कर्ज माफी की आस
19-Jul-2018 09:51 AM 1234770
कर्नाटक सरकार की ओर से किसानों के 34 हजार करोड़ रुपये के कर्ज माफ करने की घोषणा यही बता रही है कि कर्ज माफी ने किस तरह एक राजनीतिक बीमारी का रूप ले लिया है। यह एक ऐसी राजनीतिक बीमारी है जो बैैंकिंग व्यवस्था के साथ-साथ देश की आर्थिक सेहत पर भी बुरा असर डाल रही है। हालांकि अब तक के अनुभवों के साथ हर आर्थिक नियम यही गवाही दे रहा है कि किसानों के कर्ज माफ करने से न तो उनका भला होता है और न ही बैैंकों का, लेकिन एक के बाद एक राज्य ठीक यही काम कर रहे हैैं। वे यह जानते हुए भी कि कर्ज माफी की लोक-लुभावन नीति का परित्याग नहीं कर पा रहे, इससे किसानों के हित नहीं सध रहे। मप्र में किसानों को आस जगी है कि इस चुनावी साल में उन्हें कर्ज माफी की सौगात मिल सकती है, इसलिए किसानों में कर्ज लेकर खेती करने की होड़-सी मच गई है। आलम यह है कि पिछले साल की तुलना में तीन गुने से अधिक किसानों ने अब तक सहकारी बैंकों से कर्ज ले लिया है और हजारों प्रकरण बैंकों की शाखाओं में पेंडिंग हैं। खरीफ का कर्ज किसानों को 30 सितम्बर तक वितरण होना है। गौरतलब है कि चुनावी साल में किसानों की कर्ज माफी बड़ा मुद्दा बन जाता है और राजनैतिक दलों में किसानों का कर्जा माफ करने की घोषणा करने की होड़ लग जाती है। इसी के मद्देनजर आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए खरीफ सीजन में कर्ज लेने किसानों में होड़ मची हुई है। गौरतलब है कि 6 जून को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंदसौर में घोषणा की थी कि अगर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो 10 दिन में किसानों के कर्ज माफ कर दिए जाएंगे। उसके बाद से कर्ज लेने का सिलसिला तेज हो गया है। प्रदेश के सभी जिलों में स्थित सहकारी बैंकों के साथ ही अन्य बैंकों से खेती के लिए बड़ी संख्या में कर्ज लिया जा रहा है। ज्ञातव्य है कि प्रदेश में करीब 86 लाख किसान हैं। इनमें किसान क्रेडिट कार्ड 66 लाख किसानों के बने हैं। इन किसानों ने विभिन्न स्त्रोतों के माध्यम से 74 हजार करोड़ का कर्ज ले रखा है। जानकारी के अनुसार, नाबार्ड ने वर्ष 2018-19 में प्रदेश सरकार को 21,000 करोड़ रुपए दिए है, जिसमें से 4,000 करोड़ रुपए सिंचाई योजनाओं, सड़क और ग्रामीण क्षेत्रों में आधारभूत संरचना के लिए, 3000 करोड़ रुपए सिविल सप्लाइज कॉरपोरेशन और मध्यप्रदेश राज्य सहकारी विपणन संघ मर्यादित (मार्कफेड), फसली ऋण देने के लिए 10,000 करोड़ रुपए तथा 4,000 करोड़ रुपए कृषि क्षेत्र में निवेश हेतु कॉमर्शियल और कोऑपरेटिव बैंक को देगा। कर्ज के प्रति किसानों की बढ़ती रूचि व सहकारिता से किसानों को जोडऩे के लिए सहकारी बैंकों ने वर्ष 2018-19 में लक्ष्य में वृद्घि कर दी है। खरीफ सीजन के लिए कर्ज मई से सितम्बर तक दिया जाता है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश के जिला सहकारी केंद्रीय बैंकों से जुड़े प्राथमिक कृषि साख सहकारी समितियों के डिफाल्टर किसानों के जून 2017 तक के बकाया ऋण पर 3158 करोड़ रुपए के ब्याज को माफ कर दिया। विडंबना यह है कि अगर राज्य सरकारें किसान कर्ज माफी से बचना भी चाहें तो कथित किसान हितैषी समूह और विपक्षी दल उन्हें किसान विरोधी करार देकर उन पर दबाव बनाते हैैं। पिछले कुछ समय से तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ही यह अभियान छेड़े हुए हैैं कि किसानों की समस्याओं का समाधान उनके कर्जे माफ करने में हैै। यह ठीक है कि केंद्र सरकार कर्ज माफी की योजनाओं में भागीदार नहीं बन रही है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि भाजपा शासित राज्य सरकारें भी कर्ज माफ करने की घोषणा करके खेती और किसानों का कथित तौर पर भला करने का संदेश देने में लगी हुई हैैं। यह तो समझ आता है कि किसी आपदा की स्थिति में किसानों के कर्ज माफ किए जाएं, लेकिन इसका कोई औचित्य नहीं कि रह-रह कर उनके कर्ज माफ होते रहें। राज्य सरकारें ऐसा करके बैैंकों को खोखला करने के साथ ही आर्थिक नियमों से खिलवाड़ भी कर रही हैैं। इसी के साथ वे जाने-अनजाने ईमानदारी से कर्ज चुकाने वाले किसानों को यह गलत संदेश भी दे रही हैैं कि कर्ज चुकाने से बचने में ही समझदारी है। इस पर हैरत नहीं कि एक बड़ी संख्या में किसान यह मानकर चलने लगे हैैं कि देर-सबेर उनके कर्ज तो माफ हो ही जाएंगे। पता नहीं क्यों राज्य सरकारें यह समझने से इन्कार कर रही हैैं कि अधिकतर किसान खेती के लिए नहीं, बल्कि अपनी अन्य जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्ज लेते हैैं? किसान हितैषी कहलाने के लोभ में वे यह भी नहीं देख पा रही हैैं कि कर्ज माफी उन समस्याओं का समाधान नहीं जिनसे कृषि और किसान दो-चार हैैं। कर्ज माफी का फैसला काफी मुश्किल गौरतलब है कि मप्र में कर्ज वितरण का एक तिहाई काम सहकारी बैंकों के पास है। सहकारी बैंक किसानों को सरकार की स्कीम के तहत जीरोÓ फीसदी ब्याज पर देती है। खाद का कर्ज तो 10 फीसदी कम में किसानों को मिलता है। करीब 20 हजार करोड़ का कामकाज सहकारी बैंकों का है। शेष कर्ज कमर्शियल बैंक देते हैं जो 4 प्रतिशत पर किसानों को मिलता है। कृषि विभाग के सूत्रों का कहना है कि योगी सरकार की तरह यदि ट्रैक्टर खरीदी के लिए कर्ज लेने वाले किसानों को छोड़ दिया जाए तो भी किसानों पर करीब 45 हजार करोड़ का कर्ज है। रिकवरी का प्रतिशत हर साल करीब 70 फीसदी होता है। ऐसे में कर्ज माफी का फैसला मप्र सरकार के लिए काफी मुश्किल होगा। - विशाल गर्ग
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