19-Jul-2018 09:58 AM
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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड के इस फैसले का अमेरिका के अंदर और बाहर दोनों जगह विरोध हो रहा है। खुद अमेरिकी प्रशासन के अंदर आने वाली संस्थाएं - अमेरिकी एयर फोर्स और पेंटागन के अधिकारी इस फैसले से नाखुश हैं। अमेरिकी मीडिया की मानें तो अमेरिकी वायु सेना के अधिकारियों को लगता है कि स्पेस फोर्सÓ के गठन के बाद उनके संसाधनों में भारी कटौती कर दी जाएगी। साथ ही वायु सेना पूरी आजादी से काम भी नहीं कर सकेगी। एयर फोर्स सेक्रेटरी हीथर विल्सन के मुताबिक भविष्य में स्पेस फोर्स और वायु सेना के बीच मतभेद पैदा होने की संभावना है क्योंकि वायु सेना पहले से ही स्पेस कमांड संभाल रही है।
वहीं, काम के बोझ से दबे पेंटागन के अधिकारियों की चिंता यह है कि वह सेना की इस छठी ब्रांच को कैसे संभालेंगे। बीते अक्टूबर में स्पेस फोर्सÓ से जुड़ी खबरें आने के बाद अमेरिकी रक्षा मंत्री जेम्स मैटिस ने भी अमेरिकी संसद को ऐसा ही तर्क देते हुए इसके गठन की खबरों को खारिज कर दिया था। संसद को लिखे अपने पत्र में उन्होंने कहा था, मैं रक्षा विभाग में एक नई सैन्य ब्रांच शुरू करने के पक्ष में बिलकुल नहीं हूं। इस समय हम वैसे भी काम के बोझ को कम करने के लिए कई अभियानों को एक करने पर ध्यान केंद्रित कर हैं।Ó मैटिस का यह भी कहना था, यह इसलिए भी नहीं होना चाहिए कि स्पेस फोर्स के लिए बहुत बड़े बजट की जरूरत होगी और इसके लिए हमें अपने कई रक्षा अभियानों में कटौती करनी पड़ेगी।Ó
ट्रंप के अलावा रिपब्लिकन पार्टी के बहुमत वाली संसद को भी लगता है कि चीन और रूस की अंतिरक्ष में बढ़ती गतिविधियों को रोकने के लिए स्पेस फोर्सÓ बनाना जरूरी है। कुछ महीने पहले ही अमेरिकी इंटेलिजेंस प्रमुख डैन कोट्स ने सीनेट को बताया था कि चीन अंतरिक्ष से जुड़े अपने एक रक्षा कार्यक्रम के तहत एंटी-सेटेलाइट तकनीक (एएसएटी) का निर्माण करने में सफल हो गया है। इस तकनीक से वह कभी भी किसी सेटेलाइट की कार्य प्रणाली को नष्ट कर सकता है।
अमेरिकी थिंक टैंक न्यू अमेरिकाÓ से जुड़े विदेश मामलों के विशेषज्ञ पीटर सिंगर एक साक्षात्कार में कहते हैं, चीन की यह नयी तकनीक युद्ध के समय गेम चेंजर साबित हो सकती है। इससे युद्ध के परिणामों को तेजी से अपनी ओर मोड़ा जा सकता है।Ó पीटर इसकी वजह बताते हुए कहते हैं, आज अमेरिकी सेना संचार, समन्वय, नेविगेशन और निगरानी सहित हर सैन्य गतिविधि में सेटेलाइट तकनीक पर निर्भर है। यही नहीं, नागरिक मामलों में भी अब अमेरिका की निर्भरता सेटेलाइट तकनीक पर काफी ज्यादा बढ़ चुकी है।Ó वे आगे कहते हैं कि अब अगर ऐसे में युद्ध के समय चीन अपने एंटी-सेटेलाइट हथियार से अमेरिकी सेटेलाइटों को नष्ट कर देगा तो जाहिर है अमेरिका के लिए उससे मुकबला करना मुश्किल हो जाएगा क्योंकि ऐसा होने पर अमेरिका तकनीक के मामले में दशकों पीछे पहुंच जाएगा।
कुछ अमेरिकी रक्षा अधिकारियों ने अमेरिकी संसद को यह भी बताया है कि एंटी-सेटेलाइट तकनीक तो चीन की एक बड़ी योजना का छोटा सा हिस्सा मात्र है। इनके मुताबिक करीब एक दशक से अंतरिक्ष पर विशेष ध्यान दे रहे चीन ने 2015 में स्ट्रेटजिक सपोर्ट फोर्सÓ का गठन किया है जिसका मकसद युद्ध के लिए अंतिरक्ष, साइबर और इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों को मजबूत करना है। डोनाल्ड ट्रंप के इस फैसले ने पूरी दुनिया को चिंता में डाल दिया है। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकारों की मानें तो इस फैसले के बाद अंतरिक्ष में अब ज्यादा दिन तक शांति नहीं रहने वाली।
इनके मुताबिक अब रूस, चीन और अमेरिका के बीच एक नई तरह की रेस शुरू हो जायेगी जिसका मकसद अंतरिक्ष में अपना-अपना प्रभुत्व बढ़ाना होगा।
क्या यूएन की आउटर स्पेस-संधि का उल्लंघन होगा
संयुक्त राष्ट्र संघ में 1967 में 100 से ज्यादा देशों के बीच आउटर स्पेस-संधिÓ हुई थी। इस संधि का मकसद अंतरिक्ष को सैन्य गतिविधियों से दूर रखना था। इसके अनुच्छेद-4 में लिखा है कि संधि के सदस्य देश अन्य ग्रहों, अंतरिक्ष स्टेशनों या खगोलीय पिंडो का इस्तेमाल केवल शांति पूर्ण उद्देश्यों के लिए ही करेंगे। इसमें यह भी कहा गया है कि सदस्य देश परमाणु हथियार या सामूहिक विनाश के अन्य हथियारों को अंतरिक्ष में तैनात नहीं कर सकते। आउटर स्पेस-संधिÓ के तहत कोई भी देश अंतरिक्ष में सैन्य अड्डे की स्थापना और हथियारों का परीक्षण भी नहीं कर सकता है। यूएन की आउटर स्पेस-संधिÓ के नियमों को देखते हुए भी अमेरिकी स्पेस फोर्सÓ पर दुनिया की निगाहें लगी हुई हैं। दरअसल, अभी अमेरिका की ओर से स्पेस फोर्सÓ की कार्यप्रणाली के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गयी है। ऐसे में देखना यह भी है कि दुनिया की ये पहली स्पेस फोर्सÓ क्या यूएन की आउटर स्पेस-संधिÓ के उन नियमों का उल्लंघन करने वाली है जिनके तहत अंतरिक्ष का इस्तेमाल केवल शांतिपूर्ण उद्देश्योंÓ के लिए ही हो सकता है।
- माया राठी