छवि की चिंता
19-Jul-2018 09:36 AM 1234779
साल चुनावी है, ऐसे में अब हर राजनीतिक दल अपनी-अपनी चुनावी बिसात बिछाने में जुट गया है। लेकिन भाजपा के रणनीतिकारों को अपने मंत्रियों और विधायकों की छवि की चिंता सता रही है। दरअसल, कुछ मंत्रियों और कई विधायकों से उनके क्षेत्र की ही जनता खुश नहीं है। अगर उनका टिकट काट भी दिया गया तो भी कोई गारंटी नहीं है कि वहां भाजपा जीत जाए। गौरतलब है कि भाजपा ने पिछले पंद्रह सालों से प्रदेश की राजनीतिक बागडोर संभाल रखी है। पिछली तीन बार तो भाजपा के पास अपने कामों को लेकर कई उपलब्धियां थीं और प्रदेश की सबसे बड़ी विपक्षी दल यानि कांग्रेस भी इतने साल बिखरी रही, जिसके चलते भाजपा के सामने पिछले तीन चुनावों में कोई कड़ी टक्कर ना होने के चलते बहुमत निकालना आसान हो गया था, लेकिन प्रदेश सरकार को भी इस बात का आभास है कि, इस बार मजबूत रणनीति बनाए बिना आगामी चुनाव से संतुष्टात्मक परिणाम हासिल करना मुश्किल है। क्योंकि इस बार प्रदेश कांग्रेस भी संगठित होकर आक्रामक तौर पर मैदान में उतरी हुई है। इसलिए चुनावी साल में भाजपा को अपनी छवि की चिंता सताने लगी है। यही वजह है कि पार्टी द्वारा कराए जा रहे सर्वे में संभावित प्रत्याशियों के साथ इस मुद्दे को प्राथमिकता से शामिल किया गया है। पार्टी के रणनीतिकारों ने टिकट देते समय उनकी छवि को मुख्य आधार बनाना तय किया है। इसके साथ ही पार्टी द्वारा जातिगत और भौगोलिक समीकरणों का भी ध्यान रखा जाएगा। पार्टी सूत्रों की माने तो टिकट के दावेदार की छवि समाज में दागदार, आपराधिक या बाहुबली की होगी तो पार्टी ऐसे प्रत्याशियों से दूरी बना लेगी। पार्टी सूत्रों की मानें तो सर्वे में मौजूदा विधायकों की छवि को लेकर भी प्रतिकूल टिप्पणी आई तो उनके टिकट काटे जा सकते हैं। वहीं, भाजपा और संघ नेताओं के बीच चर्चा के बाद बनी टिकट की गाइडलाइन में प्रत्याशी चयन के लिए चुनाव प्रबंधन समिति को फ्री हैंड देने का भी फैसला किया गया है। इसके बाद उसे चुनाव समिति को भेजा जाएगा। विस चुनाव में टिकट के लिए जो गाइडलाइन बनाई गई है उसमें दागदार, आपराधिक पृष्ठभूमि या बाहुबली को टिकट नहीं देने का फैसला किया गया है। इसमें वे लोग भी शामिल होंगे, जिनके परिवार या रिश्तेदार के किसी कृत्य से पार्टी को शर्मशार होना पड़ा है। सूत्रों ने यह भी बताया है कि मौजूदा विधायकों में भी सिर्फ उन्हीं विधायकों को टिकट दोबारा मिलने की उम्मीद है, जिनकी छवि बेहतर पाई जाएगी। नेताओं का मानना है कि अब कार्यकर्ताओं की रायशुमारी नहीं हो पाती है, इसलिए सर्वे में समाज के हर वर्ग के साथ कार्यकर्ताओं की राय भी ली जा रही है। सर्वे रिपोर्ट आने के बाद प्रत्याशी चयन की प्राथमिक जिम्मेदारी प्रदेश चुनाव प्रबंधन समिति को दी गई है। समिति की रिपोर्ट पर ही संसदीय बोर्ड फैसला करेगा। विस क्षेत्र में जिस जाति विशेष के अधिक वोट होंगे, उस जाति के प्रत्याशी को टिकट में प्राथमिकता दी जाएगी। साथ ही पिछले विस चुनाव में जिन विधायकों की जीत का अंतर एक हजार या उससे भी बहुत कम रहा है, ऐसे प्रत्याशियों को दोबारा चुनाव मैदान में उतारने से पार्टी परहेज करेगी। जिन सीट पर पार्टी 15 हजार या उससे अधिक वोटों से जीती है, उन प्रत्याशियों को दोबारा टिकट दिया जा सकता है। गाइडलाइन में यह भी तय किया गया है कि किसी प्रत्याशी का टिकट काटे जाने की स्थिति में उसके द्वारा बगावत करने या पार्टी का माहौल खराब करने की कोशिश की गई अथवा निर्दलीय चुनाव लडऩे के लिए नामांकन दाखिल किया गया तो उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। जिन विधायकों को 2018 में चुनाव लडऩे से पार्टी रोकेगी, पहले उन्हीं की सहमति से प्रत्याशी चयन को प्राथमिकता दी जाएगी। ऐसा प्रत्याशी उनके परिवार, रिश्तेदार या कोई नजदीकी भी हो सकता है। पार्टी ने यह रियायत सिर्फ इसलिए रखी है कि चुनाव के वक्त माहौल खराब न हो। कार्यकर्ता बगावत पर आमादा प्रदेश में बीते विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रत्याशियों को पराजित करने वाले तीन निर्दलीय विधायकों की चुनावी साल में भाजपा संगठन से करीबियां कार्यकर्ताओं को पसंद नहीं आ रही हैं। यही वजह है कि भाजपा कार्यकर्ताओं के इसके विरोध में बगावती सुर सुनाई देने लगे हैं। यही वजह है कि स्थानीय पार्टी नेता अपने समर्थकों के साथ अध्यक्ष राकेश सिंह के सामने विरोध प्रदर्शन करने को मजबूर हो चुके हैं। इन कार्यकर्ताओं की मजबूरी है कि वे लगातार इनका विरोध करते रहे हैं। अगर पार्टी इन्हें शामिल कर विधानसभा चुनाव में टिकट देती है तो मजबूरन उन्हें उनका समर्थन करना पड़ेगा। ऐसे में मतदाताओं के सामने उनका जबाव देना मुश्किल हो जाएगा। सीहोर विधायक सुदेश राय निर्दलीय चुनाव जीते थे लेकिन वे भाजपा की बैठकों में शामिल होते रहे हैं। इसका यहां के पूर्व विधायक रमेश सक्सेना और जसपाल सिंह अरोरा विरोध कर रहे हैं। झाबुआ के थांदला से निर्दलीय विधायक कल सिंह भाबर की राकेश सिंह से मुलाकात पर पार्टी के दिलीप कटास ने 500 समर्थकों के साथ उनका विरोध किया। सिवनी विधायक दिनेश राय मुनमुन को भाजपा ने शामिल कर लिया। यहां से नीता पटैरिया विधायक और सांसद रह चुकी हैं। नीता ने 2008 में मुनमुन को हराया था। 2013 में नीता का टिकट कटा तो मुनमुन जीत गए। नीता की फिर से दावेदारी है। स्थानीय स्तर पर मुनमुन का विरोध हो रहा है। - राजेश बोरकर
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