03-Jul-2018 08:34 AM
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पिछले कुछ महीनों से मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र पुलिस की कॉबिंग सर्चिंग से नक्सली बोखलाहट में हैं। इसके लिए वह देश के चार राज्यों के इर्द गिर्द भागकर अपने लिए एक सुरक्षित इलाके को ढूंड रहे हैं। हालांकि, इस भागम भाग के दौरान ही नक्सलियों ने सक्रीयता दिखाते हुए आंध्रा से आई नक्सलियों की नई खेप से सेंट्रल कमेटी ने प्लाटून-56 को एक बार फिर तैयार कर लिया है। इसी के साथ इस दौरान यह भी जानकारी सामने आई है कि, नक्सली मध्य प्रदेश में किसी बड़ी घटना को अंजाम देने की फिराक में है, जिसके चलते वह पुलिस को चकमा दे रहे हैं।
इसी प्लानिंग के साथ नक्सली बालाघाट के सरहदी इलाके से होते हुए मंडला-डिंडौरी के जंगलों को अपना ठिकाना बना चुके हैं। इसमें यह बात भी है कि, अगर उन पर प्रशासन और पुलिस सख्त रवैय्या नहीं अपनाती तो एमपी के मंडला-डिंडौरी से सिंगरौली-सीधी के रास्ते नक्सली गतिविधियों के लिए एक बार फिर संवेदनशील हो जाएंगे। सेंट्रल कमेटी ने बालाघाट और सिंगरौली जिलों में अपनी नजर मुस्तैद की है, क्योंकि इन इलाकों में नक्सली गतिविधियां दिखने लगी हैं, माना जा रहा है कि वह यहां अपना ठिकाना बनाने की फिराक में हैं। इतना ही नहीं अब नक्सली नया ठिकाना तलाश रहे हैं। जिसके लिए सेंट्रल कमेटी ने नई प्लाटून के लिए नए इलाके पर फोकस किया है। नेटवर्क बढ़ाने के लिए एक तरफ जहां बार्डर एरिया में पुलिस आऊट सोर्स बढ़ा रही है। वहीं दूसरी तरफ कवर्धा के रास्ते नक्सली बालाघाट से गुजरकर मंडला-डिंडौरी के जंगलों में सुरक्षित स्थान तलाश अपनी ताकत मध्य प्रदेश के अन्य जिलों में भी बढ़ा रहे हैं।
हालांकि, नक्सलियों ने साल 2012 में हुई पचामा-दादर में पुलिस-नक्सली मुठभेड़ के बाद से मंडला-डिंडौरी के आस-पास के इलाके भी छोड़ दिए थे। लेकिन, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र पुलिस द्वारा राज्य के सरहदी इलाकों और जंगलों में बढ़ी सर्चिंग के बाद एक बार नक्सली इन इलाकों में सक्रिय होने लगे हैं। ऑपरेशन से जुड़े एक सूत्र के मुताबिक, जिन रास्तों पर पुलिस ने नक्सलियों को ढूंढना बंद कर दिया था, आज उन्हीं रास्तों पर एक बार फिर नक्सलियों की चहल-कदमी देखी जा रही है। छत्तीसगढ़-महाराष्ट्र के सीमावर्ती इलाकों से मध्य प्रदेश के बालाघाट जिले में अपनी ताकत बढ़ा रहे नक्सली अपने लिए नए रास्ते बना रहे हैं।
छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में चले नक्सलियों के खिलाफ पुलिस और जवानों की संयुक्त कार्रवाई के बाद मध्य प्रदेश के कान्हां जंगलों में छुपे विस्तार दलम के सदस्य नक्सलियों ने कान्हा के जंगल में एरिया सर्वे करने के बाद अपना ठिकाना बदलने में ही भलाई समझी और अपना ठिकाना बदलना शुरु कर दिया है। वहीं, जहां दूसरी तरफ पुलिस जब जंगल में सर्चिंग करने पहुंची उससे पहले ही नक्सलियों ने एरिया मैपिंग कर अपना इलाका बदल लिया है। छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की बॉर्डर इलाके से पुलिस को चकमा देकर नक्सली महाराष्ट्र की बॉर्डर एरिया में कैंप लगा रहे हैं।
एक तरफ जहां एमपी और छत्तीसगढ़ की पुलिस विस्तार दलम के नक्सलियों को घेरने के लिए कान्हा और मंडला के बीहड़ और जंगली इलाकों में नाकेबंदी और गश्त करते नजर आते है, वहीं दूसरी तरफ वहां से कूच कर चुके हैं, इलाके में कोई संदिग्ध गतिविधि भी देखने में नहीं आई है, जिससे जवानों को ऐसा लग रहा है कि, जिस जगह वह गश्त कर रहे हैं वहां कोई नक्सली है ही नहीं। इसलिए अब पुलिस भी मान चुकी है कि, नक्सली पूरी तरह छत्तीसगढ़ की कवर्धा बॉर्डर से होते हुए कान्हा और मंडला की ओर कूच कर चुके हैं जबकि उत्तर गढ़चिरौली की पार्टी दक्षिण बैहर के इलाके में सक्रियता बढ़ाती जा रही हैं।
पिछले चार महीनों में एमपी, छग और महाराष्ट्र की बॉर्डर में नक्सलियों की तादाद बढ़ती जा रही है। इतना ही नहीं छग व मध्यप्रदेश के कान्हा व मंडला के जंगलों में भारी मात्रा में मौजूदगी के निशान छोड़कर उत्तर गढ़चिरौली के सदस्यों ने महाराष्ट्र के बॉर्डर में सक्रिय हो रहे हैं। हालांकि पुलिस ने नक्सलियों को सक्रिय होने से पहले ही उन्हें खदेडऩे के लिए सक्रियता बढ़ा दी है।
खूंटी की तरह मप्र के आदिवासी गांवों में भी सरकार की नो एंट्री
पत्थलगढ़ी को लेकर झारखंड का गांव खूंटी आजकल चर्चा में है। यहां पर रेप की एक घटना को लेकर सरकार और पत्थलगढ़ी समर्थकों में संघर्ष चल रहा है, उस पर देशभर की निगाहें लगी हुईं हैं। आखिर ये पत्थलगढ़ी क्या बला है। क्यों आदिवासी गांवों में पत्थलगढ़ी का रिवाज बढ़ गया है। मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य गांवों की पड़ताल में पाया गया कि यहां भी ग्रामीण पत्थलगढ़ी के माध्यम से अपनी सरकार चला रहे हैं। मध्यप्रदेश के आदिवासी अंचल के गांवों में नो एंट्री के बोर्ड लगाए जा रहे हैं, इन गांवों में आम आदमी को तो बिना अनुमति घुसने की मनाही है ही सरकार के नुमाइंदे भी बिना अनुमति के नहीं घुस सकते। ऐसा संविधान की पांचवीं अनुसूची को आधार बनाकर किया जा रहा है। ये सिलसिला पिछले एक साल से चल रहा है, इसको लेकर कई स्थानों पर विवाद की स्थिति भी देखने में आ रही है। आदिवासी अंचल के जिले डिंडोरी, बालाघाट और मंडला में ग्राम सभाओं का गठन किया जा रहा है।
- नवीन रघुवंशी