39 साल का मिथक
02-Aug-2018 07:23 AM 1234971
विंध्य क्षेत्र की बहुउद्देशीय बाणसागर नहर परियोजना का कार्य पूरा होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसका उद्घाटन मिर्जापुर के चनईपुर गांव से किया। यह एक ऐतिहासिक पल था जब एशिया की सबसे बड़ी नहर परियोजना का उद्घाटन कर प्रधानमंत्री ने इसे देश को समर्पित किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उस परियोजना का उद्घाटन किया जिसके बारे में कहा जाता है कि जिस प्रधानमंत्री ने इस परियोजना की आधारशिला आदि कार्यक्रम किया वह दोबारा पीएम नहीं बन सका। यह परियोजना अपने आप में इसलिये महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे तीन राज्यों मध्य प्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश की लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि की सिंचाई की जाएगी। मध्यप्रदेश के शहडोल जिले के सोन नदी पर बने बाण सागर नहर परियोजना से तीन राज्यों मध्यप्रदेश, बिहार और उत्तर प्रदेश में लाखों हेक्टेयर जमीन की सिंचाई कि जाएगी। इस महत्वकांक्षी परियोजना की शुरुआत 1978 में की गयी थी। तीनों राज्यों में 10 अगस्त 1973 में समझौता हुआ। जिसे बाद में योजना आयोग ने 10 अगस्त 1978 को पत्र संख्या 11-2(28)/77-1 सीएडी जारी कर परियोजना को मंजूरी दी। इस नहर परियोजना से कुल 46,46 क्युसेक क्षमता की बाण सागर पोषक नहर निकाली गई जिससे मध्य प्रदेश से मिर्जापुर के अदवा जलासय में पानी लाया जाएगा। मुख्य बांध की कुल लंबाई 1020 मीटर है जिसमें से 671.72 मीटर का पक्का बांध है। बांध में जल निकासी के लिए 50&60 फुट के रेडियल क्रेस्ट गेट लगाए गए हैं। मध्यप्रदेश में परियोजना का डूब क्षेत्र 58400 हेक्टेयर है, जिससे 336 गांव प्रभावित हुए। इनमें से 79 गांव पूरी तरह डूब गए, जबकि 257 गांव आंशिक तौर पर डूबे। बाण सागर परियोजना से मध्यप्रदेश में 1.54 लाख हेक्टेयर, उत्तर प्रदेश में 1.50 लाख हेक्टेयर और बिहार राज्य में 94 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई हो सकेगी। 3500 करोड़ की लागत से बनी इस 170 किमी नहर परियोजना के यूपी हिस्से का कार्य इसके शिलान्यास के 39 साल बाद पूरा किया जा सका है। इस नहर परियोजना का लाभ प्रदेश के दो बड़े जिलों मिर्जापुर और इलाहाबाद के असिंचित क्षेत्रों के 1.70 लाख किसानों को होगा। बाणसागर नहर से दोनों जिलों में 150131 लाख हेक्टेयर फसलों की सिंचाई संभव हो सकेगी। जिसमें मिर्जापुर में 75 हजार 309 हेक्टेयर और इलाहाबाद में 74 हजार 823 हेक्टेयर भूमि की सिंचाई हो सकेगी। बाणसागर परियोजना की परिकल्पना मध्यप्रदेश के विंध्य क्षेत्र में होने वाली वर्षा की अनिश्चितता को देखते हुए और उत्तर प्रदेश और बिहार राज्य के कुछ सर्वाधिक सूखा ग्रस्त क्षेत्रों को सिंचित करने के लिए की गई थी। परियोजना के निर्माण के लिए मध्यप्रदेश ने 50 फीसदी, उत्तर प्रदेश ने 25 फीसदी और बिहार ने 25 फीसदी वित्तीय सहायता देना स्वीकार किया था। परियोजना का काम दस साल में पूरा किया जाना था, लेकिन वित्तीय संसाधनों की सीमित उपलब्धता और सहभागिता के अनुसार अंशदान का भुगतान समय से न होने के कारण परियोजना का कार्य लटकता गया। मध्यप्रदेश के हिस्से में इस महत्वाकांक्षी अंतर्राज्यीय परियोजना को 2006 में पूरा कर लिया गया। जिसका उद्घाटन पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2006 में किया था। लेकिन विडम्बना यह है कि किन राज्यों को पानी उपलब्ध कराने में इस योजना की आधार भूमि यानी शहडोल जिले को इसका अधिक लाभ नहीं मिल पा रहा है। इस कारण इस क्षेत्र में सिंचाई की सबसे अधिक समस्या रहती है। परियोजना के साथ मिथक इस परियोजना के साथ एक मिथक यह भी है कि इसकी शुरुआत करने वाले को दोबारा प्रधानमंत्री बनने का मौका नहीं मिला। 1978 में मोरारजी देसाई ने इस परियोजना का शिलान्यास किया। एक साल बाद ही उनकी कुर्सी चली गई और वो दोबारा पीएम नहीं बन सके। यही नहीं पॉलिटिक्स में उनकी पकड़ भी कमजोर हो गई और आखिर में सन्यास भी ले लिया। मध्य प्रदेश में परियोजना पूरी होने के बाद वहां की तत्कालीन बीजेपी सरकार ने इसका लोकार्पण 2006 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से कराया। उसके बाद वह भी पीएम नहीं बन सके। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसका लोकार्पण किया है। -अक्स ब्यूरो
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