महागठबंधन पर रार
02-Aug-2018 08:02 AM 1234766
मप्र में पिछले 15 साल से सत्ता में बैठी भाजपा को हराना टेढ़ी खीर है। यह बात कांग्रेसी रणनीतिकार भली-भांति जानते हैं। इसलिए प्रदेश में पार्टी बसपा और सपा के साथ गठबंधन करने की कवायद में जुटी हुई है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि बसपा और सपा के साथ गठबंधन की सैद्धांतिक सहमति हो गई है। लेकिन यह गठबंधन कब होगा इस पर सब मौन हैं। उल्लेखनीय है कि समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के भोपाल प्रवास नेे महागठबंधन की सियासत के पारे को काफी परवान चढ़ा दिया है। उन्होंने बिना लाग-लपेट के जो कुछ कहा उसका उद्देश्य यही था कि सपा मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने की इच्छुक है और जिस स्तर पर बात होना चाहिए, उस स्तर पर हो रही है। सूत्रों का कहना है कि बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती चुनाव वाले तीनों राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस से चुनावी तालमेल करने पर सैद्धांतिक सहमति दे चुकी हैं। सीटों के बंटवारे के मामले में कांग्रेस महासचिव अशोक गहलोत और बसपा के सतीशचन्द्र मिश्रा आगे की औपचारिकताओं को पूरा करेंगे। मध्यप्रदेश में मायावती और समाजवादी पार्टी का कांग्रेस से गठबंधन हो जाता है तो अन्य दलों को कांग्रेस से जोडऩे की मुहिम में शरद यादव लगे हुए हैं। इस प्रकार महागठबंधन के सहारे कांग्रेस ने भाजपा के चौथी बार सत्ता में आने की राह में कांटे बिछाने का काम कर दिया है और वह मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पूरी तरह घेराबंदी करने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रख रही है। एक तरफ तो शिवराज की छवि पर आरोपों की झड़ी लगाकर कांग्रेस उसे धूमिल करने की कोशिश कर रही है तो वहीं दूसरी ओर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने यह भी पहचान लिया है कि शिवराज के साथ ही साथ उनका मुकाबला भाजपा की संगठन शक्ति से है, इसलिए वे यह मानते हैं कि मुकाबला चेहरे या उम्मीदवार से नहीं बल्कि भाजपा की संगठन शक्ति से होगा। हम अपने संगठन को मजबूत करने को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहे हैं। कमलनाथ यह भी कह चुके हैं कि कांग्रेस समान विचारधारा वाले दलों से प्रदेश में तालमेल करेगी। वह भाजपा की इस चाल को भी भलीभांति भांप गए हैं कि वह कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर आपसी खींचतान बढ़ाने की हरसंभव कोशिश करेगी, इसलिए उन्होंने यह भी साफ कर दिया है कि मुझे अपने राजनीतिक जीवन में इतना मिल चुका है कि अब मुख्यमंत्री पद हासिल करने की भूख नहीं है। पहली प्राथमिकता कांग्रेस सरकार बनाने की है। चूंकि जमीनी हकीकत को कमलनाथ भांप चुके हैं इसलिए उनकी प्राथमिकता बूथ स्तर तक कांग्रेस को मजबूत करने के साथ ही एक मजबूत सायबर टीम खड़ी करना है, जो कि भाजपा के हर प्रचार का तत्काल जवाब देते हुए कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना सके। जहां तक सपा का कांग्रेस के साथ तालमेल का सवाल है फुटबाल की भाषा में अखिलेश ने कहा कि फ्रांस की टीम की तर्ज पर कांग्रेस को यहां चुनाव लडऩा चाहिए जिसने फ्रांस में रहने वाले दूसरे देश के अच्छे खिलाडिय़ों को अपनी टीम में शामिल कर फीफा कप जीत लिया। इशारों-इशारों में उन्होंने यह भी कहा कि यदि फारवर्ड व अन्य पोजीशन पर कांग्रेस खेलेगी तो लेफ्ट इन और लेफ्ट आउट तथा मजबूत रक्षापंक्ति की पोजीशन में बसपा और सपा रहेगी और इससे नतीजे काफी अच्छे निकलेंगे। अखिलेश की कोशिश यह रही कि जो समाजवादी साथी साथ छोड़कर चले गये उन्हें वापस पार्टी में लाया जाए और कुछ मजबूत उम्मीदवार खोजे जायें। उसके बाद सीटों पर बातचीत की जाये। सपा विधायक रहे के.के. सिंह फिर सक्रिय हो गए हैं तो डॉ. सुनीलम से हुई उनकी बातचीत काफी मायने रखती है। इंदौर के बन्ते यादव पर भी उनकी नजर है जो अरुण यादव के नजदीकी माने जाते हैं। अखिलेश को कांग्रेस से तालमेल करने में कोई परेशानी नहीं होने वाली क्योंकि एक तो उनके सीधे राहुल गांधी से संबंध हैं, दूसरे कमलनाथ को वे अपना अच्छा मित्र बता चुके हैं और कांग्रेस के अरुण यादव से वे अपने दो पीढिय़ों के संबंध बता रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस से बात करने के लिए कई रास्ते उनके लिए खुले हुए हैं और बातचीत चल भी रही है यह उन्होंने माना है। लेकिन उन्होंने इससे अधिक अपने पत्ते नहीं खोले, इतना जरूर कहा कि सपा मध्यप्रदेश में चुनाव लडऩे जा रही है और वे महागठबंधन के पक्ष में हैं। चम्बल, बुंदेलखंड और बघेलखंड दिखाएगा असर मध्यप्रदेश के चम्बल, बुंदेलखंड और बघेलखंड जिसे रेवांचल भी कहा जाता है में सपा और बसपा का असर है और भाजपा व कांग्रेस के बीच दो दलीय ध्रुवीकरण वाले इस राज्य में यदि हाथ, हाथी और सायकल मिल जायें तो राजनीतिक समीकरण एकदम बदल सकते हैं। प्रदेश की 80 सीटों पर बहुजन समाज पार्टी का कमोवेश कहीं अधिक तो कहीं न्यूनतम प्रभाव है परन्तु 36 सीटें ऐसी हैं जहां वह हार-जीत के समीकरण को तय करती है। इसी प्रकार बुंदेलखंड और बघेलखंड में समाजवादी पार्टी का भी दो दर्जन सीटों पर असर है। सपा, बसपा और कांग्रेस का बघेलखंड और बुंदेलखंड के कुछ हिस्से में प्रभाव का आंकलन इसी बात से लगाया जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी के जो भी इस इलाके के सांसद और विधायक हैं उनमें से अधिकांश पूर्व समाजवादी, कम्युनिस्ट या कांग्रेस के नेता रहे हैं। खासकर बघेलखंड में तो भाजपा ने इन्हीं विचारधारा के लोगों को अपने साथ मिलाकर अपनी जीत का परचम लहराया है। यहां से पूर्व घटक जनसंघ या संघ की पृष्ठभूमि वाले विधायकों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि कांग्रेस की कोशिश महागठबंधन के सहारे अपने तीन दशक के सत्ता के वनवास को समाप्त करने की है और वह इसमें कितनी सफल रहती है यह चुनाव नतीजों से ही पता चल सकेगा। - भोपाल से अरविंद नारद
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