फर्जीवाड़ा...फर्जीवाड़ा...
02-Aug-2018 06:42 AM 1235112
मप्र में फर्जी जाति प्रमाण पत्र पर नौकरी करने के कई मामले सामने आए हैं, लेकिन सबसे अधिक विवादास्पद मामला डॉ. आरके रोकड़े यानी डॉ. राजेन्द्र कुमार रोकड़े का रहा है। रोकड़े की जाति और मूल निवास को लेकर एक दर्जन से अधिक शिकायतें आने के बाद उनकी जाति को लेकर एक बार फिर सवाल खड़े हो रहे हैं। अभी हाल ही में बालाघाट जिले की खैरलांजी तहसील के ग्राम कोथुरना के हंसलाल मंगल बिसेन ने पशुपालन विभाग में आवेदन देकर शिकायत की है कि डॉ. रोकड़े ने अपनी जाति और निवास को लेकर जो प्रमाण दिए हैं वे सभी फर्जी हैं। बिसेन ने राष्ट्रीय पाक्षिक अक्स से चर्चा में बताया कि डॉ. राजेन्द्र कुमार रोकड़े के पिता आत्माराम रोकड़े मूल रूप से महाराष्ट्र के निवासी है तथा वर्ष 1956 में मध्यप्रदेश राज्य के बनने के बाद वे स्कूल शिक्षा विभाग में भृत्य के पद पर स्थानांतरण होकर महाराष्ट्र से सिवनी जिले में आये थे। जिनकी जाति महाराष्ट्र में धनगड़ (धननगर) पिछड़ा वर्ग में आते हैं। सोनबा रोकड़े के पुत्र आत्माराम रोकड़े तीन भाई थे। उनके दो भाई वामन रोकड़े और विनेश्वर रोकड़े है। आत्माराम रोकड़े की संतान सुरेंद्र, नरेंद्र, पुष्पा बाई और राजेंद्र रोकड़े है। वहीं वामन रोकड़े की संतान धनराज और भास्कर रोकड़े है जो ग्राम भारसिंगी, तहसील नरखेड़ा जिला नागपुर महाराष्ट्र में खेती करते हैं। विनेश्वर की संतान तरीश और हरीश रोकड़े हैं। बिसेन ने बताया कि आत्माराम रोकड़े जब सिवनी आए तो सिवनी के मंगलीपेठ में रघुनंदन प्रसाद तिवारी के घर में किराये से रहते थे। आत्माराम रोकड़े ने सन् 1976-77 में ग्राम डूंगरिया में अपनी पत्नी के नाम भूमि क्रय की जिसमें रेवाराम वाघड़े 1/2 के हिस्सेदार थे। रेवाराम वाघड़े ने अपनी पत्नी शकुंतला बाई जौजे रेवाराम के नाम पर जमीन खरीदी थी। दोनों का नाम वेनू बाई जौजे आत्माराम शकुंतला जौजे रेवाराम वाघड़े शाकिन मंगलीपेठ, सिवनी, खसरा नं. 39, 41, रकवा 8.79/3.557 हिस्सेदार है। ग्राम पंचायत के रिकार्ड में क्रेता बेनू बाई पति आत्माराम की जाति का उल्लेख नहीं है। शकुंतला बाई पति रेवाराम वाघड़े ने जमीन खरीदी सन् 1976-77 में। विक्रेता गोविंद राव, महादेव प्रसाद गाडगिल सा. सिवनी से भूमि खरीदी गई। वेनू बाई जौजे आत्माराम, शकुंतला बाई जौजे रेवाराम वाघड़े सा. मंगलीपेठ है। तो डॉ. आर.के. रोकड़े का जन्म स्थान सा. डूंगरिया, कूटरचित दस्तावेज तैयार किये गये है, डॉ. आर.के. रोकड़े का जन्म 1959 है। सभी भाई बहनों से छोटा है। सभी अभिलेखों में उल्लेख है कि तीन भाईयों का डॉ. आर.के. रोकड़े की बहन पुष्पा पति बबनराव सावरकर का राजस्व अभिलेखों में कही नाम नहीं है। बहन की जानकारी को छुपाया गया, जो कि बेनू बाई पति आत्माराम की चार संतान है। बिसेन ने बताया कि डॉ. रोकड़े के पिता की सेवा पुस्तिका तथा शासकीय रिकार्ड में उनके वास्तविक मूल निवासी होने का प्रमाण पत्र जो उनके द्वारा छानबीन समिति को उपलब्ध कराया गया था इससे उनके अनुसूचित जनजाति का सदस्य न होकर सामान्य वर्ग में होने की पुष्टि हो जाती उसमें कहीं पर भी उन्हें अनुसूचित जनजाति का सदस्य होना नहीं बताया गया है। उनके पिता की मूल सेवा पुस्तिका यदि होती तो उनके द्वारा फर्जी रूप से सिवनी जिले से प्राप्त किया गया धनवार अनुसूचित जनजाति का प्रमाण पत्र स्वत: ही निरस्त हो जाता। इनके माता-पिता के मूल निवासी प्रमाण पत्र राशन कार्ड, पिता के मृत्यु प्रमाण पत्र में कहीं पर भी (धनवार) आदिवासी जनजाति का उल्लेख नहीं है। इनकी माता तथा पिता के पेन्शन के अभिलेखों में भी कहीं पर भी धनवार अनुसूचित जनजाति का उल्लेख नहीं है। इनके द्वारा समिति के समक्ष अपने माता-पिता के जमीन संबंधी दस्तावेज वर्ष 1988-89 के तथा वर्ष 2012-13 के लगाये गये है, जबकि अनुसूचित जनजाति का्र प्रमाण पत्र प्राप्त करने तथा उस पर छानबीन समिति द्वारा निर्णय लेने के लिए नियमानुसार वर्ष 1950 के पूर्व के राजस्व दस्तावेजों को ही आधार माना जाना चाहिए था, भारत सरकार गृह मंत्रालय के दिशा-निर्देश 22 फरवरी 1985 के अनुसार राजेन्द्र कुमार रोकड़े को एसटी का लाभ इनके पिता के मूल राज्य महाराष्ट्र में ही मिलना चाहिए था, क्योंकि इनके पिता मध्यप्रदेश में वर्ष 1956 के बाद (मध्यप्रदेश राज्य बनने के बाद) आये थे इसलिए इन्हें मध्यप्रदेश में आदिवासी होने का लाभ मध्यप्रदेश के आदिवासियों के लिए आरक्षित पदों के लिए नहीं मिलना चाहिए था। जबकि इनके द्वारा वर्ष 1998-99 में उप संचालक वर्ष 2005-06 में संयुक्त संचालक तथा वर्ष 2010 में संचालक, पशुपालन विभाग के पद पर मध्यप्रदेश के आदिवासी होने का लाभ लेकर आरक्षण में पदोन्नतियां प्राप्त की गई है जो कि पूर्णत: गलत है। तथा म.प्र. के आदिवासियों के साथ छलावा है। पेंशनधारी पिता को बीपीएल राशन कार्ड कैसे अगर मान भी लिया जाए कि डॉ. आरके रोकड़े द्वारा छानबीन समिति को दिए गए सारे दस्तावेज सही हैं तो उन दस्तावेजों में उनके माता-पिता का राशन कार्ड भी है। यह राशन कार्ड परिवार के मुखिया आत्माराम के नाम से जारी हुआ है और एक अन्य सदस्य उनकी पत्नी बेनू बाई हैं। इस राशन कार्ड में व्यवसाय के तौर पर सहायक शिक्षक पेंशनधारी लिखा गया है। इस राशन कार्ड में इन्हें गरीबी रेखा सर्वे सूची 2006 (बीपीएल सर्वेक्षण 2002-03) के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है। सवाल उठता है कि शासकीय नियमानुसार जो व्यक्ति पेंशनधारी है वह बीपीएल राशन कार्ड के लिए पात्र कैसे हो गया। - कुमार विनोद
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