अलग बुंदेलखंड की चाह
19-Jul-2018 08:45 AM 1234765
लंबे समय से अलग बुंदेलखंड राज्य की मांग कर रहे बुंदेलों ने एक बार फिर अपनी मांग को तेज कर दिया है। अब उनके इस आंदोलन को समाजसेवियों और राजनीतिक दलों का भी समर्थन मिलने लगा है। महोबा जिला मुख्यालय के आल्हा चौक पर बुन्देली समाज अनशन पर बैठा है। इस आंदोलन में स्थानीय लोगों के अलावा समाजसेवियों और राजनेताओं का सहयोग मिलने लगा है। वर्ष 1989 में बुंदेलखंड अलग राज्य निर्माण की शुरुआत झांसी के शंकरलाल मेहरोत्रा ने की थी। तब से बुंदेलखंड के नाम पर अनेक संस्थाएं और पार्टियां बनीं। जिन्होंने एक जुट होकर समय-समय पर बुंदेलखंड अलग राज्य निर्माण की लड़ाई लड़ी लेकिन केंद्र और प्रदेश में अलग-अलग दलों की सरकारें होने के कारण अलग राज्य निर्माण की लड़ाई परवान नहीं चढ़ सकी। एक दशक पहले बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी के संयोजक संजय पांडेय के नेतृत्व में उग्र आंदोलन किया गया था। समूचा बाजार बंद कराने के साथ-साथ चक्का जाम भी किया गया था लेकिन प्रदेश और केंद्र की सरकारों ने कोई तवज्जो नहीं दी। जिससे यह लड़ाई 2010 में बंद हो गई। करीब आठ साल से अलग राज्य निर्माण की ठंडी पड़ी लड़ाई को अब बुंदेली समाज के संयोजक तारा पाटकार ने आंदोलन का बिगुल बजाकर गर्मा दिया है। साथ ही चेतावनी दी कि जब तक अलग राज्य निर्माण का आश्वासन नहीं मिलता आंदोलन जारी रहेगा। अब देखना यह है कि यह आंदोलन कितना रंग लाता है। बुंदेली समाज के संयोजक तारा पाटकर कहते हैं कि बुंदेलखंड राज्य 1949 में विंध्य प्रदेश से अलग होकर आधा मध्य प्रदेश और आधा उत्तर प्रदेश में चला गया था। इसके बाद से इसके साथ हमेशा भेदभाव होता रहा है। समस्याओं का यहां अंबार लगा है जिनका निपटारा आज तक नहीं हो सका है। उनका कहना है कि अमेरिका में 35 करोड़ की आबादी है और वहां पर 50 राज्य हैं जबकि हिंदुस्तान में 133 करोड़ की आबादी है और मात्र 29 राज्य हैं। इसकी वजह से मैनेजमेंट नहीं हो पा रहा है। इसीलिए हम लोग अलग राज्य चाहते हैं। यह हमारा अनिश्चितकालीन अनशन है और यह जारी रहेगा। समाजसेवी सुखनंदन कहते हैं कि बीजेपी सरकार छोटे-छोटे राज्य बनाने की पक्षधर है। जैसे बिहार से कटकर झारखंड बना, छत्तीसगढ़ बनाया गया, उत्तराखंड बनाया गया, उनकी प्रगति देखी गई। जिससे मालूम होता है कि छोटे राज्य जल्दी प्रगति करते है। बुंदेलखंड में इतनी खनिज संपदा है कि यहां 5 वर्षों में अलग विकास दिखाई देगा और इसका पिछड़ापन दूर होगा। बुंदेली समाज के इस आंदोलन में वकील भी कूद पड़े हैं। कृष्णगोपाल कहते हैं कि इस आंदोलन में हम लोगों का पूर्ण सहयोग है और भी लोगों का सहयोग मिल रहा है। यदि बुंदेलखंड राज्य बन जाएगा तो यहां की खनिज संपदा जो लूटी जा रही है उसका लाभ मिलेगा और बुन्देलखंड खुशहाल होगा। उधर, समय-समय पर अलग बुंदेलखंड की आवाज उठाने वाले पूर्व मंत्री राजा पटेरिया और डॉ. रामकृष्ण्र कुसमरिया इस मामले में कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं। बल्कि दोनों नेता बुंदेलखंड की बदहाली के लिए एक-दूसरे की पार्टी को दोष देते हैं। बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा के अलावा समय समय पर मांग उठाने वाले बुंदेलखंड एकीकृत पार्टी के भानू सहाय, बुंदेलखंड नवनिर्माण सेना के विनय तिवारी, बुंदेलखंड अधिकार सेना के पूर्व सांसद गंगाचरण राजपूत, बुंदेलखंड इंसाफ सेना के पूर्व मंत्री बादशाह सिंह, मैं बुंदेलखंडी हूं के सूर्य प्रकाश मिश्र, बुंदलेखंड किसान यूनियन आदि संगठनों के प्रमुख लगातार संपर्क में हैं और एक साथ आवाज बुलंद कर सकते हैं। और इधर निमाड़ी बनेगा जिला इधर लंबे इंतजार के बाद आखिरकार निवाड़ी मध्य प्रदेश का 52 वां जिला बनने जा रहा है। इस संबंध में राज्य ने अधिसूचना जारी कर दी है। दो माह तक दावे-आपत्ति मंगाए गए हैं। इसके बाद नया जिला अस्तित्व में आ जाएगा। निवाड़ी बुंदेलखंड का सबसे छोटा जिला होगा। इसमें निवाड़ी, ओरछा एवं पृथ्वीपुर तहसील होंगी। पहले मोहनगढ़ एवं दिगौड़ा को शामिल किया जाना था, लेकिन पृथ्वीपुर विधायक अनीता नायक के विरोध के कारण दोनों जगह को नहीं जोड़ा गया है। अधिसूचना जारी होने के साथ ही निवाड़ी को लेकर विरोध भी शुरु हो गया है। निवाड़ी जिले को लेकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की चुनावी घोषणा भाजपा के लिए गले की फांस बनती जा रही थी। चूंकि विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। ऐसे में निवाड़ी को जिला बनाना शिवराज सरकार की मजबूरी बन गया था। 2013 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी अनिल जैन को जिताने के लिए सीएम ने इशारों ही इशारों में निवाड़ी को जिला बनाने की सहमति प्रदान की थी। -सिद्धार्थ पाण्डे
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