02-Aug-2018 07:55 AM
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मप्र में समर्थन मूल्य पर गेहूं उपार्जन का कार्य प्राथमिक कृषि साख समितियों द्वारा किया जाता है। इसके लिए समितियों को उपार्जन एक निश्चित रकम दी जाती है। जिसका आयकर भी कटता है। बाद में समितियां सीए के माध्यम से आवेदन देकर टीडीएस रिफंड करवाती हैं। लेकिन जिला सहकारी केंद्रीय बैंक मर्यादित होशंगाबाद ने समितियों के अधिकार क्षेत्र में जाकर उनके टीडीएस रिफंड का काम हरदा की गोयल एंड एसोसिएट्स कंपनी को दे दिया। इसके लिए कंपनी को 98 लाख का भुगतान भी किया गया। यह पूरी तरह नियमों को ताक पर रखकर किया गया है। इस मामले में बैंक के ही एक संचालक गोपाल शरण चौरसिया ने बैंक के प्रभारी
अध्यक्ष से लेकर विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों तक की है।
चौरसिया की शिकायत के अनुसार होशंगाबाद जिले में गेहूं का उपार्जन करनी वाली समितियों का वर्ष 2011-12 और 2012-13 के लंबित टीडीएस को निकालने की जिम्मेदारी बैंक ने गोयल एण्ड एसोसिएट्स को न केवल नियमों को ताक पर रखकर दिया बल्कि इसके लिए बैंक ने कंपनी से 26 प्रतिशत पर समझौता कर लिया। यानी कंपनी टीडीएस की जो रकम दिलवाएगी उसका 26 फीसदी उसे दिया जाएगा। देश में इतना बड़ा रेट कहीं नहीं है। जानकार बताते हैं कि ज्यादा से ज्यादा 10 प्रतिशत पर काम होता है। इस फर्जीवाड़े में बड़ी मिलीभगत की संभावना जताई जा रही है।
हैरानी की बात यह है कि बैंक ने पूरा फर्जीवाड़ा अपने मन से किया है। चौरसिया का आरोप है कि जिले में करीब 151 समितियों ने गेहूं का उपार्जन किया था। यह समितियां सीए के माध्यम से टीडीएस निकलवाती उससे पहले ही बैंक ने उन सभी से प्रस्ताव मंगा लिए कि उनके टीडीएस का रिटर्न दिलवाने के लिए सीए का जो भी खर्चा होगा वह हमारी संस्था से काट लिया जाए। इसमें भी फर्जीवाड़ा नजर आ रहा है क्योंकि सभी समितियों का प्रस्ताव एक ही दिन आया है और उनका प्रारूप भी एक जैसा है। आरोप है कि उसमें संचालकों के हस्ताक्षर भी ओरिजनल नहीं हैं। बैंक के आवक-जावक में भी वे दर्ज नहीं है जबकि बैंक में कोई भी चिट्ठी आती है तो उसे आवक-जावक में दर्ज किया जाता है।
सवाल यह भी उठता है कि आखिर सहकारी समितियों के पैसे को बैंक लेने-देने वाला कौन है। जबकि अक्टूबर 2007 में वैद्यनाथन कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि हर सहकारी समिति स्वतंत्र इकाई है फिर किस आधार पर बैंक ने यह निर्णय लिया। मामला उजागर होने के बाद अब इस घपले की जांच के लिए संयुक्त जांच दल बना दिया गया है। जिसमें होशंगाबाद सहकारी निरीक्षक डीएस दुबे, उप अंकेक्षक सुधीर कुमार, हरदा के अंकेक्षण अधिकारी आरके पाटिल और सहकारी निरीक्षक ललित सकवार हैं। इस मामले में अपेक्स बैंक के एमडी शर्मा कहते हैं कि मेरे पास यह मामला 26 जुलाई को आया है और मैंने संयुक्त आयुक्त दलेला को इस मामले में जांच करने का निर्देश दे दिया है। जैसे ही जांच रिपोर्ट आती है अगर कोई दोषी होता है उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। उधर दलेला का कहना है कि मैंने जांच का निर्देश दे दिया है। इस पूरे मामले में जिला सहकारी केंद्रीय बैंक मर्यादित होशंगाबाद के मैंनेजर आरबी ठाकुर का कहना है कि समितियों के टीडीएस का पैसा वर्षों से अटका हुआ था। समितियों को उनका टीडीएस दिलाने के लिए बैंक के संचालक मंडल ने निर्णय लिया कि गोयल एंड एसोसिएट्स कंपनी को इस काम पर लगाया जाए। कंपनी ने 3.80 लाख रुपए का टीडीएस दिलवाया भी है। हम मानते हैं कि टीडीएस के लिए 10 प्रतिशत फीस ली जाती है,
लेकिन समितियों की वर्षों से लंबित राशि दिलवाने के लिए कंपनी से 26 प्रतिशत पर अनुबंध किया गया था। इस कारण भी समितियों का पैसा निकल सका है। इसमें कोई घपला नहीं हुआ है।
अगर घपला नहीं हुआ है तो फिर इसमें जांच क्यों हो रही है। दरअसल यह समितियों के विश्वास के साथ बड़ा धोखा है।
धागे और टैग खरीदी में घपला
होशंगाबाद जिले में इस साल समर्थन मूल्य पर गेहूं खरीदी के दौरान खरीदी केन्द्रों पर उपयोग में लाये जाने वाले रंग, धागे और टैग की सप्लाई में भी घपला हुआ है। चौरसिया ने इस संबंध में उपायुक्त सहकारिता को शिकायत करते हुए बताया कि जिले में बिना टेन्डर बुलाए, बिना कमेटी में पास किये, बिना उपायुक्त के अनुमोदन के बालाजी ट्रेडर्स होशंबाबाद (प्रो. मिथलेश पाठक) को सप्लाई के काम दिये गये। यही नहीं कंपनी द्वारा प्रदत्त उपरोक्त सामग्री घटिया एवं निम्न स्तर की है। टैग रेगजीन को देना था। बालाजी ट्रेडर्स के द्वारा कपड़े के टैग दिये गये। वहीं धागा 2000 मीटर का गोला देना था पर फर्म के द्वारा 1000 से 1500 मीटर तक गोला दिया गया। वहीं स्टेन्सिल के लिए जो स्याही सप्लार्ई की गई वह दो सौ की जगह 100 एमएल की है। चौरसिया ने बताया कि इसमें भी अनिमिततायें की गई है। मांग न होते हुए भी समितियों को इनकी जबरदस्ती आपूर्ति की गई तथा उक्त प्रदत्त सामग्री दी कुछ और रेट में एवं पैसा वसूला कुछ और रेट का।
- भोपाल से अजयधीर