17-Jul-2013 08:57 AM
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जबसे राहुल गांधी ने कमान संभाली है कांग्रेस के कुछ नेता बेलगाम बोलने लगे हैं। दिग्विजय सिंह अपने बयानों से पार्टी को दुविधा में डालते रहे हैं चाहे वह सत्ता के दो केंद्र वाला बयान हो या फिर बाटला हाउस एनकाउंटर में अनुपातहीन

तरफदारी लेकिन अब उनकी जगह लगता है बेनी प्रसाद वर्मा ने ले ली है। केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा मुलायम सिंह के खिलाफ जिस तरह आग उगल रहे हैं। उसका राज केवल यही हो सकता है कि कहीं न कहीं बेनी को भीतर से किसी ने इशारा किया है और बाहर दिखावे के लिए उन्हें हिदायतें दी जा रही हैं। हाल ही में बेनी प्रसाद ने मुलायम सिंह यादव के खिलाफ आग उगलते हुए कहा कि मुलायम सिंह तो प्रधानमंत्री आवास में झाड़ू लगाने की काबिलियत भी नहीं रखते। बेनी प्रसाद के इस बयान ने राजनीतिक तापमान बढ़ा दिया है। यह सच है कि समाजवादी पार्टी मजबूरी में कांग्रेस सरकार को बचा रही है किंतु मजबूरी उतनी बड़ी भी नहीं है कि बेनी प्रसाद वर्मा की बकवास बर्दाश्त की जाए । यही कारण है कि जब बेनी ने मुलायम के खिलाफ जहर उगला तो कांग्रेस में कड़ी प्रतिक्रिया हुई। लेकिन कांग्रेस की संयम बरतने की सलाह बेनी को नागवार गुजरी और उन्होंने धमकी दी कि अगर उन्हें मुलायम के खिलाफ बोलने से रोका गया तो वह कांग्रेस पार्टी छोड़ देंगे। सत्य तो यह है कि बेनी जो भाषा बोल रहे हैं उस भाषा में उनका योगदान जितना है उससे अधिक कहीं कांग्रेस का योगदान है। कांग्रेस ने उत्तरप्रदेश में मुलायम सिंह यादव सरकार की नाकामियों को सामने लाने का लक्ष्य बनाया है और नाकामियां सामने लाने के लिए तल्ख भाषा का प्रयोग तो करना ही पड़ता है। यही कारण है कि कांग्रेस महासचिव व उत्तरप्रदेश मामलों के प्रभारी मधुसूदन मिस्त्री ने कहा कि उन्होंने मुलायम को अपने घर बुलाकर संयम बरतने की सलाह दी लेकिन इस सलाह को बेनी ने नजरअंदाज कर दिया। पिछली बार भी संसद सत्र के दौरान बेनी प्रसाद ने मुलायम सिंह यादव पर आतंकवादियों से रिश्ते होने का आरोप लगाया। इस घटना के बाद दोनों दलों के रिश्ते इतने बिगड़ गए थे कि स्वयं सोनिया ने मुलायम सिंह से मिलकर खेद जताया और बाद में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बेनी को बुलाकर उनसे बात की। मनमोहन सिंह से फटकार मिलने के बाद बेनी ने भी खेद जताना उचित समझा। उस समय बेनी को कांग्रेस ने अल्टीमेटम दे दिया था कि वे चुप रहना सीखें अन्यथा कभी भी मंत्री पद से हाथ धोना पड़ सकता है। लेकिन अब बेनी कांग्रेस के दबाव में भी झुक नहीं रहे हैं। उसका कारण यह है कि समाजवादी पार्टी के खिलाफ राजनीतिक हमला करके ही उनकी राजनीति चलती हैं अन्यथा उन्हें कोई पूछने वाला हैं नहीं। इसलिए आने वाले दिनों में बेनी मुलायम सिंह पर और कीचड़ उछालें तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। फिलहाल तो उन्होने कहा है कि मुलायम पीएम बनें तो उन्हें खुशी होगी।
कितने कारगर होंगे अमितशाह
भारतीय जनता पार्टी ने एक अभिनव प्रयोग किया है। गुजरात जैसे विकसित राज्य और राजनीतिक दृष्टि से अपेक्षाकृत शांत कहे जाने वाले प्रदेश से लाकर अमितशाह को उत्तरप्रदेश में पार्टी का प्रभारी बनाया गया है। शाह को उत्तरप्रदेश की जातिवादी राजनीति की समझ कितनी है यह तो पता नहीं लेकिन शाह के समक्ष चुनौतियां कम नहीं हैं। अयोध्या, गोरखपुर में पार्टी की बैठकों में जिस प्रकार का माहौल शाह को देखना पड़ा उससे उन्हें यह अंदाजा लग गया होगा कि राह आसान नहीं है। खासकर अवध में जहां की शामें बड़ी गुलजार रहती हैं, भाजपा को पुन: मजबूत स्थिति में लाना संभव नहीं है। यह बात अच्छी है कि भाजपा न सिर्फ हिंदुत्व व भगवा एजेंडे पर लौट आई है बल्कि राममंदिर उसके एजेंडे में पहले जैसा ही महत्वपूर्ण हो गया है। अयोध्या के बाद गोरखपुर में गोरखपुर क्षेत्र की बैठक बुलाई गई थी। शाह के लिए अवध की जमीन काफी चुनौतियों वाली व मुसीबत भरी है। भाजपा के लिए प्रदेश व देश की सत्ता का रास्ता खोलने वाली इस धरती पर लंबे समय से कमल कुम्हलाया पड़ा है। राम मंदिर एजेंडा मुहैया कराने वाली और भाजपा को भगवा पहचान देने वाली इस धरती पर ही भगवा ब्रिगेड को एक-एक सीट के लिए जूझना पड़ रहा है। पर, स्थिति ठीक नहीं हो पा रही है। अवध क्षेत्र में लोकसभा की 16 और विधानसभा की 81 सीटें आती हैं। पर, इस समय भाजपा के पास अवध क्षेत्र में लोकसभा की सिर्फ एक सीट वह भी लखनऊ है। जिस अयोध्या को भाजपा की ताकत माना जाता है। उस अयोध्या फैजाबाद संसदीय सीट पर पिछले दो चुनाव से कमल खिलाना मुश्किल हो रहा है। लगातार पांच बार से भाजपा के कब्जे में चली आ रही विधानसभा की अयोध्या सीट भी इस बार पार्टी के हाथ से निकल गई है। क्षेत्र में बाराबंकी, हरदोई, सीतापुर, गोंडा, अंबेडकरनगर और रायबरेली सहित कई सीटों पर उम्मीदवारों को टोटा है। जाहिर है कि प्रदेश से भाजपा की सीटें बढ़ाने के लिए शाह को इस इलाके में सीटों की बढ़ोतरी का उपाय तलाशने की चिंता करनी होगी।
लखनऊ की सीट पर घमासान: उत्तरप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का प्रदर्शन भले ही लगातार दयनीय होता जा रहा हो, लेकिन लखनऊ की सीट पर भाजपा के शीर्ष नेताओं में भीतरी टकराहट हो गई है। कई दिग्गज नेताओं की नजर इस सीट पर हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल जी टंडन के कब्जे में मौजूद इस सीट पर कई दिग्गजों की निगाहें गड़ी हुई हंै। भाजपा का चेहरा बनकर उभरे नरेन्द्र मोदी भी लखनऊ से चुनाव लडऩे की इच्छा जाहिर कर चुके हैं, वहीं वर्तमान सांसद लालजी टंडन अपनी दावेदारी मजबूत मान रहे हैं। भाजपा नेताओं के लिए सुरक्षित मानी जाने वाली लखनऊ संसदीय सीट आने वाले आम चुनावों में किसके खाते में जाएगी इसके भी कयास लगने शुरू हो गए हैं। भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी सुरक्षित सीट कि तलाश में हैं, वे गाजिय़ाबाद सीट छोड़कर लखनऊ आना चाह रहे है। लखनऊ से लडऩे वालों की दावेदारी बढ़ रही है। लालजी टंडन और वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी इस सीट से अपनी दावेदारी ठोंक रहे हैं। भाजपा की अति सुरक्षित सीट मानी जाती रही लखनऊ सीट भाजपा के अन्दर ही नए रणक्षेत्र का निर्माण कर रही है। भाजपा के नेता जानते है कि इस सीट से लडऩे वाले कि जीत पक्की है। भाजपा के सह प्रदेश प्रभारी रामेश्वर चौरसिया लखनऊ सीट के दावेदारों को लेकर दिए जा रहे बयानों से सतर्क है। रामेश्वर चौरसिया ने हाल में ही कहा था कि मोदी लखनऊ से लड़ सकते है लेकिन पार्टी में इस सीट के लिए बढ़ रहे दावेदारों को देखते हुए उन्होंने कहा कि मोदी वाराणसी या इलाहाबाद से भी अपनी किस्मत आज़मा सकते है।
इधर भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी की कानपुर में बढ़ रही सक्रियता ने कानपुर के स्थानीय नेताओं की बेचैनी को बढ़ा दिया है। मोदी के वाराणसी से चुनाव लडऩे की अटकलों के बीच मुरली मनोहर जोशी भी अपने लिए सुरक्षित ठिकाने की तलाश में जुट गए है। वही स्थानीय नेता जोशी के कानपुर से दावेदारी के मुद्दे को लेकर सतर्क हो गए हैं। कानपुर के स्थानीय नेता अन्दरखाने ही जोशी की दावेदारी को कम करने में लग गए हैं। भाजपा इस बार उत्तर प्रदेश और बिहार को किसी भी हाल में हाथ से जाने नहीं देना चाहती वजह भी साफ़ है उत्तर प्रदेश और बिहार दोनों राज्यों में मिलाकर लोकसभा की कुल 120 सीटे हैं भाजपा इन 120 सीट में से आधी जितना चाहती है। भाजपा के बड़े नेता मानते हैं अगर नरेन्द्र मोदी उत्तर प्रदेश से चुनाव लड़ते हंै तो हो सकता यही हिन्दु वोटों का धुव्रीकरण हो जाए और भाजपा को इस बात का फायदा मिले। वहीं राजनाथ सिंह के हालिया बयानों पर गौर करें तो राजनाथ मुस्लिम वोट बैंक पर भी नजऱ जमाये हुए हंै। राजनाथ सिंह नहीं चाहते इस बार कोई भी चूक हो यही वजह है कि वो अपने लिए सुरक्षित सीट की तलाश में है या ये कह सकते है खुद की दावेदारी करके वो नरेन्द्र मोदी के राह में कांटे तो नहीं बो रहे हंै।
यूपी में कानून व्यवस्था चरमराई
उत्तरप्रदेश में समाजवादी पार्टी के लिए स्थिति ज्यादा चुनौती पूर्ण इसलिए होती जा रही है क्योंकि वहां कानून और व्यवस्था की स्थिति दयनीय है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के गृह जनपद में भी अब लड़कियां महफूज नहीं हैं। इटावा के इकदिल थाना क्षेत्र के केसरमऊ गांव में हाल ही में 20 साल की एक लड़की के साथ दिनदहाड़े सामूहिक दुष्कर्म के बाद जिंदा जलाकर मार दिया गया। हालांकि पुलिस का कहना है कि लड़की ने खुद को आग लगाई है।
पुलिस ने इस मामले में छह युवकों के खिलाफ मामला दर्ज किया है। युवती को गंभीर हालत में सैफई के पीजीआई अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उसकी मौत हो गई। पुलिस के मुताबिक युवती के भाई की शिकायत पर मुख्य आरोपी फरहान सहित पांच और लोगों के खिलाफ अपराधिक धाराओं के तहत केस दर्ज कर गिरफ्तारी की कोशिश की जा रही है। यूपी के ही प्रतापगढ़ में रेप पीडि़त नाबालिग लड़की की जीभ काटने का मामला सामने आया था। आरोपियों ने रेप पीडि़ता की जीभ काट डाली थी। पीडि़त लड़की कोर्ट में आरोपियों के खिलाफ अपना बयान दर्ज करवाने वाली थी। लेकिन इससे पहले ही आरोपियों ने उसकी जुबान काट ली। एक के बाद एक बलात्कार और हत्याएं हो रही हैं, लेकिन सत्ता में बैठक समाजवादी पार्टी के नेताओं को इसमें कुछ गलत नहीं लगता है। उनका कहना है कि इतना बड़ा प्रदेश है, ऐसे में रेप और हत्या की घटना कोई बड़ी बात नहीं है। जनाब यहीं पर नहीं रुके उनके हिसाब से तो रेप हर जगह में हो रहे हैं, दिल्ली में भी रेप होते हैं। सपा नेता के इस बयान से अंदाजा लगाया जा सकता है कि सरकार कानून व्यवस्था को लेकर कितनी संवेदनहीन हो चुकी है और वह ऐसी घटनाओं को रोकने के लिये कितनी तत्पर है। इससे पहले समाजवादी पार्टी के नेता अबु आजमी ने जनवरी 2013 में कहा था कि फैशन और कम कपड़े पहनने की वजह से ही बलात्कार की घटनाएं होती हैं। इतना ही नहीं, आजमी ने बगैर सिर ढके और स्कर्ट पहनकर निकलने वाली महिलाओं के लिए कानून बनाने की भी मांग कर डाली थी। अबु आजमी मायानगरी मुंबई में रहते हैं, विकास की तेज रफ्तार में पूरे शहर के साथ सालों से दौड़ रहे हैं। अबु आजमी रेप जैसी वारदातों के लिए महिलाओं को ही जिम्मेदार मानते हैं। चुनाव के समय यह वारदातें मुलायम सिंह यादव के लिए सरदर्द बन सकती हैं। यादव केन्द्र सरकार गिराने के लिए मौका तलाश रहें हैं लेकिन उत्तरप्रदेश में समाज वादी पार्टी की लोकप्रियता को लेकर वे आश्वस्त नहीं हैं। इसी कारण उनका चुनावी अभियान लगातार शिथिल पड़ता जा रहा है आने वाले दिनों में कानून और व्यवस्था की स्थिति को लेकर टकराव बढ़ सकता हैं ऐसे हालात में अखिलेश सरकार के लिए चुनौती लगातार बढ़ती जा रही है। अब अखिलेश यादव को चुनाव से पहले माहौल समाजवादी पार्टी के पक्ष में निर्मित करना होगा अन्यथा मुलायम सिंह यादव के प्रधानमंत्री मिशन को धक्का पहुंचना तय है।
लखनऊ से मधु आलोक निगम