बांधों में उड़ रही धूल
02-Aug-2018 07:12 AM 1234948
बुंदेलखंड में सर्वाधिक बांधों वाला जिला महोबा है, यह बात जानकर चौंकिये मत क्योंकि इसके बाद भी यहां सिंचाई ही नहीं पीने के पानी की भी भारी किल्लत है। वर्षा के दिनों में भी टैंकरों से जलापूर्ति इसका जीता जागता उदाहरण है। सिंचाई के पानी की तो बात ही न करें क्योंकि पिछले कई वर्षों से बांध सूखे पड़े रहे तो खेत प्यासे रहे और इस साल भी बुंदेलखंड के जनपद महोबा में वर्षा नहीं हो रही जिससे यहां का किसान बहुत ही परेशान नजर आ रहा है। इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि लगभग आधा दर्जन बड़े बांध और डेढ़ दर्जन बांधनुमा तालाब होने के बाद भी यह जिला पिछले कई वर्षों से पानी की भारी कमी से जूझ रहा है। सभी सरकरों द्वारा अरबों की रकम फूंकने के बाद भी हालात बद से बदतर होते जा रहे है। महोबा जिले में खेतों की सिंचाई को पानी मिलना तो सपना बन गया है। यहां गांव देहात की बात तो छोड़ ही दीजिए मुख्यालय सहित जिले के सभी कस्बे बीते लगभग 10 साल से पेयजल समस्या से जूझ रहे है। कबरई बांध में तो कई साल से न्यूनतम जल स्तर से भी कम पानी रहा। कबरई कस्बे की जलापूर्ति के लिये केवल एक मात्र सहारा कबरई बांध है लेकिन उसमें भी पानी न होने के कारण कस्बे के लोग बूंद-बूंद पानी के लिए भटक रहे हैं । वर्ष 2009 में 850 करोड़ रुपये की लागत से शुरू की गई बुंदेलखंड की महत्वपूर्ण अर्जुन सहायक परियोजना को वर्ष 2015 में पूरा होना था। लेकिन परियोजना की लागत बढ़कर 2593.93 करोड़ पहुंच गई थी, जिससे बजट के अभाव में दो साल से परियोजना का कार्य अधर में लटक गया था। लेकिन योगी सरकार आने के बाद मार्च 2018 में इस योजना को योगी सरकार ने 161 करोड़ का बजट पास करके अधर में लटकी महत्वाकांक्षी परियोजना को हरी झंडी दे दी थी लेकिन 3 माह बीत जाने के बावजूद आज तक कार्य आरम्भ नहीं हो सका। प्रत्येक वर्ष बरसात के समय परियोजना के कार्य के नाम पर बांध का पानी बांध से बाहर निकाल दिया जाता है लेकिन कार्य आज तक नहीं हो सका जिससे किसानों की सिंचित जमीन भी बंजर हो गयी है। अगर अर्जुन सहायक परियोजना का कार्य पूर्ण होता है तो सबसे अधिक लाभ जनपद महोबा को ही मिलेगा। महोबा और झांसी जिले की सरहद पर बने लहच्यूरा बांध से जिले के कबरई बांध तक 90 किमी लंबी और 100 मीटर चौड़ी नहर लाई जा रही है। इस नहर के जरिए लहच्यूरा बांध, चंद्रावल बांध, अर्जुन बांध और कबरई बांध को जोड़े जाने की योजना है। इन बांधों से बांदा, हमीरपुर, झांसी और महोबा जनपद में नहरों से सिंचाई होगी। जिसका फायदा चारों जिले के किसानों को मिलेगा। साथ ही बुंदेलखंड हरा भरा होगा। सबसे ज्यादा फायदा महोबा जनपद को होगा। बांदा जिले के मटौंध, थाना क्षेत्र हमीरपुर जिले के मौदहा, कोतवाली क्षेत्रों के ग्रामों को सिंचाई सुविधा मिलेगी। परियोजना में अब तक 930.65 करोड़ रुपया खर्च हो चुका है लेकिन कार्य तो अभी 50 प्रतिशत भी नहीं हुआ है। बुंदेलखंड में सूखे की मार से मनुष्य, पशु पक्षी और जानवर कोई भी ऐसा प्राणी नहीं है जो परेशान न हो लेकिन उसके बावजूद यहां के जनप्रतिनिधि इतने मस्त है कि उन्हें किसी की चिंता ही नहीं है तभी तो अखण्ड इंटर कॉलेज के सामने स्थित खराब वाटर कूलर को 3 महीने से किसी भी जिम्मेदार नेता व अधिकारियों ने आज तक इस ओर ध्यान भी नहीं दिया। बुंदेलखंड बन रहा वनांचल.. प्रकृति की मार झेल रहे मोहन, सुक्खु, कलावती की आंखों में अब पानी नहीं रह गया कि वे अपने दु:ख पर दो बूंद आंसू बहा लें। घर की कोठली में रखा अन्न तलहटी में पहुंच चुका है। महाजन के कर्ज का बोझ उन्हें अंदर ही अंदर खाए जा रहा है। कभी वे पानी के अभाव में परती पड़े खेतों की ओर निहार रहे तो उनकी आंखे अपने बच्चों के नंगे तन पर टिक जा रही हैं। उनका लाचारी व बेबशी के आगे कोई बस नहीं चल रहा। हम बात कर रहे नक्सल क्षेत्र वनांचल की, जहां सूखी नहरें व परती खेतों में उड़ रही धूल के चलते इलाका बुंदेलखंड बनने की राह पर है। वैसे योगी सरकार अन्नदाताओं की आय दोगुनी करने का ङ्क्षढढोरा पीट रही है, लेकिन दशकों पूर्व बनी बांध-बंधियों की जर्जर हालत में सुधार का कोई ठोस प्रयास नहीं किया जा सका। वनांचल के पर्वतीय इलाके में मुबारकपुर, छित्तमपुर, मूसाखांड़, ढोढऩपुर सहित एक दर्जन गांव आते हैं। वैसे तो यहां बांध-बंधियों का जाल बिछा है। यहां के किसानों की खेती वर्षा पर आधारित है। -सिद्धार्थ पांडे
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