आती है। यही कारण है कि मिस्र में तख्तापलट से दुनिया का उदारवादी तबका ज्यादा चिंतित नहीं है। चिंता केवल इस बात की है कि सेना लोकतंत्र पर हावी न हो जाए। दूसरी तरफ बांग्लादेश की तरह मिस्र में भी उदारवादियों और इस्लामी कट्टर पंथियों के बीच खूनी संघर्ष के आसार पैदा हो गए हैं। अभी तक 50 लोग मारे जा चुके हैं। आगे कितने मरेंगे यह कहना मुश्किल है क्योंकि टकराव लगातार बढ़ता जा रहा है। कट्टरपंथी समर्थन जुटाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। लेकिन उदारवादी फिलहाल मजबूत स्थिति में दिखते हैं। देखना है कि नया संविधान किस तरह मिस्र को एक लोकतांत्रिक धर्म निरपेक्ष राज्य बनाने की कोशिश करता है। मिस्र में इस परिवर्तन में कॉप्टिक चर्च की भी महत्वपूर्ण भूमिका बताई जा रही है। जो फिलहाल देश में कई मसलों पर काम कर रहा है। समझा जाता है कि चर्च के सहयोग से देश में एक धर्म निरपेक्ष माहौल बनाने का प्रयास हो रहा है, लेकिन कट्टरपंथी इसके पीछे पश्चिमी ताकतों खासकर इसाई जगत का हाथ बता रहे हैं। स्थिति फिलहाल तनावपूर्ण है। अमेरिका ने इन हालातों पर चिंता जताई है। जिस तरह मुर्सी समर्थक हथियार लेकर छापामार कार्रवाई कर रहे हैं। उससे गृह युद्ध का खतरा भी पैदा हो गया है। कुछ माडरेड लोगों का मानना है कि लगातार टकराव से बेहतर है मुर्सी समर्थकों और उदारवादियों के बीच समझौता करवाते हुए बीच का रास्ता तलाशा जाए। सेना ने भी दोनों पक्षों से सुलह की अपील की है। लेकिन इस्लामी कट्टरपंथी सेना की इस अपील के सामने झुकने को तैयार नहीं हैं। मुस्लिम ब्रदरहुड के इस्लामवादी सदस्यों ने रिपब्लिकन गार्ड क्लब की ओर मार्च करके यह संकेत दे दिया है कि वह आर-पार की लड़ाई के मूड में है। सेना ने जिस तरह मुस्लिम ब्रदरहुड पर गोलीबारी की है उससे भी माहौल गर्मा गया है। देखना यह है कि नए चुनाव कब होते हैं और उस चुनाव प्रक्रिया में मुर्सी समर्थकों की क्या भूमिका रहती है। फिलहाल तो आसार कुछ अलग ही नजर आ रहे हैं। इस बीच सुरक्षा बलों ने मुर्सी और मुस्लिम ब्रदरहुड के अन्य अग्रणी नेताओं की यात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया है। अभी तक 300 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है तथा कई अन्य गिरफ्तारी की राह पर हैं। अंतरिम राष्ट्रपति का कहना है कि संविधान की समीक्षा के लिए एक समिति बनाई जानी चाहिए तथा एक ऐसा रोडमैप तैयार किया जाना चाहिए जिस पर सभी राजनीतिक दलों की सहमति हो।