विपक्ष का विश्वास डिगा
02-Aug-2018 08:07 AM 1235039
अविश्वास प्रस्ताव जब 325 के मुकाबले 126 वोटों से धराशायी हुआ तो शायद विपक्ष को अहसास हुआ होगा कि वाकई इसे लाने का कोई ठोस कारण नहीं था। बल्कि संसद को सियासी कुरुक्षेत्र बना कर विपक्ष ने ऐतिहासिक भूल कर अपनी फजीहत कराने का ही काम किया। जिन मुद्दों पर उसने सरकार को घेरने की कोशिश की उन्हीं मुद्दों का जवाब देकर पीएम मोदी ने अपनी सरकार की उपलब्धियों का पिटारा खोल दिया। मोदी सिर्फ जवाब देने की तैयारियों और इरादे के साथ संसद में नहीं आए थे। वो ये जानते थे कि सवा सौ करोड़ के देश को कांग्रेस और अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले विपक्ष के बारे में बहुत कुछ बताने का खास दिन भी है। वो ये भी जानते थे कि आर-पार के इस महामुकाबले में कांग्रेस पर फाइनल वार करने का सबसे बड़ा मौका है। वो ये भी जानते थे कि एक वोट से एनडीए की वाजपेयी सरकार के गिरने के 19 साल बाद हिसाब बराबर करने का भी ये बड़ा मौका है। तभी उन्होंने अपने भाषण के बीच में ये कहा कि आज वो किसी को छोडऩे वाले नहीं हैं और सबके सम्मान का ध्यान रखेंगे। पीएम मोदी ने कहा कि वो प्रार्थना करेंगे कि कांग्रेस साल 2024 में भी ऐसा ही अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए। लेकिन अविश्वास प्रस्ताव की इस बहस को विपक्ष साल 2024 में भी याद नहीं करना चाहेगा। विपक्ष ने इस अविश्वास प्रस्ताव में अपने-अपने सूबे में अपना ही विश्वास डगमगाने का काम किया है। मोदी सरकार के खिलाफ बड़ी मुश्किल से विपक्ष एकजुट हुआ था। लेकिन उसके जोश पर मोदी मैजिकÓ ने फिर से पानी फेर दिया। तकरीबन 12 घंटे की बहस में विपक्ष ने सत्तापक्ष और खासतौर पर पीएम मोदी पर सारे आरोप लगाए। आरोपों की फेहरिस्त के शोर में तथ्यों की जरूरत नहीं थी। लेकिन जवाब देने में मोदी आंकड़ों के साथ बैठे। उन्होंने पहले राहुल के व्यक्तिगत हमलों का जवाब दिया तो फिर कामदार सरकार के कामों की लिस्ट विपक्ष के कान के पर्दों पर भारी पड़ती चली गई। अविश्वास प्रस्ताव खारिज हो गया। ध्वनि-मत से फिर एक बात साबित हो गई कि मोदी सरकार आज भी मजबूत है। इस अविश्वास प्रस्ताव से विपक्षी एकता की ताल ठोंकने वाले दावे भी खारिज हो गए जो बता रहे थे कि वो नंबर गेम में आगे हैं। 126 लोगों ने अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग कर न सिर्फ विपक्षी एकता की कमजोरी और कमतर संख्या बता दी बल्कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव की तस्वीर भी साफ कर दी। तभी पीएम मोदी साल 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर अभी से आश्वस्त हैं और कह रहे हैं कि कांग्रेस साल 2024 के अविश्वास प्रस्ताव के बारे में सोचे। कांग्रेस ने टीडीपी के कंधे पर रखकर अविश्वास प्रस्ताव की बंदूक चलाई लेकिन निशाना तब भी चूका। टीडीपी का सियासी विरोध एक राज्य भर में सीमित था लेकिन कांग्रेस पर मोदी के हमलों ने सत्तर साल का पूरा हिसाब लिया। कांग्रेस ने इस अविश्वास प्रस्ताव के जरिये साबित कर दिया कि विपक्षी एकता के तमाम दावे किस कदर खोखले हैं और अविश्वास प्रस्ताव जीतकर मोदी सरकार आज भी मजबूत है। अब साल 2019 में चुनाव मैदान में उतरने के लिये मोदी सरकार के पास सिर्फ योजनाएं ही नही बल्कि आंकड़ों में दर्ज किये हुए कामदारÓ दस्तावेज हैं। कांग्रेस ने साल 2019 में मोदी सरकार को हराने का जो विपक्षी एकता के नाम पर हौव्वा तैयार किया था वो इस अविश्वास प्रस्ताव के एपीसोड की वजह से टूट गया। अब उन छोटी मोटी और क्षेत्रीय पार्टियों के लिये फैसला लेना आसान हो गया है जो एनडीए और यूपीए के बीच में अपने सियासी हित को लेकर असमंजस में थीं। वहीं तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट करने वाली पार्टियां भी अब मोदी की इस जीत के बाद अपनी रणनीति को बदलने पर मजबूर होंगी। कांग्रेस को इस अविश्वास प्रस्ताव से सिर्फ इतना ही हासिल हुआ है कि उसके नए अध्यक्ष राहुल गांधी ने खुद को साल 2019 के चुनाव में मोदी के मुकाबले विपक्षी नेता के तौर पर स्थापित कर दिया। ये ठीक उसी तरह है जिस तरह वो कांग्रेस में निर्विरोध अध्यक्ष चुने गए। इस अविश्वास प्रस्ताव के जरिये कांग्रेस ने सिर्फ राहुल की ही इमेज बिल्डिंग का काम किया है। लेकिन कांग्रेस के अलावा दूसरे विपक्षी दल ठगे गए। वो पार्टियां जो मोदी विरोध के नाम पर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक रहीं थीं लोकसभा में उनके पास मोदी विरोध का न तो ठोस आधार था और न ही शब्द। सवाल उठता है कि फिर ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव लाने का प्रस्ताव विपक्ष को दिया किसने था? अपनी सरकार के खिलाफ पहले अविश्वास प्रस्ताव पर जवाब देने की बारी प्रधानमंत्री मोदी की थी। दिन भर चली बहस और अपने ऊपर हुए कटाक्ष पर उसी अंदाज में जवाब देने की उम्मीद भी की जा रही थी, हुआ भी वैसा ही। भले ही अविश्वास प्रस्ताव टीडीपी की तरफ से लाया गया था, लेकिन, जवाब देते वक्त मोदी के निशाने पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ही रहे। ऐसा होना भी तय था, क्योंकि राहुल गांधी ने अपने भाषण के दौरान मोदी और उनकी नीतियों पर जोरदार हमला किया था। राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री मोदी को आंख में आंख डालकर बात करने की चुनौती दी थी। राहुल ने ऐसा भ्रष्टाचार पर आरोप लगाते वक्त किया था। लेकिन, मोदी ने इसे अपने ही अंदाज में भुनाने की कोशिश की। मोदी ने तंज कसते हुए कहा मैं तो गरीब का बेटा हूं, पिछड़ी जाति में पैदा हुआ हूं, आप नामदार हैं, हम कामदार हैं, हमारी हिम्मत कहां जो आपसे आंख में आंख डाल कर बात कर सकें। मोदी ने गांधी-नेहरू परिवार पर सीधा वार करते हुए कहा कि जिन-जिन लोगों ने आप लोगों से आंख मिलाने की कोशिश की उनके साथ आपने क्या किया।Ó मोदी ने कहा, सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल से लेकर चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर से लेकर प्रणब मुखर्जी और शरद पवार तक सबके साथ गांधी-नेहरू परिवार के लोगों ने क्या-क्या किया।Ó मोदी ने राहुल गांधी को परिवार का इतिहास बताकर उनकी बात का जवाब दिया। राहुल गांधी ने अपना भाषण खत्म करने के बाद अचानक सत्ता पक्ष की तरफ जाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गले लगाया था। इस कोशिश के जरिए राहुल ने अपनी छवि दिखाने की कोशिश की थी। इस जादू की झप्पी को लेकर भी प्रधानमंत्री ने अपने ही अंदाज में जवाब दिया। मोदी ने इसे राहुल की प्रधानमंत्री के पद पर बैठने की जल्दबाजी से जोड़ दिया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा के भीतर कुछ इसी तरह की हरकतें की थी जिस पर मोदी को तंज कसने का मौका भी मिल गया। मोदी से गले मिलने के बाद राहुल गांधी ने अपनी सीट पर वापस आकर जिस अंदाज में आंख मारी उसको लेकर उनकी गंभीरता को लेकर सवाल खड़े होने लगे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बार-बार राहुल गांधी की हरकतों को बचकाना हरकत बताकर उनकी गंभीरता को कमतर आंकने की कोशिश की। विपक्ष के आरोपों में धार का अभाव वैसे विपक्ष के द्वारा लाए गए इस अविश्वास प्रस्ताव का मुख्य मकसद था क्या? दरअसल इस कवायद के तहत विपक्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के कैंपेन की नींव रखना चाहता था। लेकिन क्या विपक्ष का यह प्रयास सफल रहा? इसको हम लोग समझने की कोशिश करते हैं। अगर इस अविश्वास प्रस्ताव का मकसद इस मौके का इस्तेमाल सरकार पर ऐसा अचूक और तीखा हमला करना था जिसके साथ आम लोग भी अपने आप को जोड़ सकें तो विपक्ष शायद इस मौके को ठीक से भुना नहीं पाया। दोनों तरफ से कोई नई जानकारी देश की जनता के सामने नहीं रखी गई। सभी मामले पुराने थे और उनको सदन में उठाने का तरीका भी पहले जैसा ही था। अविश्वास की महाभारत में राकेश सिंह कृष्ण की भूमिका में संसद में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भाजपा ने सांसद राकेश सिंह पर जिस तरह का विश्वास जताया था वे उस पर खरे उतरे इस अविश्वास से राकेश सिंह का विश्वास चरम पर पहुंच गया है। आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए इन्हें कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के सामने कमजोर माना जा रहा था, लेकिन सिंह ने संसद से लेकर सड़क तक अपनी क्षमता का लोहा मनवा लिया है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं और मध्यप्रदेश बीजेपी को शिवराज के अलावा भी एक ऐसे नेता की तलाश थी, जो पार्टी संगठन के कामकाज के साथ सभी को साथ लेकर चलने वाला हो। राकेश सिंह ने टीडीपी के अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में जबरदस्त हमला बोला। राकेश सिंह ने एक-एक कर मोदी सरकार की कई योजनाओं को विस्तार से देश के सामने रखा। राकेश सिंह ने लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान कहा, कांग्रेस ने इस देश में सिर्फ स्कैम की राजनीति की है। ये सारे के सारे स्कैम देश के माथे पर एक काले धब्बे की तरह हैं। पिछले 60-70 सालों में गरीबी के बहुत नारे लगे लेकिन गरीबी तो नहीं हटी उलटे गरीब जरूर हट गए। एक तरफ कांग्रेस जहां बाबा साहब अंबेडकर का तिरस्कार करती रही तो दूसरी तरफ पूरी जिंदगी उनके विचारों को भी खारिज करती रही। - ऋतेन्द्र माथुर
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