18-Jun-2018 09:58 AM
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अमेरिकी राष्ट्रपति और उत्तर कोरियाई शासक के बीच सिंगापुर में हुई ऐतिहासिक मुलाकात अभूतपूर्व और अवास्तविकÓ रही। डोनाल्ड ट्रंप और किम जोंग उन हालिया समय तक एक-दूसरे के खिलाफ बेहद अपमानजनक टिप्पणियां कर रहे थे, लेकिन सिंगापुर में इनके बीच बड़ी लंबी-चौड़ी बातचीत हुई है और दोनों ने एक दस्तावेज पर दस्तखत भी किए हैं। इस दस्तावेज में कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु हथियारों से मुक्त करने की बात कही गई है, हालांकि यह कैसे होगा, यहां इसकी कोई रूपरेखा स्पष्ट नहीं की गई है। इस मुलाकात के जो दूसरे अहम पक्ष हैं, जैसे जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन, ने इस दस्तावेज का स्वागत किया है। लेकिन जैसा कि जाहिर है, कई लोग इसको लेकर आशंकित भी हैं।
किम जोंग उन पर उत्तर कोरियाई नागरिकों के मानवाधिकारों को छीनने से लेकर अपने पारिवारिक सदस्यों की हत्या करने तक के आरोप हैं और इसलिए दुनिया में सबसे अलग-थलग पड़े इस राष्ट्र प्रमुख से ट्रंप की मुलाकात पर दुनिया का एक बड़ा वर्ग आपत्ति जता रहा था। हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपनी इस मुलाकात का बचाव किया है और इसके साथ जैसी कि उनकी आदत रही है, अमेरिका-दक्षिण कोरिया के वार्षिक सैन्याभ्यास को स्थगित कर सबको चौंका दिया है। ट्रंप की दलील है कि इस समय अमेरिका और उत्तर कोरिया संबंधों के एक नए दौर में प्रवेश कर रहे हैं और ऐसे में सैन्याभ्यास एक उकसावे वालाÓ और अनुचितÓ कदम होगा। इस मुलाकात से एक बात साफ है कि किम जोंग उन इसके बाद और ताकतवर बनकर उभरे हैं। अब उनकी सत्ता को विश्व मंच पर कुछ हद तक वैधता मिल गई है। जिस व्यक्ति ने कुछ अरसे पहले तक परमाणु युद्ध की आशंका पैदा कर दी थी, सिंगापुर में उसके साथ ट्रंप एक समकक्ष नेता की तरह पेश आए हैं।
इन दोनों नेताओं ने जिस दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए हैं उसके मुताबिक ट्रंप ने उत्तर कोरिया की सुरक्षा सुनिश्चित करने को लेकर प्रतिबद्धता जताई है। जबकि किम ने कोरियाई प्रायद्वीप को पूरी तरह से परमाणु हथियारों से मुक्त करने को लेकर अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। यहां उत्तर कोरियाई शासक ने जो आश्वासन दिया है, उसकी कोई रूपरेखा न होने की वजह से विश्लेषकों के मुताबिक इस मुलाकात का कोई ठोस नतीजा नहीं निकला। इनका मानना है कि यह मुलाकात बस प्रतीकात्मक रूप से अहम थी। कुछ का तो यह भी कहना है कि अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच एक दशक पहले जो बातचीत
हुई थी, ताजा दस्तावेज की भाषा भी उसी से उठाई गई है।
ट्रंप खुद को निर्णायक कदम उठाने वाले नेता के तौर पर पेश करते हैं और अपने पूर्ववर्ती राष्ट्रपतियों की यह कहकर आलोचना करते रहे हैं कि उन्होंने उत्तर कोरिया के परमाणु खतरे से निपटने के लिए कुछ नहीं किया। इस लिहाज से देखें तो साफ है कि सिंगापुर की इस मुलाकात से अमेरिकी राष्ट्रपति जो कुछ हासिल करना चाहते थे, वह उन्हें नहीं मिल पाया है। यह भी महत्वपूर्ण है कि 1953 के कोरियाई युद्ध को स्थायी रूप से खत्म करने के लिए भी इस दस्तावेज में कोई कदम उठाने की बात नहीं की गई है। तब से लेकर अब तक उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया के बीच औपचारिक रूप से संघर्ष विराम लागू है।
हालांकि इस बात का स्वागत किया जाना चाहिए कि आगे अमेरिका और उत्तर कोरिया के बीच और बातचीत होगी। यही बातचीत किसी भी परमाणु युद्ध की आशंका को कम करेगी और इसी से उत्तर कोरिया की सत्ता को मुख्यधारा में आने में मदद मिलेगी।
विवादों में रहा है उत्तर कोरिया का परमाणू कार्यक्रम
बरसों से उत्तर कोरिया का परमाणु कार्यक्रम घोर विवाद का विषय और खासकर दक्षिण कोरिया, यूरोप और अमेरिका के लिए सिरदर्द बना रहा है। इसलिए अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग-उन की मुलाकात, बातचीत और सहमति एक ऐतिहासिक घटना है। इस मौके पर दोनों नेताओं के बीच जो सहमति बनी और घोषणापत्र जारी किया गया उससे दुनिया ने राहत की सांस ली होगी। दक्षिण कोरिया के लिए यह और भी ज्यादा राहत की बात है। पर सिंगापुर में हुई ऐतिहासिक शिखर वार्ता से जो हासिल हुआ उसे उम्मीद से कमतर ही कहा जाएगा। घोषणा पत्र में कहा गया है कि दोनों देशों की जनता शांति और समृद्धि चाहती है और वे इसी के अनुरूप आपसी रिश्तों को गढ़ेंगे। यह एक गोलमोल कूटनीतिक शब्दावली है और इसमें कोई स्पष्ट प्रतिबद्धता नहीं झलकती जिसका मूर्त रूप से आंकलन हो सके। लेकिन जहां वर्षों से दोनों देश एक-दूसरे को दुश्मन के रूप में चित्रित करते आए हों, वहां यह शब्दावली एक बदलाव की ओर ही संकेत करती है।
- माया राठी