खतरे में पश्चिमी गठबंधन
02-Aug-2018 08:16 AM 1234873
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका और यूरोप के बीच पश्चिमी गठबंधन की शुरुआत हुई, जिसका नेतृत्व करते हुए अमेरिका ने सत्तर वर्ष से ज्यादा समय तक उदार विश्व व्यवस्था को स्थिरता और सुरक्षा प्रदान की। हालांकि यह विश्व व्यवस्था हमेशा उदार नहीं रही और कई बार इसने व्यवस्था के बजाय अव्यवस्था ही पैदा की। बड़े पैमाने पर यूरोपीय शक्तियों से लैस 29 नाटो सदस्य देशों ने साम्यवाद के प्रसार और सोवियत साम्राज्य के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिए यह गठबंधन बनाया, जो अमेरिका के वित्तीय और सैन्य समर्थन के चलते बना रहा। भले यह अस्तित्व के संकट से नहीं जूझ रहा है, लेकिन अमेरिका और यूरोप के बीच रिश्ते चरमरा रहे हैं, क्योंकि इस गठबंधन का मुख्य खिलाड़ी अमेरिका अब मुफ्त में यूरोप को सुरक्षा देने को अनिच्छुक है। जाहिर है, डोनाल्ड ट्रंप नोबेल विजेता मिल्टन फ्रीडमैन के मंत्र का अनुपालन करते हैं-मुफ्त जैसी कोई चीज नहीं होती! अतीत में भी अमेरिका और यूरोप के बीच मतभेद रहे हैं, आइजनहावर के नेतृत्व में अमेरिका ने 1956 में स्वेज नहर पर फ्रेंच-ब्रिटिश-इस्राइली हमले का विरोध किया था और जर्मनी व फ्रांस ने 2003 में इराक पर अमेरिकी हमले का खुलेआम विरोध किया था। प्रमुख यूरोपीय अर्थव्यवस्थाएं मानती हैं कि 2008-09 में पूरी दुनिया को अपने घेरे में लेने वाली आर्थिक मंदी अमेरिका की गलत वित्तीय नीति का परिणाम थी। तो फिर इसमें नया क्या है? नयापन मतभेद को जाहिर करने के तरीके और उसकी तीव्रता में है, राजनयिक तौर-तरीकों का पालन करने से हटने और चौराहे पर गंदे कपड़े साफ करने की प्रवृत्ति ठीक नहीं है। हाल ही में कनाडा में संपन्न हुआ जी-7 सम्मेलन इसकी पूरी कहानी बयान करता है। अपने प्रचार अभियान के दौरान ट्रंप ने सोवियत साम्राज्य के पतन के बाद नाटो को जर्जर एवं अप्रासंगिक बताया था। हैरानी की बात नहीं कि उनका ट्वीट नाटो सहयोगियों के लिए बेहद आलोचनात्मक है। उन्होंने नाटो सहयोगियों को मुफ्तखोर बताया, जो रक्षा पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का दो फीसदी खर्च करने की अपनी प्रतिबद्धता का सम्मान नहीं करते हैं। इसी तरह से उन्होंने यूरोपीय संघ की आलोचना की, जो अमेरिका के साथ व्यापार में 137 अरब अमेरिकी डॉलर के अधिशेष का फायदा उठाता है, लेकिन अमेरिकी कृषि निर्यात के खिलाफ बाधाएं बढ़ाता है। जर्मनी ने यूरोप के बाकी हिस्सों की तरह पर्यावरणीय आधार पर अपने कोयला और परमाणु ऊर्जा संयंत्र बंद कर दिए हैं, लेकिन इसकी अनदेखी करते हुए ट्रंप ने उसे रूस का गुलाम बताते हुए हमला किया कि हम जर्मनी की रक्षा करते हैं, हम फ्रांस की रक्षा करते हैं, हम यूरोपीय संघ के सभी देशों की रक्षा करते हैं और फिर इनमें से कई देश बाहर जाते हैं और रूस के साथ पाइपलाइन सौदे करते हैं तथा रूस के खजाने में अरबों डॉलर भुगतान करते हैं। मैं समझता हूं कि यह बहुत ही अनुचित है। वह रूसी गैस आयात करने के लिए 11 अरब अमेरिकी डॉलर के बाल्टिक सागर पाइपलाइन का जिक्र कर रहे थे। हालांकि नाटो के महासचिव स्टोल्टेनबर्ग ने दावा किया कि 2017 में नाटो सदस्यों द्वारा रक्षा व्यय में सबसे ज्यादा वृद्धि देखी गई है, वे रक्षा पर अपनी जीडीपी का चार फीसदी खर्च नहीं कर सकते हैं, जिसकी मांग ट्रंप ने की है। ओबामा के प्रयासों पर फिरेगा पानी ओबामा के जोरदार प्रयासों, सावधानी पूर्वक बातचीत और राजनयिक कौशल ने शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी को मनाया और सीओपी 21 पेरिस समझौता अक्तूबर 2015 में हुआ। अधिकांश यूरोपीय संघ के देशों समेत 195 देशों ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किए। लेकिन अरबपति व्यापारी से राष्ट्रपति बने ट्रंप ने कहा, यह अमेरिका के लिए अनुचित था और समझौते से बाहर निकल गया! ईरान परमाणु सौदे जेसीपीओए (संयुक्त व्यापक कार्रवाई की योजना) को अमेरिका, ईरान और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य और जर्मनी के बीच श्रमसाध्य समझौता किया गया था और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा सर्वसम्मति से अनुमोदित किया गया था। लेकिन ट्रंप ने ईरान पर धोखाधड़ी का आरोप लगाकर समझौते से बाहर निकलने का फैसला किया और उस पर फिर से मजबूत प्रतिबंध लगाकर अपने चुनावी वायदे को पूरा करते हुए इस्राइली लॉबी को खुश किया। कई लोग ट्रंप पर मित्रों और दुश्मनों के बीच अंतर करने में विफल होने, मानवाधिकारों और मानवीय चिंताओं की अनदेखी करने और संकीर्ण आर्थिक और सुरक्षा हितों पर विदेशी नीति पर ध्यान केंद्रित करने में विफल होने का आरोप लगाते हैं। - माया राठी
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