क्या सेना से ताज बचा पाएंगे नवाज
15-Jun-2013 07:48 AM 1234768

पाकिस्तान में नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले नवाज शरीफ जनता को आज से लगभग डेढ़ दशक पूर्व हुए अपमान का बदला लेने के लिए धन्यवाद दे रहे थे। उस समय एक सैनिक तानाशाह ने आसमान में ही उड़ते हुए उनका तख्तापलट कर दिया था। उसके बाद पाकिस्तान का लोकतंत्र सेना की दहलीज पर गिरवी रखा गया। यह कहा जाने लगा कि पाकिस्तान एक अभिशप्त देश है जहां लोकतांत्रिक रूप से सत्ता का हस्तांतरण संभव ही नहीं है, लेकिन मौजूदा चुनाव ने इस मिथक को तोड़ा है और पहली बार लोकतांत्रिक रूप से सत्ता का हस्तांतरण हुआ है। क्योंकि पाकिस्तान में लोकतंत्र का अनुभव ज्यादा नहीं है इसलिए चुनाव में कुछ धांधलिया भी देखने को आई। कुछ गड़बड़ी भी सामने आई, लेकिन कुल मिलाकर इसे एक सुखद बदलाव ही कहा जाएगा।
सेना ने इस बार अभूतपूर्व संयम का परिचय दिया। सेना अध्यक्षों के चेहरों पर तल्खियां तो दिखाई दीं लेकिन उन्होंने शायद लोकतंत्र से समझौता कर लिया है या फिर यह मान लिया है कि सेना युद्ध के मोर्चे पर तैनात रहे या फिर बैरको में रहे तो ही खैरियत है। शासन चलाना सेना का काम नहीं है। यह केवल और केवल राजनीतिज्ञों का दायित्व है, लेकिन सेना को बैरकों तक या युद्ध के मैदानों तक या सीमाओं तक रोकने के लिए नवाज शरीफ को लोकतांत्रिक रूप से महत्वपूर्ण प्रयास करने होंगे। जिससे जनता में यह संदेश जाए कि लोकतंत्र ही सर्वश्रेष्ठ व्यवस्था है।
इस बात को सिर्फ शरीफ और जरदारी समझते हों इतना भर नहीं है। कमोबेश पूरा पाकिस्तान इस बात को महसूस कर रहा है कि सत्ता परिवर्तन के लिए तख्ता पलट करना बिल्कुल जरूरी काम नहीं है। पाकिस्तान के सद्र आसिफ अली जरदारी से शपथ ले लेने के बाद अपने आधे घण्टे के भाषण में नवाज शरीफ ने पाकिस्तान के लिए किसी साझे एजेण्डा की बात कही। नवाज शरीफ ने अपने भाषण में मुख्य रूप से दो बातें कहीं। पाकिस्तान समस्याओं का जंगल है और समस्याओं के इस जंगल में समाधान खोजने के लिए सबको साथ मिलकर काम करना होगा। शरीफ इसके लिए जल्द ही पाकिस्तान में सभी दलों के नेताओं से मेल मुलाकात शुरू करेंगे और पांच जून को पांच साला परिवर्तन की जो शुरूआत हुई है उसे आगे भी बनाये रखने की कवायद करेंगे।
मुख्य रूप से उन्होंने जो समाधान प्रस्तुत किया है उसमें ग्वादर से काशगर तक रेल रोड नेटवर्क को बेहतर करने तथा पाकिस्तान में जारी ड्रोन हमलों को रोकने की बात है। ये दोनों ही बातें असल में पाकिस्तान से कम पाकिस्तान की विदेश नीति से ज्यादा जुड़ी हैं। ग्वादर से काशगर (काशी) के बीच रेल रोड नेटवर्क बेहतर करना पाकिस्तान की नहीं बल्कि चीन की जरूरत है और पूर्व की पीपीपी सरकार पहले ही ग्वादर पोर्ट को संभालने का जिम्मा चीन को सौंप चुकी है। ऐसे में अब अगर नवाज शरीफ ग्वादर को काशगर से जोडऩे की बात कर रहे हैं तो यह पाकिस्तान की जरूरत नहीं बल्कि चीन की जरूरत है। चीन के झिंझियांग प्रांत का काशगर मुस्लिम बहुल आबादी वाला इलाका है जो अतीत के सिल्क रूट का हिस्सा है। आज भी इस्लामाबाद चीन से इसी काशगर के रास्ते जुड़ा हुआ है और कराकोरम हाइवे के जरिए काशगर तक आवाजाही की जाती है। इसलिए अब अगर नवाज शरीफ इस रास्ते को बेहतर बनाने की बात कर रहे हैं तो इसमें पाकिस्तान से ज्यादा चीन को फायदा है। इसी तरह ड्रोन हमलों को राष्ट्रीय एजेण्डा में शामिल करके नवाज शरीफ ने पाकिस्तान के उन कट्टरपंथियों की हिमायत की है जो लंबे अर्से से अमेरिकी ड्रोन हमलों को आतंकवादी कार्रवाई करार दे रहे हैं। फाटा इलाके में जारी ड्रोन हमलों को रोकने के लिए पाकिस्तान को जो कुछ करना होगा, अगर अमेरिका की अनुमति और सहमति से वह करता है तो जरूर इस स्थिति में परिवर्तन आ सकता है, नहीं तो अमेरिका इतनी आसानी से आतंक विरोधी अपनी कार्रवाई को रोक देगा, सोच पाना थोड़ा मुश्किल है। लेकिन ग्वादर-काशगर रेल रोड नेटवर्क और ड्रोन हमलों को रोकने की बात करके नवाज शरीफ ने पाकिस्तान की उसी बेचारगी को जाहिर किया है जिसमें अमेरिका पाकिस्तान को छोडऩे के लिए तैयार नहीं है और पाकिस्तान चीन को अलग थलग नहीं कर सकता। क्योंकि कम से कम उस पाकिस्तानी आवाम की नजर में चीन अमेरिका से ज्यादा भरोसेमंद साथी है जो अमेरिका भारत को भी अपना दोस्त मानता है।
अंतरराष्ट्रीय मोर्चों पर इस विरोधाभाषी परिस्थिति के साथ ही नवाज शरीफ के लिए स्थानीय मोर्चे पर सैनिक तानाशाही और कारोबार की चुनौती से निपटना भी बड़ी चुनौती होगी। पाकिस्तान में जारी शिया सुन्नी विवाद, अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे अन्याय और आर्थिक रूप से बदहाल होते जा रहे पाकिस्तान को पटरी पर लाने के प्रजातांत्रिक रास्ते का सफर शरीफ के लिए इतना भी आसान नहीं होगा। यह बात शायद वे समझते हैं। इसलिए अगर 11 मई के मतदान में उनकी पार्टी के चुनाव चिन्ह शेर पर पाकिस्तानी आवाम ने विश्वास का ठप्पा लगाया कि शरीफ पाकिस्तान के जंगल में दहाड़ मार सकें तो 5 जून को शरीफ की वह दहाड़ नहीं सुनाई पड़ी जो स्वाभाविक परिस्थितियों में सुनाई पड़ सकती थी। उनकी बातों से जीत की खुशी से ज्यादा विपरीत परिस्थितियों का अहसास झलक रहा है। वे जानते हैं कि सेना अपनी बैरकों में बैठी जरूर है लेकिन उसका असर दुश्मनों पर कम, पाकिस्तान पर ज्यादा है। इसका एक नजारा उस वक्त भी मिल गया जिस वक्त पंजाब हाउस से निकलकर नवाज शरीफ और उनका परिवार सद्र निवास शपथ लेने जा रहा था। दो तीन मिनट के लिए ही सही, जनरल कयानी के काफिले के लिए नवाज शरीफ के काफिले को रोक दिया गया और जनरल कयानी के काफिले के गुजर जाने ही नवाज शरीफ को सद्र निवास तक जाने की अनुमति दी गई।

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