19-Jul-2018 09:13 AM
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मप्र सहित कई राज्यों के किसान सरकार के खिलाफ आक्रोशित हैं। ऐसे में किसानों को एमएसपी में बड़ी वृद्धि का तोहफा देना मोदी सरकार के लिए राजनीतिक मजबूरी बन गई थी। हाल के दिनों में देश के अलग-अलग हिस्सों से आ रही किसानों की नारागजी की खबरों के बीच मोदी सरकार की यह घोषणा एक तरह से डैमेज कंट्रोल की कोशिश है। सरकार और पार्टी को उम्मीद है कि इसे अमल में लाकर किसानों की नाराजगी बहुत हद तक दूर की जा सकती है। अभी किसानों की सबसे बड़ी समस्या फसलों की सही कीमत के निर्धारण को लेकर ही है। पिछले साल गुजरात विधानसभा चुनाव में भी कपास और मूंगफली की कीमत ही चुनावी मुद्दा बनी थी। इसके अलावा यूपी में हाल में हुए कैराना लोकसभा चुनाव में भी किसानों की समस्या बड़ा मुद्दा बनी थी।
दरअसल, किसानों की नारागजी का असर राजनीति पर भी पड़ रहा है। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान से किसान आंदोलन की लगातार खबरें आती रहती हैं। मध्य प्रदेश और राजस्थान में तो इस साल चुनाव भी होने हैं। कांग्रेस 2019 में मोदी सरकार को किसानों के मुद्दे पर ही चुनाव लडऩे का संकेत दे चुकी है। अन्य विपक्षी पार्टियां भी किसानों के मुद्दे पर मोदी सरकार को लगातार घेरती रहती हैं। ऐसे में सरकार की कोशिश है कि वह किसानों की नाराजगी को जल्द से जल्द दूर करे।
मोदी सरकार पर एमएसपी बढ़ाने का दबाव पिछले दो वर्षों से था। वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी का यह प्रमुख चुनावी मुद्दा भी था लेकिन सत्ता में आने के बाद इस दिशा में सरकार ने बेहद सतर्क रुख रखा। सूत्रों के अनुसार, महंगाई को काबू करने की कवायद में विरोध के बीच भी एमएसपी में उम्मीद वाली वृद्धि देखने को नहीं मिली लेकिन चुनावी साल पास आते ही खजाना खोल दिया गया। सरकार का तर्क है कि चुनावी साल में किसानों को इससे सीधा लाभ मिलेगा, जबकि महंगाई पर इसका असर आते-आते वक्त लगेगा और चुनाव में इसका असर नहीं दिखेगा।
किसान संगठन सरकार के एमएसपी बढ़ाने के फैसले से तो सहमत हैं, लेकिन उनका कहना है कि सरकार को बड़ी मात्रा में फसल खरीदनी चाहिए, तभी किसानों को इसका फायदा मिल पाएगा। जय किसान आंदोलन के संयोजक अवीक साहा कहते हैं कि चुनावी साल में किसानों को खुश करने का काम हर सरकार करती आ रही है लेकिन दिक्कत यह है कि किसानों की करीब एक तिहाई फसल ही सरकार खरीदती है। ऐसे में एमएसपी में बढ़ोतरी का खास फायदा किसान को नहीं मिल पाता। अवीक कहते हैं कि अक्टूबर आने दीजिए और फिर देखिए कि सरकार कितनी फसल खरीदती है। साहा के मुताबिक, सरकार ने रबी फसलों के लिए भी डेढ़ गुना एमएसपी देने का ऐलान किया था, लेकिन जब किसानों की दो-तिहाई फसल सरकार ने नहीं खरीदी तो उसके दावे की पोल खुल गई। ऐसे में किसानों को अपनी फसल औन-पौने दामों पर बाजार में बेचनी पड़ी। उनका यह भी कहना है कि सरकार ने लागत तय करने में जमीन की कीमत को नजरंदाज कर दिया, जबकि स्वामीनाथन कमिटी ने इसकी भी सिफारिश की थी।
15,000 करोड़ का बोझ
एमएसपी बढ़ाने से सरकार के खजाने पर 15,000 करोड़ का बोझ आएगा। केंद्र ने सबसे अधिक रागी की एमएसपी में 52 फीसदी की बढ़ोतरी की है, वहीं धान के समर्थन मूल्य में 200 रुपये का इजाफा किया है। लेकिन देश के किसान नेता सरकार के इस फैसले से बहुत ज्यादा खुश नहीं दिखाई देते हैं। देश के मशहूर सामाजिक और राजनीतिक विश्लेषक योगेंद्र यादव इसे किसान आंदोलन की छोटी जीत बताते हैं। उनका कहना है, किसानों के ऐतिहासिक संघर्ष ने इस किसान विरोधी सरकार को मजबूर किया कि वो चुनावी वर्ष में अपने पिछले चुनावी वादे को आंशिक रूप से लागू करे। इसके साथ ही योगेंद्र यह भी याद दिलाते हैं कि सरकार ने जिस एमएसपी का ऐलान किया है यह वह डेढ़ गुना दाम नहीं है जो किसान आंदोलन ने मांगा था और न ही वह है जिसका वादा नरेंद्र मोदी ने किया था। यह महज ऐसा वादा है जो सरकारी खरीद पर निर्भर है। यह अस्थाई है। वह कहते हैं, किसान को संपूर्ण लागत पर ड्योढ़ा दाम की गारंटी चाहिए। आम किसान यूनियन के नेता और किसान मुद्दों पर खुलकर बोलने वाले केदार सिरोही ने एमएसपी व्यवस्था पर चुटकी लेते हुए ट्वीट किया है, उन सभी 6 प्रतिशत किसान जिनको समर्थन मूल्य का लाभ मिलता है सभी को बधाई। बाकी 94 प्रतिशत किसानों को इस तरह की योजना पर विचार करना चाहिए कि कैसे हम सब मिलकर किसानों के हित में योजना बनाएं।
-अक्स ब्यूरो