सर्वर की जांच से पीछे क्यों हटी सरकार
02-Aug-2018 07:46 AM 1234891
देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डिजिटल इंडिया की अलख जगाए हुए हैं वहीं मप्र में उनके इस अभियान को गंभीर झटका लगा है। दरअसल घोटालों के लिए बदनाम रहे मध्य प्रदेश में इन दिनों ई-टेंडर घोटाले की चर्चा जोरों पर है। यह अपने तरह का अनोखा घोटाला है, जिसमें घोटाला रोकने के लिए बनाई गई व्यवस्था को ही घोटाले का जरिया बना दिया गया। अनुमान लगाया जा रहा है कि यह करीब 3 लाख करोड़ रुपए का घोटाला है, जिसमें से अभी तक 1500 करोड़ रुपए का घपला पकड़ा जा चुका है। इस पूरे मामले में पांच आईएएस अधिकारियों की संलिप्तता सामने आई है और गौर करने वाली बात यह है कि ये अधिकारी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के करीबी माने जाते हैं। हालांकि मामला सामने आने के बाद सरकार ने इसकी जांच ईओडब्ल्यू को सौंप दी है। लेकिन अभी तक यह तय नहीं हो पाया है कि ई-टेण्डरिंग घोटाले का दोषी कौन है। सूत्र बताते हैं कि ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल में हैकिंग भोपाल में ही हुई है। अगर सरकार 10 साल के सर्वर की जांच करा ले तो सरा मामला सामने आ जाएगा। लेकिन सरकार के मुंह पर कालिख पोतने वाले जयचन्दों को सरकार न जाने क्यों बचा रही है। ई-प्रोक्योरमेंट सिस्टम में टेंडर को एंपावर्ड कमेटी अंतिम रूप देती है। इसके प्रमुख मुख्य सचिव बसंत प्रताप सिंह है। कमेटी में संबंधित विभाग के प्रमुख सचिव, वित्त के प्रमुख सचिव, मैप आईटी के प्रमुख सचिव को रखा गया है। ये कमेटी एमपीआरडीसी में 10 करोड़ से उपर की लागत वाले तथा जल निगम में 5 करोड़ की लागत के प्रोजेक्ट वाले टेंडरों को मंजूरी देती है। सरकार के ई-प्रोक्योरमेंट सिस्टम की खामी का फायदा उठाकर एमपीआरडीसी और जल संसाधन विभाग के टेंडरों में भी सेंधमारी उजागर हुई है। ई-टेंडरिंग में बड़े पैमाने पर होने वाले घपले का खुलासा सबसे पहले लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी (पीएचई) में हुआ, जहां एक सजग अधिकारी द्वारा पाया गया कि ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल में टेम्परिंग करके दो हजार करोड़ रुपए मूल्य के तीन टेंडरों के रेट बदल दिए गए थे। इस मामले में गड़बड़ी को लेकर विज्ञान व प्रौद्योगिकी विभाग के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी ने पीएचई के प्रमुख सचिव प्रमोद अग्रवाल को पत्र लिखा। इसके बाद, तीनों टेंडर निरस्त कर दिए गए। खास बात यह है कि इनमें से दो टेंडर उन पेयजल परियोजनाओं के हैं, जिनका शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 जून को करने वाले थे। मैपआईटी के प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी ने टेंपरिंग मिलने के बाद 116 करोड़ की लागत वाली सड़क के टेंडर निरस्त करने के लिए एमपीआरडीसी के एमडी डीपी आहूजा को पत्र भी लिखा। इसके बाद एमपीआरडीसी ने इस टेंडर को निरस्त करने के साथ 450 करोड़ की 5 पैकेज वाली सड़कों के री-टेंडर भी कर दिए हैं। कंपनियों को इसकी वजह तकनीकी खामी और वेबसाइट हैक होना बताया गया है। इससे पहले मैपआईटी जल निगम के 1 हजार करोड़ के तीन टेंडर निरस्त करवा चुका है। रस्तोगी ने जल संसाधन विभाग के 300 करोड़ के दो टेंडर निरस्त करने भी पत्र लिखे। इनमें संदिग्ध लाल क्रास दिखा था, जो हैक होने की पुष्टि करता है। इसमें पहले और दूसरे नंबर पर आने वाली कंपनियों के टेंडर कीमतों में मामूली अंतर है। मामला सामने आने के बाद मैप आईटी अफसरों ने ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल से पुराने ओपन टेंडर और ठेके पर दिए जा चुके टेंडर को देखने की सुविधा हटा दी है। पहले टेंडर में फाइनेंशियल बीड में पहले और दूसरे नंबर पर आने वाली कंपनियों को देखा जा सकता था। दरअसल, इस पूरे खेल में ई-पोर्टल में टेंपरिंग से दरें संशोधित करके टेंडर प्रक्रिया में बाहर होने वाली कंपनियों को टेंडर दिलवा दिया जाता था। इस तरह से मनचाही कंपनियों को कॉन्ट्रैक्ट दिलवाने का काम बहुत ही सुव्यवस्थित तरीके से अंजाम दिया जाता था। इस खुलासे ने एक तरह से मध्यप्रदेश में ई-टेंडरिंग व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी है और इसके बाद एक के बाद एक कई विभागों में ई-प्रोक्योरमेंट सिस्टम में हुए घपलों के मामले सामने आ रहे हैं। अभी तक अलग-अलग विभागों के 1500 करोड़ रुपए से ज्यादा के टेंडरों में गड़बड़ी सामने आ चुकी है, जिसमें मध्य प्रदेश रोड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एमपीआरडीसी), लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, जल निगम, महिला बाल विकास, लोक निर्माण, नगरीय विकास एवं आवास विभाग, नर्मदा घाटी विकास जल संसाधन सहित कई अन्य विभाग शामिल हैं। इस घोटालों को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज के नजदीकी माने जाने वाले करीब आधा दर्जन आईएएस शक के दायरे में हैं। इनमें सरकार के एक जयचन्द का नाम प्रमुखता से उभर कर सामने आ रहा है, जिनके बारे में कहा जाता है कि इन्होंने अपनी लाबिंग से मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया को उद्योग मंत्रालय से बाहर करवा दिया था। जयचन्द पर नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने भी आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि मामला सामने आने के बाद उक्त जयचन्द पीडब्ल्यूडी मुख्यालय के परियोजना क्रियान्वयन यूनिट से वहां के संचालक की अनुपस्थिति में दो बस्ते फाइलें बंधवाकर ले गए थे, जबकि वहां से फाइलें लेने के लिए एक निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना होता है और इसके लिए जिम्मेदारी तय है। अजय सिंह ने सवाल उठाया है कि आखिर फाइलों में ऐसा क्या था, जो सरकार के जयचन्द खुद वल्लभ भवन से निकलकर निर्माण भवन गए? उन्होंने इसे लेकर भी सवाल किया है कि जयचन्द आखिर वो फाइलें कहां लेकर गए? इधर, इस पूरे मामले में सरकार लीपापोती वाला रवैया अपना रही है। सरकार की तरफ से प्रयास किया जा रहा है कि किसी तरह से इस मामले पर पर्दा डाल दिया जाए। सरकार इस पूरे मामले को तकनीकी खामी कहकर बच निकलने का प्रयास कर रही है। वेबसाइट हैक होने को कारण बताकर सरकार इस मामले से अपना पीछा छुड़ाना चाहती है। सरकार की यह भी कोशिश है कि इस मामले को लेकर सवालों के कठघरे में खड़े खास अधिकारियों को बचाया जा सके। एक तरफ सरकार दोषी अधिकारियों को शह दे रही है, वहीं दूसरी तरफ इस घोटाले को उजागर करने वाले अधिकारी मनीष रस्तोगी को ही उनके पद से हटाते हुए छुट्टी पर भेज दिया गया। ऐसा होने से, उनके द्वारा इस घोटालों को लेकर जुटाए गए सबूतों से छेड़छाड़ की पूरी संभावना है। एक तरफ तो मध्य प्रदेश सरकार के प्रवक्ता और जनसंपर्क मंत्री नरोत्तम कहते हैं कि चवन्नी का घोटाला नहीं हुआ है, तो वहीं दूसरी तरफ इसकी जांच आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्लू) को सौंप दिया जाता है। ऐसे में स्वाभाविक सवाल उठता है कि अगर कोई घोटाला ही नहीं हुआ, तो फिर जांच किस बात की कराई जा रही है। इस पूरे मामले की जांच ईओडब्लू को सौंपे जाने को लेकर भी विपक्ष ने सवाल उठाया है। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने आरोप लगाया है कि व्यापमं की तरह इस मामले में भी जांच के नाम पर तथ्यों के साथ छेड़छाड़ किया जा रहा है। दरअसल, मध्य प्रदेश में ईओडब्ल्यू किसी भी जांच प्रक्रिया को अत्यंत धीमी कर देने और ठंडे बस्ते में डाल देने के लिए बदनाम रही है। इसलिए सरकार द्वारा इस घोटाले को उजागर करने वाले अधिकारी को छुट्टी पर भेजना और आनन-फानन में इसकी जांच ईओडब्ल्यू को सौंपना, उनकी मंशा पर गंभीर सवाल खड़ा करते हैं। बहरहाल, एक के बाद एक कई विभागों के टेंडरों में टेंपरिंग उजागर होने के बाद भी मध्य प्रदेश की राजनीति में वो उबाल नहीं है, जो चुनावी साल में ऐसे मामले को लेकर होना चाहिए था। कांग्रेस का रवैया इस मामले को लेकर बहुत ढीला-ढाला सा है। केवल अजय सिंह जैसे नेता ही इस मामले को लेकर सरकार पर राजनीतिक हमला करते हुए नजर आ रहे हैं। जबकि कुछ ही महीनों में होने वाले चुनाव के मद्देदजर, कांग्रेस इसे बड़ा मुद्दा बना चुकी है। वहीं सरकार खामोशी से इस मामले को रफा-दफा करने में जुट गई है। जबकि सरकार और सिस्टम के लिहाज से यह घोटाला बहुत गंभीर है। सायबर क्राइम को क्यों नहीं दी जांच ई-टेण्डरिंग घोटाला सायबर क्राइम से जुड़ा था। सरकार को इसकी जांच सायबर क्राइम को देने चाहिए थी, लेकिन सरकार ने इसे ईओडब्ल्यू को दे दिया। सभी जानते हैं कि ईओडब्ल्यू की कोई भी जांच पंद्रह साल से पहले पूरी नहीं होती है। यही नहीं ईओडब्ल्यू की शुरुआती जांच में मुंबई के दो आईपी एड्रेस से टेंडरों में टेंपरिंग किए जाने का पता चला है। ई टेंडरिंग की वेबसाइट को हैक कर जल निगम के टेंडर की शर्तें बदलने के लिए दो कंप्यूटर का उपयोग किया गया। इनकी आईपी ईओडब्ल्यू को मिल गई है। यह दोनो आईपी एड्रेस एयरटेल कंपनी के हैं। इनकी लोकेशेन मुंबई बताई जा रही है। ईओडब्ल्यू एयरटेल को पत्र लिखकर उनसे डिटेल मांगेगा। हैकर्स ने मई माह कंपनी के डिजिटल सिग्नेचर बदल दिए थे। इस सिग्नेचर के जरिए ई प्रोक्योरमेंट के संचालक टेंडर बिड को अथेंटिकेट करते हैं। टेंडर में गड़बड़ी सामने आने के बाद जब अधिकारियों ने अपने डिजिटल सिग्नेचर डालकर उसके हैश से अथेंटिकेशन करना चाहा तो नहीं हो सका। हैश किसी बैंक लॉकर कि दूसरी चॉबी की तरह होता है जो बैंक के पास होती है। वह उसे ग्राहक के चाबी लगाने के बाद लगाकर लॉकर खोलता है। यह खुलासा होने के बाद अधिकारी हतप्रभ रह गए। उन्होंने तत्काल इसकी जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारियों को दी। यह हैश केवल जल निगम के 1100 करोड़ के टेंडर के लिए बदले गए थे। अब सवाल यह उठता है कि सायबर से जुड़े मामले की पड़ताल ईओडब्ल्यू किस तकनीक कर पाएगी। घोटाले का राज एक फोन नंबर में मध्य प्रदेश में ई-टेंडरिग घोटाले को लेकर नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा है कि एक मोबाइल फोन की कॉल डिटेल की जांच कराई जाए तो सारा राज खुल जाएगा। नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर कहा है कि जल निगम, पीडब्ल्यूडी, एवं जल संसाधन विभाग के जिन निविदाओं में अंकित की गई राशि में गड़बड़ी की गई, उसमें डेमो आईडीएस का उपयोग किया गया है, जिसे भोपाल की एक कंपनी द्वारा परफॉरमेंस टेस्टिंग के लिए बनाया गया है। इस कंपनी के मुख्य कर्ताधर्ता के मोबाइल नंबर की कॉल डिटेल तथा कंपनी की गतिविधियों की जांच की जाए तो बड़े खुलासे होंगे। अगर इसकी तत्काल जांच नहीं कराई गई तो इस घोटाले के तथ्यों के साथ छेड़छाड़ शुरू हो गई है और उन्हें नष्ट करने की सुनियोजित साजिश शुरू कर दी गई है। नेता प्रतिपक्ष ने प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा कि ई-टेंडर के माध्यम से चहेती कंपनियों को टेंडर अवार्ड करना हैकिंग नहीं है, बल्कि आपराधिक षड्यंत्र एवं भ्रष्ट आचरण है। सिंह ने पत्र में लिखा कि जिन मुख्य विभागों के टेंडर में फर्जीकरण हुआ वह जल संसाधन, पीडब्ल्यूडी, जल निगम, नर्मदा घाटी, नगरीय कल्याण इत्यादि हैं। इन विभागों के अधिकारी संदेह के दायरे में हैं। -सुनील सिंह
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