19-Jul-2018 08:53 AM
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मप्र में विधानसभा चुनाव का अभी बिगुल बजा नहीं है, लेकिन राजनीतिक पार्टियां राजपथ की तलाश में जुट गई हैं। सत्तारूढ़ भाजपा प्रदेश में लगातार चौथी बार सरकार बनाने के लिए अपने पोस्टर ब्वाय शिवराज सिंह चौहान को मैदान में उतार चुकी है। वहीं पंद्रह साल बाद सत्ता में वापसी की आस के साथ कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया और नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह भी दौरा, रैली और सभाओं के माध्यम से सक्रिय हैं। उधर, बसपा, सपा और आप भी अपना-अपना गणित लगा रहे हैं।
राजपथ की तलाश में जुटे भाजपा और कांग्रेस के नेता एक-दूसरे को मात देने के लिए तरह-तरह के उपक्रम कर रहे हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भाजपा की सत्ता कायम करने के लिए महाकाल की नगरी उज्जैन में पूजा-अर्चना कर भगवान के आशीर्वाद के साथ नया मध्यप्रदेश नयी रफ्तार, शिवराज सिंह अबकी बारÓ का लक्ष्य सामने रखकर जन आशीर्वाद यात्रा में निकल चुके हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने हरी झंडी दिखाकर उन्हें मप्र फतह के लिए रवाना कर दिया। इसके एक दिन पूर्व ही प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की ओर से महाकाल को एक पत्र पूरे विधि-विधान, पूजा-अर्चना व मंत्रोच्चार के बीच समर्पित करते हुए यह अपेक्षा की गई कि महाकाल अंतर्यामी हैं और हकीकत क्या है वह यह देखेंं। वर्ष 2013 में शिवराज ने जुलाई माह में ही उज्जैन से जन आशीर्वाद यात्रा प्रारंभ की थी और महाकाल को पत्र लिखकर प्रदेश की जनता से आशीर्वाद मांगा था। उसी तर्ज पर कांग्रेस ने भाजपा सरकार के कुशासन से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना महाकाल से की है।
तू डाल-डाल, मैं पात-पात
भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए ही इस विधानसभा चुनाव में जीत हासिल करना करो या मरो का प्रश्न बन गया है और इसी तर्ज पर कोई भी किसी से पीछे नहीं रहना चाहता। प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस के बीच तू डाल-डाल मैं पात-पात का खेल चल रहा है। इसमें कौन किस पर भारी पड़ेगा या महाकाल का आशीर्वाद किसके साथ है, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन वर्तमान में शिवराज सिंह चौहान रथ पर सवार होकर जनता के बीच अपनी उपलब्धियों को गिना रहे हैं। वहीं शिवराज सरकार की नाकामियों को उजागर करने के लिए कांग्रेस ने 18 जुलाई को उज्जैन के तराना से पोल खोल यात्रा प्रारंभ करने का ऐलान कर दिया है जिसमें सीधे-सीधे शिवराज सरकार की घेराबंदी करते हुए प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष जीतू पटवारी मुख्य भूमिका में नजर आयेंगे।
शिवराज सबको साधने में आगे
इस बार कांग्रेस की एकजुटता ने यह संकेत दे दिया है कि आगामी विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। इसलिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हर वर्ग को साधने की कवायद शुरू कर दी है और वे इस दिशा में सबसे आगे हैं। प्रदेश का गरीब वर्ग हो या युवा वर्ग या छात्र-छात्राएं, अधिकारी-कर्मचारी, किसान-मजदूर सबके लिए सौगातों की बौछार कर दी है। इसका असर यह देखा जा रहा है कि जहां दो माह पहले भाजपा सरकार के खिलाफ जबर्दस्त जनआक्रोश था वह शांत हो रहा है। यही नहीं पदोन्नति में आरक्षण को लेकर दो भागों में बंटे अधिकारियों-कर्मचारियों के संगठन सपाक्स और अजाक्स को भी उन्होंने अपने मंत्र से मुग्ध कर दिया है।
10 साल बनाम 13 साल
मंत्रियों और विधायकों के खिलाफ एंटी इनकमबेंसी और कांग्रेस की एकजुटता और सक्रियता को देखते हुए भाजपा ने अपनी चुनावी रणनीति ऐसी बनाई है ताकि वह जनता को यह बता सके कि आखिर वह भाजपा को वोट क्यों दे। भाजपा के रणनीतिकारों ने यह चुनाव दिग्विजय सिंह के 10 साल बनाम शिवराज सिंह चौहान के 13 साल की रणनीति पर लडऩे की तैयारी की है। अपनी जनआशीर्वाद यात्रा के दौरान शिवराज सिंह चौहान इसका खाका भी प्रस्तुत कर रहे हैं। वे जनता से पूछ रहे हैं कि 2003 में क्या मध्यप्रदेश में सड़कें थीं, क्या बिजली थी, क्या पानी था और क्या स्वास्थ्य की बेहतर सुविधाएं थीं? और तो और दिग्विजय कार्यकाल में किसानों की दशा को भी बार-बार याद दिला रहे हैं। आने वाले समय में भाजपाई यह बताने में नहीं चूकेंगे कि मध्यप्रदेश में सिंचाई का रकबा 7 लाख हेक्टेयर से 42 लाख हेक्टेयर कैसे पहुंचा, 48 हजार किलोमीटर की सड़कें कोई रातों-रात नहीं बनीं, और गांव-गांव में बिजली शिवराज सरकार ने ही पहुंचाई है वरना दिग्विजय सिंह के समय तो अंधेरा ही अंधेरा था। यह बात जरूर है कि कांग्रेस के लिए शिवराज सरकार में बेरोजगारी का मुद्दा और निचले स्तर की नौकरशाही में भ्रष्टाचार की चरम सीमा चुनावी हथियार के रूप में सहायक सिद्ध हो सकेगी।
शिवराज का मास्टर स्टोक
जन आशीर्वाद यात्रा शिवराज का ऐसा मास्टर स्टोक है जिसका मकसद पिछले 15 सालों और खासकर पिछले एक साल में समाज के विभिन्न वर्गों एवं किसानों, दलितों के बीच जो असंतोष बढ़ते-बढ़ते बड़े पहाड़ की शक्ल ले चुका है, उस माहौल को पार्टी के पक्ष में सकारात्मक मोड़ देना है। इस यात्रा का उपयोग वे एक ऐसे ब्रह्मास्त्र के रूप में करने जा रहे हैं जिससे असंतोष के पहाड़ को पार कर भाजपा की राह पांच साल के लिए और आसान बनाई जाए। कांग्रेस ने भी इस रणनीति को भांपते हुए जन आशीर्वाद यात्रा के पीछे-पीछे पोल खोल यात्रा शुरू करने का ऐलान कर दिया है जिसे हरी झंडी कमलनाथ दिखायेंगे। शिवराज भावी भविष्य की रूपरेखा और उनके नेतृत्व में जो जन कल्याणकारी और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी योजनाओं के जरिए विकास के पथ पर प्रदेश अग्रसर हुआ है उसे अपनी विशिष्ट एवं लोगों के गले उतरने वाली शैली में प्रचारित कर जनता का दिल जीतने की हरसंभव कोशिश करेंगे। कांग्रेस ने इस यात्रा का विरोध नहीं करने का निर्णय किया है और वह कहीं भी मुख्यमंत्री की यात्रा के दौरान व्यवधान पैदा नहीं करेगी। लेकिन जहां-जहां शिवराज की सभा होगी वहां-वहां कांग्रेस पोल खोल यात्रा के तहत सभा करेगी और वह जिसे हकीकत समझती है उसे मतदाताओं को बतायेगी। शिवराज यात्राओं में सरकार की उपलब्धियां गिनायेंगे तो कांग्रेस यात्रा में नाकामियों को गिनाते हुए बढ़ते हुए भ्रष्टाचार की पोल खोलेगी। इसके साथ ही वह किसानों के मुद्दे को भी उठायेगी। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेस की सरकार बनने के बाद किसानों के कर्ज माफ करने का जो वायदा किया है उस संकल्प को भी दोहरायेगी।
जन आशीर्वाद यात्रा इस मायने में काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है कि एक तो 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव के पूर्व शिवराज ने महाकाल के आशीर्वाद के बाद जन आशीर्वाद यात्राएं निकाली थीं, जिसके परिणाम भाजपा के लिए काफी अच्छे व फलदायी रहे थे। शिवराज 55 दिन की इस यात्रा के दौरान 230 विधानसभा क्षेत्रों में जाएंगे और लगभग कुल मिलाकर 700 सभाएं करेंगे। भाजपा को भरोसा है कि इस बार भी उसे अच्छे परिणाम मिलेंगे, क्योंकि बतौर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और चुनाव अभियान एवं प्रबंधन समिति के अध्यक्ष के नाते केंद्रीय पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर की वह जुगलजोड़ी फिर से प्रदेश में सक्रिय हो गयी है जो भाजपा के लिए लकी और चुनाव जिताऊ रही है। देखने की बात यही होगी कि कांग्रेस इस जुगलजोड़ी का तोड़ निकालने की कैसी प्रभावशाली रणनीति बनाती है।
देर से आए लेकिन दुरूस्त
पिछले दो विधानसभा चुनाव में मृतप्राय रहा कांग्रेस संगठन इस बार धारदार दिख रहा है। जो इस बात का संकेत है कि कमलनाथ देर से आए लेकिन दुरूस्त होकर आए हंै। कमलनाथ पार्टी को बूथ स्तर तक चुस्त-दुरुस्त करने और विभिन्न समाजों के लोगों को साधने के साथ ही भाजपा विरोधी मतों का विभाजन रोकने की रणनीति में व्यस्त हैं तो वहीं चुनाव प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया विभिन्न स्तरों पर प्रचार अभियान को गति देने की रणनीति बनाने के साथ ही लोगों से मिलने के लिए निकल पड़े हैं। खजुराहो, रीवा और उसके बाद शहडोल में वे ऐसा कर चुके हैं और उनका यह सिलसिला निरन्तर आगे भी जारी रहेगा।
पोल खोल अभियान
उधर शिवराज की जनआशीर्वाद यात्रा का काउंटर करने के लिए कांग्रेस पोल खोल यात्रा शुरू करने जा रही है। कांग्रेस की पोल खोल यात्रा की जिम्मेदारी चारों कार्यकारी अध्यक्षों जीतू पटवारी, बाला बच्चन, रामनिवास रावत और सुरेश चौधरी को सौंपी गयी है। शिवराज जो सकारात्मक माहौल बनायेंगे उसके मुकाबले के लिए जीतू पटवारी मुख्य किरदार की भूमिका में रहेंगे, क्योंकि एक तो वे युवा कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं और दूसरे उनकी भाषण देने की शैली आक्रामक है। पटवारी पोल खोल अभियान के तहत शिवराज सरकार की उपलब्धियों पर घड़ों पानी फेरने के उद्देश्य से महिला अत्याचार, ध्वस्त होती कानून व्यवस्था, किसानों की बढ़ती हुई आत्महत्याओं के मामले एवं किसानों की अन्य समस्याओं के साथ ही बेरोजगारी के मुद्दे पूरी आक्रामकता से उठाते हुए असंतोष के माहौल को कांग्रेस के पक्ष में सकारात्मक बनाने की कोशिश करेंगे। युवक कांग्रेस की पूरी टीम के साथ प्रदेश युवा कांग्रेस अध्यक्ष कुणाल चौधरी की बतौर संयोजक इस यात्रा में महत्वपूर्ण भूमिका होगी। शिवराज की सभा में हर विधानसभा के अलग-अलग मुद्दे होंगे और वहां किए गए कार्यों का भी वे उल्लेख करेंगे तो कांग्रेस के भी हर विधानसभा क्षेत्र में कुछ सुनिश्चित मुद्दे होंगे और पिछले 15 सालों में भाजपा के उस क्षेत्र के प्रभावशाली नेताओं के रहन-सहन में जो बदलाव आया है और अचानक सम्पन्नता आई है उसकी पोल खोलने के लिए उसने भी काफी तैयारी कर ली है।
कांग्रेस में एकता बड़ी समस्या
कमलनाथ के आने से कांग्रेस के कार्यकर्ता को जरूर उम्मीद हो सकती है चुनाव में पैसों की कमी नहीं पड़ेगी, लेकिन कांग्रेस को जिताने के लिए वोट कहां से आएंगे इसका गुणा-भाग करने के लिए कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की टीम जब आपस में टकराएगी तो फायदा दिग्विजय सिंह को होगा क्योंकि उनकी पूछ ऐन वक्त में बढ़ जाएगी और कांग्रेस को चुनाव जिताने के नाम पर कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की इज्जत दांव पर होगी। जीतेगा कौन गर्भ का विषय होगा? लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं के सामने एकता सबसे बड़ी समस्या है।
पार्टी के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि कांग्रेस यदि गुटबंदी से ऊपर उठकर जीतने योग्य मैदानी प्रत्याशियों को चिन्हित कर उन्हें टिकिट दे देती है तो वह आधी लड़ाई जीत लेगी। अपनी पिछली कमजोरियों को कांग्रेस ने चिन्हित कर लिया है और इस बार प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया में बड़ा बदलाव किया गया है। प्रत्याशी चयन के लिए गठित की गयी स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष मधुसूदन मिस्त्री दो अन्य सदस्यों के साथ दो दिन तक भोपाल में जमे रहे और उन्होंने मैदानी स्तर पर जानकारियां जुटाईं। पहले दिल्ली में बैठकें होती थीं और नेता आपस में टिकटों की बंदरबांट कर लेते थे। मिस्त्री ने साफ कर दिया है कि इस बार वे 2013 की गलतियां नहीं होने देंगे और अपने पास एक-एक टिकट का हिसाब भी रखेंगे। वे अपने साथ डायरी रखे हुए हैं जिसमें यह उल्लेख है कि किस-किस नेता ने टिकट दिलाने के लिए 2013 में क्या-क्या दावे करते हुए कुछ समाजों के बढ़े-चढ़े आंकड़े बताये थे, इस प्रकार जिन्होंने टिकट लिए थे वे बाद में भारी मतों से हार गये। 2013 के चुनाव की गलती न होने देने की बात वे इसलिए कर रहे हैं क्योंकि 2008 में कांग्रेस के 71 विधायक जीते थे जबकि 2013 में टिकटों की बंदरबांट होने के कारण यह संख्या 58 पर आकर टिक गयी थी। यही कारण है कि कांग्रेस इस बार विपरीत परिस्थितियों में जीतने वाले अपने सभी विधायकों को टिकट देने की परम्परा से हटकर डेढ़ दर्जन से अधिक मौजूदा विधायकों की टिकट काटने जा रही है, चाहे वे कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, दिग्विजय सिंह से जुड़े हुए ही क्यों न हों। इस बार टिकट केवल उन्हें ही दिए जायेंगे जिनकी जीतने की संभावना तीन अलग-अलग एजेंसियों द्वारा कराये गये सर्वे में सामने आयेगी।
दोनों ओर एक जैसी स्थिति
मध्यप्रदेश में भाजपा-कांग्रेस कुछ इसी किस्म के दौर से गुजर रही है। भाजपा से उसका अनुशासित कार्यकर्ता और निष्ठावान मतदाता नाराज है। मुख्यमंत्री, मंत्री, विधायक, सांसदों के दौरे और सभाओं में आमजन व कार्यकर्ताओं की नाराजगी देखी जा सकती है। राजनीतिक मौसम के विज्ञानी सैटेलाइट और पंडित ग्रह-दशाओं के आधार पर ऐसे संकेत पहले से ही दे रहे हैैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी पार्टी के भीतर मंत्री, विधायकों को सुधरने की समझाइश देते आ रहे हैैं। मगर अब तक उसका असर कम ही दिखा। भोपाल के कोलार (हुजूर विधानसभा क्षेत्र) से लेकर भोजपुर, जावद, खंडवा, शाजापुर, उज्जैन संभाग, इंदौर संभाग, रीवा, सतना, उदयपुरा, सिवनी मालवा, महाकौशल, बुंदेलखंड में गिनती की जाए तो असंतोष की घटनाओं की लंबी फेहरिस्त बन सकती है। लगता है असंतोष की बाढ़ मर्यादाओं के तटबंध तोड़ सकती है। असंतोष-अहंकार के किस्से इतने हैैं कि उसका पुलिंदा बन जाए। फिर कभी इस पर विस्तार से लिखा जा सकता है। इस हकीकत से राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह लंबे समय बाद सक्रिय हुए प्रदेश प्रभारी विनय सहस्रबुद्धे, प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह, संगठन महामंत्री सुहास भगत वाकिफ हैैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ 15 वर्षों से बिखरे और लगभग घर बैठे कांग्रेसजनों को एकजुट करने में लगे हैैं। अभी उनके पास देने के लिये संगठन में पदों के अलावा कुछ नहीं है। इसलिए प्रदेश में सह अध्यक्ष बनाने के साथ हर जिले में संगठन का विस्तार करने में लगे हैैं। युवा नेताओं को कम स्थान मिलने के कारण उनकी आलोचना भी हो रही है। मगर अभी नेताओं के मामले में कांग्रेस के पास भाजपा की तुलना में विकल्प कम हैैं।
112 विधायकों के खिलाफ मोर्चा
मध्य प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले किसान संगठन ने 112 विधायकों के खिलाफ अभियान शुरू कर दिया है। इस संगठन से जुड़े किसानों का आरोप है कि अलग-अलग दलों के ये विधायक पिछले पांच साल के दौरान खेती से जुड़े मुद्दों को उठाने में विफल रहे हैं। आम किसान यूनियन के नेता केदार सिरोही का कहना है कि इस साल के अंत में होने वाले चुनावों से पहले किसान इन विधायकों से अपने कल्याण के लिए किए गए कार्यों का ब्योरा मांगेंगे। इसके बाद किसान सोच-समझकर चुनावों में अपने वोट का उपयोग करेंगे। भाजपा प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय का कहना है कि यदि किसान संगठन राजनीति करना चाहते हैं तो उन्हें खुले तौर पर सामने आना चाहिए। मध्य प्रदेश सरकार को फसल उत्पादन में वृद्धि के लिए लगातार 6 बार कृषि कर्मण पुरस्कार मिला है। सरकार ने शून्य ब्याज पर कृषि ऋण दिलाए हैं और बिजली आपूर्ति में सब्सिडी दी है। साथ ही राज्य की सिंचाई क्षमता पिछले एक दशक में 600 फीसदी बढ़ाई है।