19-Jul-2018 09:46 AM
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वसुंधरा राजे ने मदन लाल सैनी को प्रदेश अध्यक्ष बनवाकर यह दर्शा दिया है कि पार्टी में उनका इकबाल बुलंद है। सैनी राज्यसभा के सदस्य हैं और उम्र भी 75 हो चुकी है। लिहाजा उनके सूबेदार रहते उम्मीदवारों के चयन में वसुंधरा फिर मनमानी करेंगी। नतीजतन कल तक वसुंधरा को पानी पी-पीकर कोसने वाले संघी अतीत वाले भाजपाई भी अब उन्हीं की परिक्रमा में जुट गए हैं। वसुंधरा का विरोध कर रहे सबसे वरिष्ठ पार्टी विधायक घनश्याम तिवाड़ी फिलहाल अकेले पड़ गए हैं। अपना इस्तीफा तो उन्होंने पहले ही भेज दिया था आलाकमान को।
भाजपा ने 72 दिन के इंतजार के बाद मदन लाल सैनी को राजस्थान भाजपा का अध्यक्ष बनाया है। 1943 में पैदा हुए 75 साल के सैनी अशोक परनामी के उत्तराधिकारी हैं, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर उनकी चुनौतियां काफी पेंचीदा हैं। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सेवी के रूप में उन्होंने तमाम चुनौतीपूर्ण मुकाम तय किए हैं। उनकी नई पारी जितनी रोचक है, उतना ही रोमांच और कठिन राहों से भी भरी हैं।
राजस्थान की राजनीति संस्कार, परंपरा, संस्कृति और रवायत में पिरोई है। भारतीय संस्कृति की अलग छाप छोड़ते राज्य में आज भी तमाम परंपराएं अपना स्थान बनाए हैं। इसका एक ताजा उदाहरण फिल्म पद्मावत के विरोध से देखा जा सकता है। काला हिरण शिकार मामले में फिल्म अभिनेता सलमान खान की दुश्वारियों की वजह भी वहां की संस्कृति ही है। राजपूत, जाट, गुर्जर, ब्राह्मण, मीणा, भील जैसी तमाम जातियां जटिल राजनीतिक कॉकटेल बनाती हैं। सभी वर्गों के अपनी पहचान बनाने वाले बड़े नेता भी हैं। ऐसे में मदन लाल सैनी के लिए अपनी जगह बना पाना भी एक बड़ी चुनौती है। वह भी तब जबकि वह 75 साल के हैं और प्रदेश में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले पहली बार अगली पंक्ति की राजनीति का बोझ कंधो पर है।
राजस्थान भाजपा में दो खेमे है। पहला खेमा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का है। दूसरा खेमा उनके विरोधियों का है। एक तादाद तटस्थ पार्टी के लोगों, नेताओं की भी है। वसुंधरा का खेमा राज्य की राजनीति में उनका लगातार वर्चस्व देखना चाहता है। वह सभी राजनीतिक निर्णय के लिए वसुंधरा राजे की छवि के साथ खड़े हैं। वसुंधरा राजे राज्य की दो बार की मुख्यमंत्री ही नहीं बल्कि भाजपा, संघ और राज्य की राजनीति में दमदार हैसियत रखती हैं। वुसंधरा का केन्द्रीय नेतृत्व के साथ खराब समीकरण और प्रदेश में पार्टी तथा संघ के भीतर उनके विरोधियों की बड़ी तादाद भी कोई छिपी बात नहीं है।
वुसंधरा की छवि और राजनीति के बरअक्स उनके विरोधी खड़े हैं। सामने से कम पर्दे के पीछे की राजनीति में ज्यादा सक्रिय हैं। वुसंधरा के विरोधियों को भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व समय-समय पर जोड़े रखता है। ऐसे में मदल लाल सैनी के सामने सभी को साधने की चुनौती है। दबंग स्वभाव की वसुंधरा को भी और उनके विरोधी खेमे को भी।
वसुंधरा के करीबी मानते हैं कि प्रदेश अध्यक्ष बनवाने में जिस तरह से केंद्रीय हाई कमान को समझौता करना पड़ा है, आगे उसकी प्रतिक्रिया देखने में आ सकती है। नये भाजपा अध्यक्ष मदन लाल सैनी के माध्यम से केन्द्र अपनी थोपने का प्रयास कर सकता है। राज्य में विधानसभा चुनाव प्रचार की टीम, टिकट वितरण, प्रचार अभियान की तैयारी, स्टार प्रचारक समेत तमाम पर पेंच फंस सकता है। इन सभी से पार पाना सैनी के लिए बहुत आसान नहीं होगा।
विधानसभा चुनाव का चेहरा
बड़ा सवाल यह भी है कि राज्य विधानसभा चुनाव में मुख्य जिताऊ चेहरा कौन होगा? मई 2014 के बाद से जहां भी विधानसभा चुनाव हुए हैं, जिताऊ चेहरा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ही रहे हैं। क्या राजस्थान में ऐसा हो सकेगा? वुसंधरा राजनीति में माहिर खिलाड़ी हैं। विरोधियों को कुछ भी हाथ नहीं लगने देती। यहां तक कि वह विरोधियों के राजनीतिक दमन से भी परहेज नहीं करती। पार्टी के वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवाड़ी इसका सीधा उदाहरण हैं। यही वजह है कि भूपेन्द्र यादव, ओम माथुर जैसे भाजपा नेता भी वसुंधरा के मामले में संभलकर जुबान खोलते हैं। वैसे राजस्थान स्विंग स्टेट रहा है। एक बार कांग्रेस तो एक बार भाजपा सत्ता में आती रही है। लेकिन भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व 2019 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए राज्य में सत्ता में वापसी के लिए कई विकल्प अजमाना चाहता है। राजस्थान गुजरात से सटा राज्य है। इसलिए भी इसे अहमियत दी जा रही है। भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व चाहता है कि प्रधानमंत्री का आभा मंडल बनाए रखने के लिए जरूरी है कि चुनाव के नतीजे सुखद आएं।
-जयपुर से आर.के. बिन्नानी