02-Aug-2018 07:44 AM
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जिस सूबे में माफिया करोड़ों का राशन हजम कर पहलवानÓ बन जाते हों, उस सूबे में तीन मासूम बहनों की भूख से तड़प-तड़पकर मौत सरकारी सिस्टम पर शर्म की मुहर है। 23 हजार करोड़ पतियों की संख्या वाले जिस सूबे को देश के दूसरे सबसे अमीर राज्य का दर्जा हो, वहां भूख से आठ, चार और दो बरस की शिखा, मानसी और पारुल की मौत महज एक दुखद खबर ही नहीं व्यवस्था का त्रासद सच है।
यूं तो पोस्ट मार्टम के दौरान बच्चियों के पेट में अन्न का एक दाना नहीं मिला, मगर चार महीने पहले जब कैग ने दिल्ली में राशन व्यवस्था का पोस्टमार्टम किया था तो कुछ करोड़ों का अनाज राशन माफियाओं के पेट में नजर आया। यह वो राशन था, जो शिखा, मानसी, पारुल जैसे गरीबों के पेट में जाना था। लाशों की तवे पर रोटी हमेशा सिंकती आई है। लिहाजा तीनों बच्चियों की भुखमरी से मौत पर भी सियासत शुरू हो गई है।
आम आदमी पार्टी सरकार ने मजिस्ट्रेटी जांच कहकर बचाव की कोशिश की है तो विपक्षी कांग्रेस दिल्ली सरकार को घेरने में जुटी है। गेंद सब एक-दूसरे के पाले में करने में जुटे हैं, मगर यह जवाबदेही कोई लेने वाला नहीं है कि रिक्शा चोरी होने पर बेरोजगार पिता और मानसिक बीमार मां की तीन बच्चियों के पेट में अगर कई दिनों से एक दाना नहीं गया तो फिर इसका कुसूरवार कौन है? वह सिस्टम, जिस पर गरीबों को राशन देने का जिम्मा है, वह नेता, जो सामाजिक सुरक्षा का वादा कर हर पांच साल पर वोट लेते हैं, फिर वह राजनीति, जो गरीबी को लेकर आकर्षक नारे तो गढ़ती जरूर है मगर यह देखने की जरूरत नहीं समझती कि गरीबों के पेट में राशन जा रहा है या नहीं।
दिल्ली के मंडावली इलाके का साकेत ब्लॉक और यहां की गली नंबर 14 पर स्थित मकान संख्या 83 में पहले बच्ची का परिवार रहता था। रिक्शा चोरी होने पर बाप किराया नहीं अदा कर पाया तो उस मकान मालिक ने बाहर कर दिया, जिसका वह रिक्शा चलाता था। फिर लाचार बाप तीन बच्चियों और बीमार पत्नी सड़क पर आ गए। जब तीन बच्चियों की लाश का पोस्टमार्टम हुआ तो लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल के चिकित्सक यह देखकर चौंक गए कि उनके पेट में तो अन्न का एक दाना भी नहीं है। अब दिल्ली सरकार ने जीबीटी हास्पिटल में दोबारा बच्चियों का पोस्टमार्टम कराया। इस कदम से दो सवाल खड़े होते हैं या तो दिल्ली सरकार को लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल के चिकित्सकों की क्षमता पर संदेह है या फिर भुखमरी से हुई मौत सरकार स्वीकार करने की स्थिति में नहीं है, जिससे दोबारा दूसरे अस्पताल में पोस्टमार्टम कराकर रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा। उधर, दिल्ली प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन का आरोप है कि मनचाही रिपोर्ट के लिए दूसरे अस्पताल में सरकार पोस्ट मार्टम करा रही। 2011 के जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में 16, 787,941 लोग रहते हैं, जिसमें करीब 40 लाख परिवार झुग्गी-झोपडिय़ों में रहते हैं। हालांकि कुछ स्वतंत्र सर्वे के आंकड़े तो 80 लाख बताते हैं। हालांकि दिल्ली सरकार के आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ दिल्ली में 9.91 प्रतिशत गरीब ही हैं। जबकि देश में गरीबी का औसत 21.92 प्रतिशत है। मगर गरीबी का पैमाना भी तो देखिए।
न्यू वल्र्ड वेल्थ की रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई के बाद दिल्ली देश का दूसरा सबसे अमीर शहर है। दिल्ली में 23 हजार से अधिक करोड़पति हैं तो मुंबई में 46 हजार करोड़पति। रिपोर्ट में दिल्ली की कुल संपदा 450 अरब डॉलर आंकी गई है। उधर राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण के चौथे दौर (एनएफएचएस-4) में तैयार संपत्ति सूचकांक में दिल्ली और पंजाब के लोगों को सबसे ज्यादा अमीर बताया गया है। आंकड़ों के मुताबिक दोनों राज्यों में रहने वाले 60 फीसदी लोगों के पास अपने पक्के मकान बताए गए। मगर जब भूख से तड़पकर तीन बच्चियों की मौत की खबर उसी दिल्ली से आती है तो जेहन में दिल्ली की अमीरी की आड़ में छिपी गरीबी और आर्थिक असमानता की बात कौंध उठती है।
कैग खोल चुका राशन घोटाले की पोल
इसी साल अप्रैल में सामने आई कैग की रिपोर्ट में दिल्ली में राशन घोटाले की पोल खुली। रिपोर्ट के मुताबिक जिन आठ गाडिय़ों से 1500 क्विंटल राशन की ढुलाई हुई, उनका नंबर बाइक का निकला। यानी फर्जी ढंग से गाडिय़ों के नंबर डालकर राशन को माफिया अपने ठिकानों पर ले गए। 2013 से 2017 के बीच राशन वितरण में घोटाले को लेकर 16 लाख शिकायतें कॉल सेंटर को मिलीं मगर 42 प्रतिशत कॉल का ही जवाब दिया गया। राशन कार्ड धारकों को एसएमएस से अलर्ट जाना था, मगर 2453 मोबाइल नंबर राशन दुकानदारों का ही निकला। यानी दुकानदार खुद उपभोक्ता बन गए। 412 राशन कार्ड ऐसे मिले, जिसमें परिवार के सदस्यों का नाम कई बार लिखा था। एक हजार से ज्यादा राशन कार्डों में नौकरों का नाम शामिल था। इससे पता चलता है कि राशन माफिया अपने नौकरों के नाम कार्ड बनवाकर राशन उठा रहे थे। नियम के मुताबिक राशन कार्ड घर की महिला सदस्य के नाम पर बनता है। मगर 12852 कार्ड में एक भी महिला का नाम नहीं मिला। वहीं 13 मामलों में घर की सबसे बड़ी महिला सदस्य की उम्र 18 साल से भी कम निकली।
- इन्द्र कुमार