03-Jul-2018 08:41 AM
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दुनिया की सबसे बड़ी दो अर्थव्यवस्थाओं के बीच व्यापार युद्ध छिड़ गया है। गत दिनों अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीनी सामान पर आयात शुल्क लगाने की घोषणा कर दी है। उन्होंने उस नीति को लागू करने की अनुमति दे दी है जिसके तहत 50 अरब डॉलर मूल्य के चीन से आयतित सामान पर 25 फीसदी शुल्क लगाया जाएगा। उधर, अमेरिका की इस घोषणा के तुरंत बाद ही चीन ने भी पलटवार करते हुए अपने यहां आने वाले अमेरिकी सामान पर समान शुल्क लगाने की घोषणा कर दी है। पिछले एक महीने से इस स्थिति को टालने के लिए इन देशों के बीच बातचीत चल रही थी, लेकिन इनके बीच कोई सहमति नहीं बन सकी।
व्यापार युद्ध छिडऩे के बाद सामने आने वाली परिस्थितियों पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि उनके इस फैसले से अमेरिका को फायदा ही होगा क्योंकि वह पहले से ही चीन के साथ बड़े व्यापार घाटे से जूझ रहा है। ट्रंप की दलीलें हैं कि चीन अमेरिकी कंपनियों की तकनीक यानी बौद्धिक संपदा की चोरी कर अमेरिका को हर साल 225 से 600 अरब डॉलर तक का नुकसान पहुंचाता है। साथ ही उसकी वजह से अमेरिका को हर साल 300 से 400 अरब डॉलर का व्यापार घाटा भी होता है। हालांकि, दुनियाभर के जानकारों की राय डोनाल्ड ट्रंप से एकदम जुदा है। इन लोगों के मुताबिक व्यापार युद्ध से दोनों देशों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा और जीत किसी की भी नहीं होने वाली। ये लोग कहते हैं कि सबसे पहले अमेरिका में इसके परिणामस्वरूप जो भी उद्योग चीनी आयात पर निर्भर हैं, वे अपने उत्पादों की कीमत बढ़ा देंगे और अपने कर्मचारियों की छंटनी करने लगेंगे।
इसे अमेरिका द्वारा चीन के स्टील और एल्युमिनियम आयात से समझा जा सकता है। अब अमेरिका ने इन पर शुल्क बढ़ा दिया है और इसके बाद यहां की जो भी इंडस्ट्रीज इन पर निर्भर हैं उन्हें सस्ता स्टील और एल्युमिनियम मिलना बंद हो जाएगा। ऐसे में वे अपने नुकसान की भरपाई कर्मचारियों की संख्या में कटौती कर या फिर अपने उत्पादों के दाम बढ़ाकर करेंगी। इसी तरह चीन से आने वाली हर चीज अमेरिका में महंगी होगी। एक सर्वे के मुताबिक अमेरिका में सबसे निम्न वर्ग का व्यक्ति भी चीन के सस्ते सामान की वजह से 250 से 300 डॉलर तक अतिरिक्त वार्षिक बचत कर लेता है। ऐसे में अगर चीनी सामान बंद हुआ या महंगा हुआ तो उसकी बचत पर चपत लगनी लाजमी है। अर्थजगत के कई विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर व्यापार युद्ध लंबा खिंचा तो अमेरिकी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा क्योंकि चीन के सस्ते उत्पाद का कोई दूसरा विकल्प ही नहीं है।
अमेरिका के आगे इससे भी बड़ी दिक्कत तब आएगी जब चीन बदले की कार्रवाई के तहत अमेरिकी कृषि और तकनीक से जुड़े उत्पादों के आयात पर अतिरिक्त शुल्क लगाने की घोषणा करेगा। सोयाबीन की ही बात करें तो अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा सोयाबीन उत्पादक देश है, साथ ही सोयाबीन की खेती उसकी कृषि की रीढ़ की तरह मानी जाती है। आंकड़े बताते हैं कि चीन हर साल अमेरिका का करीब 60 फीसदी तक सोयाबीन खरीदता है। ऐसे में चीन के शुल्क लगाने से इसकी सीधी मार अमेरिकी किसानों को झेलनी पड़ेगी।
संकट से उबरने में जुट गया है चीन
चीन के कुल निर्यात में अमेरिका की 18 फीसदी हिस्सेदारी है, वहीं चीन की जीडीपी में निर्यात योग्य वस्तुओं की हिस्सेदारी करीब 20 फीसदी है। इस लिहाज से व्यापार युद्ध के चलते उसके लिए भी मुश्किलें खड़ी होनी तय हैं। ज्यादातर विश्लेषकों का यह भी कहना है कि चीन के अमेरिकी निर्यात को देखते हुए इस व्यापार युद्ध की शुरुआत में सबसे ज्यादा नुकसान चीन को ही होगा। इनके मुताबिक इस शुरुआत में चीन के साथ ऐसा इसलिए होगा क्योंकि उसके यहां बने उत्पादों का एक बड़ा हिस्सा अमेरिका में खपता है। उसे तब तक यह नुकसान उठाना ही पड़ेगा जब तक वह कोई दूसरा वैकल्पिक बाजार नहीं खोज लेता। हालांकि, माना जा रहा है कि उसे यह विकल्प खोजने में ज्यादा समय नहीं लगेगा क्योंकि खुद उसके पास भी एक बड़ा बाजार है, दूसरी बात यह भी है कि चीनी उत्पादों की कम कीमत की वजह से उन्हें किसी भी बाजार में जगह बनाने में ज्यादा समय नहीं लगता। चीन ने व्यापार युद्ध से बनने वाली परिस्थितियों से उबरने के लिए पहले से तैयारी भी शुरू कर दी है।
- अक्स ब्यूरो