02-Jul-2018 10:57 AM
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मप्र के हिस्से के बुंदेलखण्ड को संकट से उबारने के लिए प्रदेश सरकार ने कई क्रांतिकारी कदम उठाएं हैं लेकिन वह सभी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए हैं। उधर साल-दर साल बारिश कम होती चली जा रही है। किसान कर्ज के बोझ से दब रहा है। खाद्य सुरक्षा का संकट भी तेजी से बढ़ा है। पलायन के कारण गांव तेजी से उजडऩे लगे हैं। यह सब भयावह तस्वीर जल-जन जोड़ो अभियान की ओर से बुंदेलखंड के चार जिले छतरपुर, टीकमगढ़, पन्ना और दमोह के गांवों में कराए गए सर्वे में सामने आई है। इस सर्वे में हर जिले के एक-एक ब्लाक के चार-चार सबसे ज्यादा समस्याग्रस्त गांवों को लिया गया था। यह सर्वे रिपोर्ट प्रदेश मुख्यमंत्री को एक पत्र के साथ भेजी गई है।
मैग्सेसे पुरस्कार विजेता एवं वाटर मैन राजेंद्र सिंह राणा के निर्देशन में बुन्देलखण्ड में सूखे के प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से जल-जन जोड़ो अभियान के अंतर्गत बुंदेलखंड वॉटर फोरम का गठन किया गया है। इस संगठन से जुड़ी स्थानीय संस्थाओं के प्रतिनिधियों द्वारा ही यह सर्वेक्षण पूरा किया गया है। इस सर्वेक्षण में टीकमगढ़, छतरपुर, पन्ना एवं दमोह जिलों को मुख्य रूप से चयनित किया गया था। सर्वेक्षण के दौरान ऐसे गांवों का चयन किया गया था जो सर्वाधिक सूखे से प्रभावित थे। इस पूरी प्रक्रिया में ग्राम स्तरीय सहभागी आंकलन पद्धति का प्रयोग किया गया है। सर्वे में सामने आया है कि वर्ष 2003 के बाद से बुंदेलखंड प्रत्येक एक वर्ष के बाद भयानक सूखे की चपेट में रहा है। जिस कारण कृषि सिंचाई एवं पेयजल का गंभीर संकट खड़ा हो गया है। आजीविका सुनिश्चितता के लिए यहां के लोगों को पलायन करना पड़ रहा है। अल्प वर्षा एवं बेमौसम बरसात ने खरीफ की फसल को गंभीर क्षति पहुंचाई है। कुंओं, तालाबों, हैंडपम्पों ने पानी देना बंद कर दिया है। भूगर्भ जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। महिलाओंं और बच्चों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। गरीब एवं विपन्न तबके जिसमें प्रमुख रूप से अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति को गंभीर पेयजल का सामना करना पड़ रहा है।
वर्ष 2017 में मानसून की बेरुखी ने बुंदेलखंड के एक बड़े क्षेत्र को अपनी चपेट में लिया है। वैसे तो बुंदेलखंड सूखे और अवर्षा को लेकर चर्चा का विषय रहा है लेकिन पिछले 3 सालों के अनवरत सूखे के कारण स्थिति भयावह है। रबी की फसल में जो थोड़ी बहुत उत्पादन की अपेक्षा थी वह भी कीटों के प्रकोप से पूरी तरह नष्ट हो गई। किसानों में इस साल भी सूखे के प्रभाव को लेकर भय व्याप्त है। सतही जल संरचनाओं ने देख-रेख के अभाव में अपना अस्तित्व खो दिया है। यदि इस साल भी मानसून ने साथ नहीं दिया तो स्थिति बद से बदतर हो जाएगी। गांवों में तो पानी का संकट बढ़ता ही जा रहा है। शहरों में भी पेयजल आपूर्ति ठप हो जाएगी। इसके अलावा कर्ज के बोझ में दबे किसान व फसल के नुकसान के कारण किसान आत्महत्या जैसा घातक कदम उठाने को विवश है। साहूकारों के दबाव के चलते किसान आजीविका की तलाश और कर्ज चुकाने के लिए धनराशि की व्यवस्था के लिए बड़े शहरों की ओर पलायन कर रहा है। जबकि वहां भी उसके साथ भेदभाव किया जा रहा है। दैनिक मजदूरी समय से नहीं मिल रही या फिर कम मिल रही है। उनकी बहू-बेटियों का यौन शोषण हो रहा है। यहां तक कि मजदूर बंधुआ भी बनाए जा रहे हैं।
70-90 प्रतिशत कुएं सूख चुके हैं
बुदंलखण्ड के जिलों में 70-90 प्रतिशत कुएं तथा 75 प्रतिशत हैंडपंप सूख चुके हैं। जिसके परिणामस्वरूप यहां की आबादी को गंभीर पेयजल का सामना करना पड़ रहा है। जो हैंडपंप ठीक हालत में हैं वह भी कम पानी दे रहे हैं। इनके माध्यम से आवश्यकता के आधार पर पेयजल की आपूर्ति कर पाना बेहद कठिन है। यहां की महिलाएं पेयजल की व्यवस्था करने के लिए 8-10 किमी की दूरी तय करने को विवश हैं। शुद्ध पेयजल के अभाव में समुदाय को स्वास्थ्य संबन्धी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। कई ऐसे गांव हैं, जहां पेयजल को लेकर विवाद की स्थिति बनना सामान्य बात हो गई है।
-धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया