03-Jul-2018 08:31 AM
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भू-संपदा विनियामक प्राधिकरण (रेरा) के गठन होने से पहले तक देश में 76 हजार रियल एस्टेट कंपनियां थीं। इनमें मप्र में करीब 18,000 कंपनियां थी। लेकिन रेरा में इनमें से करीब 10 फीसदी यानी 1839 रियल एस्टेट कंपनियां ही रजिस्टरर्ड हैं।
जानकारों का कहना है कि रेरा के कायदे-कानूनों से बचने के लिए बिल्डरों और कॉलोनाइजरों ने आपस में गठबंधन कर लिया है। इसके तहत किसी एक कंपनी का रजिस्ट्रेशन कराया गया है और उसकी आड़ में कई बिल्डर और कॉलोनाइजर काम कर रहे हैं। इससे सरकार को बड़ी राजस्व हानि पहुंचाई जा रही है। क्रेडाई से जुड़े रियल एस्टेट के एक विशेषज्ञ की मानें तो यह सब रेरा के अधिकारियों के साथ मिलीभगत से हो रहा है। प्रदेश में रेरा के गठन को एक साल से अधिक का समय हो गया है। प्रदेश में अभी तक 1839 रियल एस्टेट कंपनियां ही रजिस्टर्ड हो पाई हैं। इसमें सबसे अधिक भोपाल में 493 कंपनियां हैं। जिसमें से 440 काम कर रही हैं और 53 नए रजिस्ट्रेशन हुए हैं। भोपाल के बाद इंदौर में 419 कंपनियां रजिस्टर्ड हैं।
रेरा का डर बिल्डरों के मन से एक साल में ही खत्म हो गया है। बिल्डर्स रेरा के आदेश को नहीं मान रहे है। हद तो यह है कि कई बिल्डर्स के चेक ही बाउंस हो गए। रेरा द्वारा चिन्हित किए जाने के बाद भी हजारों बिल्डर्स ने अब तक रेरा में पंजीयन तक नहीं लिया। अपनी साख बचाने के लिए रेरा अब जिला प्रशासन और सिविल कोर्ट की शरण में जा रहा है। जिला प्रशासन से भू संपदा कानून के उल्लंघन के एवज में वसूली करने का अनुरोध किया गया है। वहीं सिविल कोर्ट में इन बिल्डर्स को सजा दिलाने की कार्रवाई शुरू की जा रही है।
रेरा घर खरीदारों की रक्षा करने और साथ ही अचल संपत्ति उद्योग को बढ़ावा देने के लिए प्रारंभ किया गया था। 1 मई 2017 से लागू अधिनियम में संपत्ति खरीद आदि की शिकायतों को लेकर ग्वालियर संभाग का आंकड़ा काफी कम है। साल भर बाद भी अभी तक ग्वालियर संभाग से महज 100 शिकायतें ही रेरा को प्राप्त हुई हैं। भोपाल संभाग से सबसे अधिक और सबसे कम शिकायतें जबलपुर से प्राप्त हुई हैं। रेरा प्राधिकरण को साल भर में प्रदेश भर से 1530 शिकायतें प्राप्त हुई जिसमें से 680 में निराकरण के आदेश पारित किए गए हैं। इनमें ग्वालियर के 15 लोगों की शिकायतों का समाधान हुआ है। उल्लेखनीय है कि भोपाल-रायसेन संभाग - 720, इंदौर संभाग - 630, ग्वालियर संभाग - 100 और जबलपुर संभाग - 74 शिकायतें दर्ज की गई हैं। रेरा प्राधिकरण की ओर से आमजन की समस्याओं को सुनने के लिए हर महीने के तीसरे गुरुवार को मोतीमहल के मानसभागार में सर्किट कोर्ट लगाई जाती है। रेरा एक्ट का मुख्य उद्धेश्य आवंटियों को समय पर बिल्डर से आधिपत्य दिलाना व उनके हितों की सुरक्षा करना है।
वर्तमान समय में आम आदमी की सबसे बड़ी जरूरतें हैं आवास और उच्च शिक्षा। दोनों ही सेक्टरों में बैंक लोन की भूमिका काफी बड़ी है, लेकिन बैंकों का फोकस इससे शिफ्ट हो गया है। सालाना कर्ज योजना (एसीपी) के आंकड़े बताते हैं कि बैंकों का एजुकेशन लोन का टारगेट बीते दो साल में 16 प्रतिशत तक घटा है, वहीं हाउसिंग लोन का लक्ष्य भी पिछले साल से 2 प्रतिशत कम है। हैरानी की बात यह है कि बैंकों ने जारी वर्ष में महज 35 हजार छात्रों को ही लोन देने का लक्ष्य रखा है, जबकि मध्यप्रदेश में हर साल 3 लाख से ज्यादा छात्र विभिन्न प्रोफेशनल कोर्स में दाखिला ले रहे हैं। इधर, पूरे प्रदेश में 1900 प्रोजेक्ट्स के जरिए करीब 2 लाख से ज्यादा मकान बनाए जा रहे हैं। इससे कहीं ज्यादा लोग खुद अपने लिए घर बना रहे हैं।
हाउसिंग सोसाइटियों में आरडब्ल्यूए नहीं
स्थिति यह है कि प्रदेश में रेरा का गठन तो कर दिया गया है, लेकिन बिल्डरों द्वारा उसके नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है। कई हाउसिंग सोसाइटियों में रेजिडेंट वेलफेयर एसोसियेशन (आरडब्ल्यूए) ही नहीं है। रियल एस्टेट कानून में यह डवलपर की जिम्मेदारी है कि वह उचित कीमत लेकर तब तक बिल्डिंग की जरूरी सुविधाओं की देखभाल करता रहे जब तक कि उसके लिए आरडब्ल्यूए तैयार ना हो जाये। एक बार रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन बन जाने के बाद बिल्डर सारी जिम्मेदारी वहां रहने वाले लोगों को सौंप देगा। उल्लेखनीय है कि शहरों में अपार्टमेंट या कॉलोनी के किसी पॉकेट में रहने वाले लोग बिजली, पानी, सुरक्षा जैसे मसलों के लिए एक समूह बनाते हैं। ऐसे समूह को रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन कहते हैं।
- रजनीकांत पारे