15-Jun-2013 07:21 AM
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नेवी में नर्स बनने के लिए दिल्ली से मुंबई गई प्रीति को क्या मालूम था कि बांद्रा टर्मिनस पर जब वह कदम रखेगी तो वह उसकी जिंदगी का आखिरी कदम होगा। प्रीति जैसे ही अपना सामान लेकर नीचे
उतरी उस पर किसी ने तेजाब से हमला कर दिया। बेहद खूबसूरत और नाजुक प्रीति का चेहरा झुलस चुका था और आत्मा घायल हो गई थी। तेजाबी हमला करने वाला अपना काम करके भाग गया।
लेकिन प्रीति की जिंदगी झुलस कर रह गई। एसिड हमले में बुरी तरह घायल होने के बाद उसे अस्पताल ले जाया गया। जहां एक माह मौत से लड़ते-लड़ते अंतत: वह लड़ाई हार गई।
प्रीति अकेली नहीं है देश में ऐसी कई बेटियां हैं जो एसिड हमलों का शिकार होकर या तो आत्महत्या कर लेती हैं या फिर जीवनभर अपने वीभत्स चेहरे को देखते-देखते भगवान को प्यारी हो जाती हैं। एसिड हमला चेहरे और शरीर को ही घायल नहीं करता बल्कि आत्मा को तोड़ देता है। ऐसे हमलों की शिकार महिलाएं तिल-तिलकर जीवन जीती हैं। जिस सौंदर्य के लिए वे हर त्याग करने को, हर बलिदान देने को तैयार रहती हैं वहीं सौंदर्य जब तेजाबी हमले से झुलसता है तो उससे होने वाली पीड़ा केवल शरीर को कष्ट नहीं देती बल्कि ऐसे हमलों की शिकार स्त्रियां जीवन भर उस हादसे को भुला नहीं पाती। यही कारण है कि अब देश में तेजाबी हमलों के खिलाफ सख्त कानून बनाने की मांग उठने लगी है। भारतीय जनता पार्टी की वरिष्ठ नेत्री सुषमा स्वराज ने प्रीति को दो लाख रुपए हर्जाना देने के महाराष्ट्र सरकार के फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि यह पीडि़ता का अपमान है। लगातार बढ़ते तेजाबी हमलों के बाद अब देश में तेजाबी हमले पर मृत्युदंड देने की मांग उठने लगी है। सरकार का कहना है कि वह शीघ्र ही इस संबंध में संसद में कानून लेकर आएगी, लेकिन कानून से भी क्या होगा जब अपराधी पकड़ में ही नहीं आएंगे। प्रीति के हमलावरों को अभी तक पुलिस पकड़ नहीं पाई है। महाराष्ट्र सरकार इस मामले को सीबीआई में देने की बात कह रही है पर सीबीआई कोई भगवान नहीं है। वह भी उन्हीं तथ्यों पर आधारित जांच करेगी जो मुंबई पुलिस ने जुटाए हैं। सीबीआई से ज्यादा उम्मीद करना बेमानी ही हैं। इस प्रकरण में इतना अवश्य होगा कि सीबीआई की जांच के नाम पर मामला ठंडा पड़ जाएगा। लेकिन फिर कोई प्रीति देश के किसी कोने में तिजाबी हमले की शिकार हो जाएगी। इन प्रीतियों को बचाने के लिए तो समाज को ही बदलना पड़ेगा। इस केस में पुलिस को अबतक कोई सुराग नहीं मिला है। प्रीति पर हमले के केस की जांच राजकीय रेलवे पुलिस यानि जीआरपी कर रही है। लेकिन लापरवाही का आलाम ये है कि एक महीना गुजर जाने के बाद भी अब तक हमलावर का कोई सुराग उसे नहीं लगा है। आखिर क्यों दिल्ली आकर प्रीति के घर, मोहल्ले और कॉलेज में किसी से पूछताछ नहीं की गई। प्रीति के पिता को जीआरपी पर अब यकीन नहीं है वो चाहते हैं कि ये केस सीबीआई को सौंपा जाए। प्रीति राठी के साथ हुई घटना ने प्रशासन, पुलिस, रेलवे, चिकित्सा हर महकमे के काम करने के तरीकों की बखिया उधेड़ कर रख दी है। आखिर क्यों बांद्रा टर्मिनस में इतने घटिया सीसीटीवी लगे थे जिनमें किसी की तस्वीर भी पहचान न आए। हादसे के बाद बांद्रा टर्मिनस पर प्रीति कई घंटों तक फर्स्ट एड के इंतजार में क्यों तड़पती रही। घरवालों के मुताबिक शुरुआती इलाज जो मसीना अस्पताल में हुआ उसमें क्यों सिर्फ ऊपरी जख्मों का इलाज किया। अगर पहले ही अंदरूनी घावों पर ध्यान दिया जाता तो प्रीति की जान बचाई जा सकती थी। बॉम्बे अस्पताल में 50 स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की टीम क्या कर रही थी। राष्ट्रीय महिला आयोग भी प्रीति की मौत से आहत है। दरअसल प्रीति की मौत पूरे सिस्टम पर सवाल है। जहां तेजाब हमले की पीडि़तों पर कोई ध्यान नहीं देता। राष्ट्रीय महिला आयोग की मेंबर निर्मला सावंत प्रभावलकर का कहना है कि पीडि़त लोगों का पुनर्वसन होना चाहिए और तुरंत इलाज होना चाहिए। मैं प्रीति के साथ हूं , मामले की सीबीआई जांच होनी चाहिए और इस तरह के मामले की फास्ट ट्रेक में जांच होनी चाहिए। प्रीती के परिवार वाले दोस्त, राष्ट्रीय महिला आयोग की सदस्य और दूसरे संगठनों के लोग रविवार को महाराष्ट्र के गृहमंत्री आर आर पाटिल से मिलने पहुंचे। लेकिन ऐसे मामलों में जहां संवेदनशीलता दिखानी चाहिए वहां सरकार का उदासीन रवैया फिर सामने आया। पहले तो पाटिल ने मिलने से मना कर दिया लेकिन जब ये लोग पाटिल के घर के बाहर सड़क पर बैठ गए तो आखिरकार पाटिल को प्रीति के परिवार वालों से मिलना पड़ा।
डॉ. माया