हर हाल में चाहिए जीत
19-Jul-2018 09:34 AM 1234768
मप्र की सत्ता पर काबिज होने के लिए कांग्रेस ने जहां पीसीसी की जम्बो टीम गठित कर दी है वहीं वरिष्ठ नेता विभिन्न क्षेत्रों में दौरा और सभाएं कर रहे हैं। प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ ने पीसीसी में नए पदाधिकारियों को जीत का मंत्र देकर चुनावी अभियान में उतार दिया है। वहीं सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया रामलला का आशीर्वाद लेकर बुंदेलखंड में कांग्रेस की अलख जगाने में जुट गए हैं। दरअसल बुंदेलखंड भाजपा की सबसे कमजोर कड़ी है। जबकि बुंदेलखंड राज्य की स्थापना के बाद से ही सरकार के गठन में अपनी अहम भूमिका निभाता आ रहा है। लंबे समय तक इस इलाके के छतरपुर जिले में कांग्रेस को बहुमत देकर सरकार बनाने में मदद की। लेकिन समय के साथ इस संगठन में कई उतार-चड़ाव हुए और आज कांग्रेस सिमट कर रह गई है। हाल के राजीनतिक घटनाक्रमों में कांग्रेस और बसपा में जो गठजोड़ हुआ। उसका लाभ दोनों दलों को हुआ है। आने वाले दिनों में मध्यप्रदेश राज्य विधानसभा के चुनाव होना है और इसकी तैयारी भाजपा सहित अन्य विपक्षी दलों ने जोरशोर से शुरू कर दी है। इसी तैयारी ने ही भाजपा की चिंता बढ़ा दी है। बुंदेलखंड को फोकस करते हुए भाजपा यहां अतिरिक्त ताकत लगाकर अपनी सीटों में विपक्षियों की सेंधमारी रोकने के लिए प्रयासरत है। यही वजह है कि भाजपा संगठन एक के बाद एक दौरे, बैठक, सम्मेलन करके अपने जनाधार को बरकरार रखने की जुगत लगा रहा है। उत्तरप्रदेश की सीमा से लगे बुंदेलखंड के काफी बड़े इलाके में बहुजन समाज पार्टी का काफी प्रभाव है। सीटों के गणित में भले ही बसपा मध्यप्रदेश में संतोषजनक नतीजा न ला पाई हो। लेकिन मत प्रतिशत में यह पार्टी काफी वजनदार बनी हुई है। जबसे बसपा ने आलोकप्रिय नारों और अपने कार्यक्रमों को बदला है। उसके बाद से ही आम मतदादाताओं का झुकाव बसपा की ओर देखा गया है। उत्तरप्रदेश के दो बड़े उप-चुनाव में जिस तरह से बसपा ने सपा के साथ गठबंधन कर भाजपा की नींद उड़ाई है। ठीक यही फार्मूला मध्यप्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी बसपा प्रयोग करेगी। यह ऐलान पूर्व में किया गया था। लेकिन कुछ दिन पूर्व ही मध्यप्रदेश में अपने संगठन और राजनीतिक जमीन की तलाश में दौरे पर आए सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने खजुराहो में मीडिया के सामने स्पष्ट कहा था कि वह इस प्रदेश में सभी 230 सीटों पर चुनाव लडं़ेगे। जहां तक बुंदेलखंड के छतरपुर जिले में बसपा की स्थिति और हैसियत का सवाल है तो जिले की छह विधानसभा सीटों में चंदला, महाराजपुर, बिजावर में बसपा आज भी अपना मजबूत जनाधार बनाए हुए है। वहीं बसपा आगामी विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस के साथ शीर्ष स्तर पर गठबंधन को लेकर कई कदम आगे बढ़ चुकी है। इन्हीं हालातों के चलते बुंदेलखड के इस अंचल में भी कांग्रेस अपनी इन तीनों सीटों पर उतारे जाने वाले उम्मीदवारों को लेकर बसपा का इंतजार कर रही है। शेष तीन सीटों पर भाजपा प्रभावशील तो है लेकिन भाजपा की मंशा यही है कि इस बार उसे इस जिले की सभी छह सीटें चाहिए। अब देखना यह है कि कांग्रेस बुंदेलखंड में एक बार फिर किस तरह मजबूत होकर उभरती है। पिछड़ों को तवज्जो, अगड़ों को लॉलीपाप सभी वर्गों को साथ लेकर चलने की नीति का बखान करने वाली कांग्रेस मध्यप्रदेश की नई कार्यसमिति में गच्चा खा गई। कांग्रेस की नई कार्यसमिति में सामाजिक और क्षेत्रीय संतुलन की कमी नजर आ रही है। इन दिनों राजनीतिक दलों ने पिछड़े वर्ग को साथ लेकर चलने की रणनीति बनाई है, जिसकी स्पष्ट झलक पीसीसी की टीम में दिखाई दी है। इस वर्ग के नेताओं को 30 फीसदी पद सौंपे गए हैं। जबकि अनुसूचित जाति-जनजाति के कुल 17 प्रतिशत नेता समायोजित किए गए हैं। वहीं, क्षेत्रीय संतुलन बनाने में निमाड़ और ग्वालियर चंबल को पीछे छोड़ दिया गया है। यहां कुल 8 नेताओं को ही टीम में लिया गया है। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ के कार्यभार ग्रहण करने के दो महीने बाद पीसीसी के 85 पदाधिकारियों की सूची जारी की है। इसमें अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के 25 नेताओं को लिया गया है। सामाजिक संतुलन के लिए पीसीसी में 12 ब्राह्मणों को भी लिया गया है। कांग्रेस ने अपने पुराने वोट बैंक अल्प संख्यक मुस्लिम समुदाय के भी 11 नेताओं को पीसीसी में लिया है तो ईसाई समुदाय के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में अनिल मार्टिन को लिया है। आठ महिलाओं को पीसीसी में स्थान दिया है। - अरविंद नारद
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