02-Aug-2018 06:58 AM
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बिहार में अभी दो गठबंधन मैदान में हैं। भाजपा की भागीदारी वाला एनडीए जिसकी कमान नीतीश कुमार के हाथों में है और दूसरी ओर है कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल और एनसीपी का गठबंधन जिसकी बागडोर लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव संभाल रहे हैं। फिलहाल लालू यादव बेल पर हैं इसलिए पर्दे के पीछे सारे फैसले वे ही कर रहे हैं। दोनों गठजोड़ों ने अगले लोकसभा चुनाव के लिए सीटों के बंटवारे पर बात करनी शुरू कर दी है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह बिहार में एनडीए सरकार बनने के बाद पहली बार पटना आए थे। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने पुराने बयानों को भुलाकर सुबह उनके साथ जलपान किया और रात में उन्हें अपने घर खाने पर बुलाया। अमित शाह और नीतीश कुमार के बीच जो बातचीत हुई उसी पर निर्भर है कि बिहार में नीतीश और नरेंद्र मोदी साथ-साथ चुनाव लड़ेंगे या फिर 2014 की तरह 2019 में भी नीतीश अकेले पड़ जाएंगे।
इस बातचीत की खबर रखने वाले भाजपा के एक बड़े नेता बताते हैं कि अब मामला 20-20 पर फंस गया है। भाजपा के ये नेता 20-20 का मतलब कुछ इस तरह समझाते हैं: बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। नीतीश कुमार ने इशारों-इशारों में भाजपा नेतृत्व को यह कह दिया है कि 2019 में भाजपा को 40 में से 20 सीटों पर चुनाव लडऩा चाहिए और बाकी 20 सीटें अपनी सहयोगी पार्टियों के लिए छोड़ देनी चाहिए। लेकिन भाजपा की समस्या यह है कि इस वक्त लोकसभा में उसके बिहार से आने वाले 22 सांसद हैं। अगर पार्टी नीतीश कुमार की बात मान लेती है तो उसे अपने दो सिटिंग सांसदों के टिकट काटने होंगे। टिकट काटने से ज्यादा बड़ी बात यह होगी कि भाजपा नीतीश के सामने झुकती हुई दिखेगी और इसका असर उसकी पार्टी पर भी पड़ेगा। नीतीश कुमार के करीबी जदयू के एक नेता बताते हैं कि 20 लोकसभा सीटों पर लडऩे के बावजूद भाजपा ही बड़ी पार्टी रहेगी क्योंकि बाकी की 20 सीटों पर राम विलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को भी एडजस्ट किया जाएगा। नीतीश चाहते हैं कि बस इन्हीं तीन पार्टियों का गठबंधन ही बिहार में एनडीए की शक्ल में चुनाव लड़े। इसका मतलब होगा केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी को एनडीए से बाहर करना और कुशवाहा मतदाताओं को नाराज करने का जोखिम उठाना।
बिहार की सियासत को करीब तीस साल से समझने-बूझने वाले एक पत्रकार बताते हैं कि 1990 के दशक में नीतीश कुमार और उपेंद्र कुशवाहा बेहद करीब हुआ करते थे। एक वक्त ऐसा था जब नीतीश ने सुशील मोदी को हटाकर उपेंद्र कुशवाहा को विपक्ष का नेता बना दिया था। लेकिन इसके बाद दोनों के बीच दूरियां बढ़ती चली गई। जब से एनडीए में नीतीश कुमार की वापसी हुई है उपेंद्र कुशवाहा के लिए स्थितियां मुश्किल हो गई हैं और हो सकता है कि वे 2019 से पहले भाजपा को छोड़कर लालू यादव से दोस्ती कर लें। उधर भाजपा नीतीश कुमार के सामने दूसरा प्रस्ताव लेकर आई है। वह उन्हें 22-5-13 का प्रस्ताव मंजूर करने के लिए कह रही है। 22-5-13 का मतलब है 22 सीटों पर भाजपा चुनाव लड़ें, पांच रामविलास पासवान के परिवार के लिए छोड़ी जाएं और बाकी 13 सीटों पर नीतीश कुमार कुछ अपने उम्मीदवार उतारें और कुछ को एडजस्ट भी करें।
इस एडजस्टमेंट का स्वरूप कैसा होगा? सुनी-सुनाई बात यह है कि भाजपा रामविलास पासवान के छह सांसदों में से एक को जदयू के टिकट पर एडजस्ट करवाना चाहती है। इसके अलावा वह जदयू के खाते की सीटों पर ही राजद के बागी सांसद पप्पू यादव और उनकी पत्नी रंजीत रंजन - जो कांग्रेस से लोकसभा सांसद हैं - को भी एडजस्ट करना चाहती है।
गठबंधन का गणित पड़ रहा भारी
कुछ-कुछ ऐसी ही स्थिति दूसरे गठबंधन में भी है। कांग्रेस चाहती है कि 2019 में लालू यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव 20-20 के फॉर्मूले पर सीटों का बंटवारा करें। 20 सीटों पर राजद के उम्मीदवार चुनाव लड़ें और बाकी 20 कांग्रेस, एनसीपी, जीतनराम मांझी की हम और एनसीपी के लिए छोड़ी जाएं। उपेंद्र कुशवाहा अगर इस गठबंधन में आते हैं तो उन्हें भी चार सीटें मिलेंगी। लेकिन तेजस्वी यादव वैसा ही कुछ चाहते हैं जैसा भाजपा ने 2014 में किया था। 30 सीटों पर वे अपने पार्टी के उम्मीदवार लड़ाना चाहते हैं और बाकी 10 सीटें सहयोगियों के लिए छोडऩा चाहते हैं। ऐसे में बिहार की खबर रखने वाले एक बड़े कांग्रेसी नेता बताते हैं कि वहां जो पेंच फंस गया है उसे सुलझाना राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के बस की बात नहीं है। अब तो जब सोनिया गांधी और लालूजी बात करेंगे तभी मामला बन सकेगा।
- विनोद बक्सरी