19-Jul-2018 09:15 AM
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देश के सबसे साफ शहरों में से दूसरे नंबर के शहर भोपाल की सफाई की पोल 12 जुलाई को हुई बारिश ने खोल दी। 11-12 जुलाई की रात हुई बारिश से शहर तालाब में तब्दील हो गया। दरअसल कुदरत ने भोपाल नगर निगम के दावों को जानने के लिए यह स्टिंग आपरेशन किया था। पहाड़ पर बसे शहर, जहां ढलान होने के कारण पानी के रुकने की कोई प्राथमिक संभावना दिखाई नहीं देती, वहां बार-बार बाढ़ की स्थिति निर्मित हो रही है। इसके पीछे मुख्य कारण शहर का अनियंत्रित विकास है।
शहर में हर साल बारिश से पहले नालों की सफाई का अभियान चलता है। निगम दावा करता है कि बारिश से निपटने के सारे इंतजाम हो गए हैं, लेकिन बारिश शुरू होते ही जल भराव होने लगता है। दरअसल कागजों पर ही सारे अभियान चलते हैं। बाढ़ इसलिए आती है क्योंकि पहाड़ी भौगोलिक तंत्र में व्यवस्थित रूप से बने इस शहर में 16 महत्वपूर्ण तालाब/झीलें बनाई गई थीं, उस श्रंखलाबद्ध ताने-बाने को तोड़ दिया गया है.. इन झीलों का निर्माण इस तरह से हुआ था कि जब पहाड़ी क्षेत्र के ऊपरी हिस्से में पानी भर जाए या झील भर जाए, तो अतिरिक्त पानी अपने आप जल-बहाव मार्गों से होता हुआ, नीचे बनी झीलों में चला जाता था। अतिरिक्त बारिश बस्ती में ऐसी तबाही नहीं लाती थी क्योंकि समाज के इंजीनियरों को यह ज्ञान था कि पानी को बहने के लिए स्थान चाहिए, पानी को रोकोगे तो वह बस्ती को ही बहा ले जाएगा। वह लालची समाज नहीं था। इसे सम्पत्ति, धन और जमीन की इतनी हवस नहीं थी, कि वह मल निकास की नालियों पर ही मकान-दुकान तान लेता। जब निजी जीवन में से गरिमा का निष्कासन हो जाता है, तब मानव को कचरे में सबसे ज्यादा आनन्द आता है।
2016 में जब भोपाल डूबा, तब यह तथ्य सामने निकल कर आया था कि 6300 निर्माण नालों पर अतिक्रमण करके बनाए गए हैं। ये खुले निर्माण की बात है। भोपाल के हर 10 में से 6 निर्माणों में अतिक्रमण किया गया है। ऐसा हो पाया क्योंकि सम्पत्तिधारक को ज्ञान है कि अतिक्रमण करना उसका विशेषाधिकार है। 8-9 जुलाई 2016 की बारिश में शहर के सबसे संपन्न लोगों के क्षेत्र अरेरा कालोनी में पानी निकालने के लिए 16 बड़े बंगलों को नालों के दरवाजे खोलने के लिए अपनी दीवारें तोडऩी पड़ीं। यह कैसी सभ्यता और शिक्षा है, जो यह नहीं जानती हैं कि किसी भी आवासीय व्यवस्था में कचरे-पानी-मल निकास की व्यवस्था एक बुनियादी जरूरत होती है, कैसे लालच नागरिक जिम्मेदारी और समझ को अपना गुलाम बना लेता है, भोपाल की बाढ़ इसका उदाहरण है।
भोपाल में 2016 की बाढ़ के बाद दो योजनाएं बनीं। एक थी 2200 करोड़ रुपये की मल-जल निकास की व्यवस्था और दूसरी थी 1200 करोड़ रुपये की जलभराव से निकास की योजना। यानी 3400 करोड़ रुपये की नालियां बनाने का कार्यक्रम तय किया गया। लेकिन उसके बाद भी शहर में जल निकासी की कोई उचित व्यवस्था नहीं हो पाई है। पॉश इलाके अरेरा कॉलोनी में बीजेपी दफ्तर के पास का इलाका हो या होशंगाबाद रोड पर रेलवे का अंडर ब्रिज, हर जगह सड़कें तालाब बन जाती हैं। नगर निगम भोपाल को स्मार्ट सिटी बना रहा है लेकिन बारिश में जल निकासी की कोई व्यवस्था ही नहीं कर पाया है। हर तरफ जलभराव बड़ी समस्या बनी हुई है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या स्मार्ट सिटी बनने जा रहे भोपाल को इस समस्या से मुक्ति मिल पाएगी या हर साल ऐसा ही मंजर दिखेगा।
एक-दूसरे पर मढ़ रहे दोष
भारी बारिश से जलमग्न हो रहे भोपाल के लिए कौन जिम्मेदार है? नगर निगम पीडब्ल्यूडी को तो पीडब्ल्यूडी नगर निगम को दोष दे रहा है। आलम यह है कि पिछली बारिश में तो प्रशासन से नाराज महापौर आलोक शर्मा भोपाल टॉकीज के पास सड़क पर भरे पानी के बीच कुर्सी लगाकर धरने पर बैठ गए है। उनका आरोप था कि पीडब्ल्यूडी विभाग की गैर जिम्मेदाराना हरकत के कारण जलभराव हुआ है। शर्मा का कहना है कि सैफिया कॉलेज रोड और नाले का निर्माण पीडब्ल्यूडी को करना है। वहीं पीडब्ल्यूडी के एसई एसके खांडे कहते हैं कि पीडब्ल्यूडी ने तीन साल पहले जो सड़क और नाला बनाया है, वह आज भी बरकरार है। अतिक्रमण के कारण जल भराव हो रहा है।
- भोपाल से अजय धीर