भांजी निकली सयानी, मुआवजे के लिए गढ़ी कहानी
17-Jul-2013 08:53 AM 1234814

एक तरफ तो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सरकार की पूरी सामथ्र्य के साथ उत्तराखंड आपदा पीडि़तों को निस्वार्थ भाव से बचाने का प्रयास कर रहे थे तो वही दूसरी तरफ कुछ फर्जी पीडि़त ऐसे भी थे जो मुआवजे के लिए झूठी कहानियां गढऩे में भी पीछे नहीं हटे। इन्हीं में से एक लड़की स्नेहलता उर्फ नेहा शर्मा और उसकी बहन आयुषी ने जिस तरह मध्यप्रदेश शासन को चकमा दिया है उससे लगता है कि एक तरफ तो शासन सतर्क नहीं है और दूसरी तरफ लोगों में भी इतनी नैतिकता नहीं बची है कि वे सच्ची बात बताकर साहस का परिचय दें।
स्नेहलता की कहानी लगातार फिल्मी कहानी के रूप में सामने आई। स्नेहलता की मुलाकात मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से उत्तराखंड में हरिद्वार स्थित शांतिकुंज में हुई थी जहां वह अपने लापता माता-पिता को तलाशने आई थी। मुख्यमंत्री ने जब स्नेहलता उर्फ नेहा शर्मा की करुण कहानी सुनी तो वे द्रवित हो गए और स्नेहलता अन्य यात्रियों के साथ उत्तराखंड से चाटर्ड विमान द्वारा भोपाल पहुंच गई जहां भोपाल के जेपी चिकित्सालय में उसे भर्ती किया गया। मुख्यमंत्री ने आर्थिक सहायता और सरकारी नौकरी की घोषणा की। एक सहृदय व्यक्ति होने के नाते वे जो कुछ कर सकते थे उन्होंने किया। बल्कि एक कदम आगे बढ़कर स्नेहलता को अपनी मुंह बोली बहन भी मान लिया। भोपाल में भर्ती रहने के दौरान स्नेहलता मानसिक आघात से जूझ रही थी। उसके पिता महावीर प्रसाद पत्नी के साथ 13 जून को भिंड से केदारनाथ रवाना हुए थे। किंतु रास्ते में भारी बारिश के कारण वे वहां तक नहीं पहुंच सके। उधर टीवी पर केदारनाथ की खबर सुनकर स्नेहलता ने अपने माता-पिता के गुम होने की सूचना दी और 20 जून को अकेले ही उन्हें लेने हरिद्वार चली गई। इधर स्नेहलता हरिद्वार पहुंची और 22 जून को महावीर प्रसाद सकुशल भिंड आधे रास्ते से ही लौट आए। अब स्थिति बड़ी चिंतनीय हो गई। महावीर प्रसाद को बेटी की चिंता थी तो बेटी उनकी तलाश में उत्तराखंड भी भटक रही थी। 30 जून को स्नेहलता हरिद्वार के मध्यप्रदेश कैंप में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से मिली और उन्हें अपनी व्यथा सुनाई। मुख्यमंत्री ने उसे अन्य पीडि़त तीर्थयात्रियों को विशेष विमान द्वारा भोपाल भेजने और भोपाल में चिकित्सा सुविधा मुहैया कराने का निर्देश दिया। इस बीच नेहा के माता-पिता को किसी ने सूचित किया कि उनकी बिटिया भोपाल के जेपी अस्पताल में एक जुलाई को भर्ती करायी गई है। महावीर दौड़े चले आए और जेपी अस्पताल में भर्ती अपनी बेटी से मिलने चले गए। स्नेहलता की बहन आरुषि भी स्नेहलता के पिता के साथ आ गई थी। दोनों पिता-पुत्री अस्पताल पहुंचे जहां एक बिना स्क्रिप्ट का ड्रामा देखने को मिला। 2 जुलाई की सुबह न केवल स्नेहलता बल्कि पिता के साथ आई आरुषि ने भी महावीर प्रसाद को पहचानने से इनकार कर दिया। महावीर प्रसाद बेटियों के संदिग्ध व्यवहार से ठगे से रह गए। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि उनके साथ क्या हो रहा है। साथ में आई छोटी बिटिया भी कह रही थी कि महावीर प्रसाद उसके पिता नहीं पिता समान हैं। महावीर प्रसाद का कहना था कि उनके 4 बेटे और तीन बेटियां हैं वह पत्नी विद्या देवी को लेकर केदारनाथ गए थे, लेेकिन रास्ते से ही लौट आए। उधर स्नेहलता ने कहा कि उसके दो भाई और चार बहनें हैं। केदारनाथ में माता-पिता के साथ दो बहनों और दो भाईयों की मौत हो गई। आरुषि और स्नेहलता सफेद झूठ बोल रहीं थी। जब शाम तक अधिकारियों और चिकित्सकों ने उन्हें धमकी भरे अंदाज में समझाइश दी तो उनके ज्ञान चक्षु खुले और उन्हें अहसास हुआ कि जो कुछ उन्होंने किया है वह दंडनीय अपराध होने के साथ-साथ उनके माता-पिता की प्रतिष्ठा के लिए भी घातक है। बाद में दोनों लड़कियों ने महावीर प्रसाद को अपना पिता स्वीकार कर लिया। हालांकि बेटी के व्यवहार से क्षुब्ध महावीर प्रसाद ने कहा कि भगवान ऐसी औलाद किसी को न दो मुझे ऐसी बेटी नहीं चाहिए जो मुझे पिता ही न माने।
इस पूरे घटनाक्रम में कई संदिग्ध कहानियां निकलकर सामने आ रही है। यह तो तय है कि दोनों लड़कियों ने मुआवजा और नौकरी के लिए मनगढ़ंत कहानी बना ली थी, लेकिन यह नहीं कह सकते कि इसमें और किसकी भूमिका थी। किसने उन्हें यह लालच दिया था। माता-पिता की भूमिका भी पूरी तरह पाक साफ नहीं है। उन्होंने एक भी बार अपनी  बेटी से संपर्क नहीं साधा? स्नेहलता 4 भाईयों के बावजूद अकेली क्यों माता-पिता को तलाशने चली गई। उसने 22 जून से 30 जून के बीच घर फोन क्यों नहीं किया? फोन करती तो शायद घर पर माता-पिता पहुंच गए हैं यह इत्तिला मिल सकती थी। पिता के साथ आरुषि भोपाल आई और उसने तत्काल पिता को पहचानने से इनकार कर दिया। क्या यह नाटक सुनियोजित था? पिता को इसकी जानकारी क्यों नहीं थी? अधिकारियों ने स्नेहलता के माता-पिता के विषय में जानने का प्रयास क्यों नहीं किया। बहुत से सवाल खड़े होते हैं। मुख्यमंत्री की मंशा पीडि़तों की सहायता करने की है। इससे कोई इनकार नहीं कर सकता, लेकिन कोई झूठी सहानुभूति बटोरकर आर्थिक लाभ के लिए कहानी गढ़ता है तो उसे सजा मिलनी ही चाहिए।
श्यामसिंह सिकरवार

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