02-Aug-2018 07:51 AM
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टूरिस्ट सर्किट के लिहाज से विदेशी पर्यटकों के लिए सबसे मुफीद कूनो-पालपुर अभयारण्य पर लगभग 90 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। अभयारण्य में 134 बीट हैं, जिनमें तैनात 317 अधिकारी- कर्मचारियों पर हर महीने लगभग 79 लाख रुपए वेतन के रूप में खर्च होते हैं, इसके बावजूद गुजरात के गिर में शेर नहीं मिल पाए हैं। गिर के शेरों के लिए लगातार पहल होने के बावजूद केन्द्र और गुजरात सरकार उदासीन रवैया अपनाए हुए है। सूत्र बताते हैं कि दिल्ली-आगरा-जयपुर-मुंबई टूरिस्ट सर्किट के बीच में स्थित कूनो-पालपुर में शेर आने पर यहां विदेशी पर्यटकों की संख्या बढ़ सकती है।
कूनो अभयारण्य की स्थापना 1981 में हुई थी। 1991 में वन्य जीव संस्थान ने शेरों को बसाने श्योपुर के कूनों को बेहतर बताया गया था। 2003 में शेर लाने के लिए प्रदेश सरकार ने प्रस्ताव बनाकर केन्द्र को भेजा। कूनों में बाढ़-भूकंप का खतरा नहीं है। गिर में बाढ़ आने का खतरा लगातार रहता है। कूनो के जंगलों में पानी और बहुत से अनछुए स्थान हैं, जहां शेर आसानी से घूम सकते हैं। इंडियन वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट देहरादून के विशेषज्ञों ने कूनो को देश में सबसे बेहतर बताते हुए रिपोर्ट में कहा था कि यहां 150 से 200 साल तक कोई समस्या नहीं आ सकती है।
अमेरिका-कनाडा सहित अन्य देशों से पर्यटक औसतन 18 दिन के टूरिस्ट वीजा पर एशिया भ्रमण पर आते हैं। इस टूर में थाइलैंड, श्रीलंका, इंडोनेशिया का भ्रमण भी शामिल रहता है। गिर जाने पर पर्यटकों को अलग से दो से चार दिन का समय निकालना पड़ता है, जबकि श्योपुर आने के लिए अतिरिक्त समय नहीं निकालना पड़ेगा। पर्यटक जयपुर, दिल्ली, आगरा की यात्रा के साथ ही कूनो आ सकते हैं। अब तक खर्च लगभग 90 करोड़ रुपए, खजाने से निकल चुके हैं। 59.37 करोड़ रुपए के व्यय किए थे कूनो-पालपुर अभयारण्य में 1545 परिवारों के विस्थापन पर सरकार ने तत्कालीन समय में। वर्तमान में अभयारण्य की सीमा विस्तार के लिए 200 से अधिक परिवारों को फिर से विस्थापित करने की योजना बनाई गई थी।
मध्यप्रदेश में पिछले 14 साल से बीजेपी की सरकार है। केन्द्र और गुजरात में भी भाजपा सरकार है बावजूद इसके पिछले दो दशकों से गिर के शेरों के लिए तैयार पालपुर कूनो अभयारण्य में शेरों का इंतजार खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। यहीं वजह है कि जिले का विकास भी गति नहीं पकड़ पा रहा है। कांग्रेस जहां इसे लेकर बीजेपी पर निशाना साध रही है तो वहीं आम नागरिक भी जिले के विकास में इसे महत्वपूर्ण मान रहा है। बीजेपी की इस मामले पर चुप्पी अपने आप में कई सवाल खड़े कर रही है। वहीं कूनो सेंचुरी के अफसरों का कहना है कि हमने अपनी तरफ से पूरी तैयारी कर ली है। हमें बस अब केन्द्र से हरी झंडी का इंतजार है।
श्योपुर के जंगलों में वर्ष 1981 में शुरू हुई कूनो सिंह अभयारण्य परियोजना के तहत गुजरात के गिर अभयारण्य के शेरों की दुर्लभ प्रजाति को नया घर देने के लिए पालपुर कूनो अभयारण्य तैयार हो गया है। लेकिन दो दशकों से कभी सरकारों के अहम का टकराव तो कभी कोर्ट कचहरी की रुकावटों के चलते यहां शेरों की आमद नहीं हो सकी है। अब तक 24 गांवों के लोगों को विस्थापन की मार झेलनी पड़ी है, करोड़ों रुपए भी खर्च कर दिए गए। बावजूद इसके शेरों की गर्जना सुनने के लिए अभयारण्य और जिले में विकास की संभावनाएं देखने वाले लोगों का इंतजार खत्म नहीं हो रहा है। कांग्रेस इसके लिए भाजपा पर निशाना साध रही है। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता मीम अफजल ने कहा कि केन्द्र और राज्य सरकार को आपसी बातचीत पूरी कर यहां जल्द से जल्द शेर शिफ्ट करवाने चाहिए।
सिर्फ तारीख पर तारीख
2003 से 2013 तक मध्यप्रदेश, गुजरात एवं केन्द्र के बीच शेरों को लेकर मामला कोर्ट में झूलता रहा। 15 अप्रैल 2013 को कोर्ट ने गुजरात को शेर देने के लिए मध्यप्रदेश के पक्ष में फैसला सुनाया। कोर्ट के आदेश के बाद कार्ययोजना के लिए 6 माह का समय रखा लेकिन योजना समय से नहीं बनाई जा सकी। 2014 में विशेषज्ञ समिति द्वारा कूनो का क्षेत्रफल कम बताने पर क्षेत्रफल को 345 से बढ़ाकर 760 वर्ग किलोमीटर किया गया। आदिवासी बाहुल्य गांवों के रहवासी शेर लाने की शर्त पर ही गांव खाली करने को राजी हुए थे। इसके बाद 22 गांव खाली कराकर एरिया बढ़ाने की औपचारिकता कर ली गई है।
-श्याम सिंह सिकरवार