कैसे बने विश्व रिकार्ड
03-Jul-2018 06:33 AM 1234795
बीते साल राज्य सरकार द्वारा एक ही दिन में किए गए सात करोड़ पौधे लगाने के दावों की पोल सरकार के ही एक अफसर की रिपोर्ट से खुल गई है। इस अफसर को ही विश्व रिकार्ड दर्ज कराने की जिम्मेदारी विभाग द्वारा सौंपी गई थी। अफसर द्वारा सरकार को दी गई रिपोर्ट में आधे से अधिक पौधे गायब होने का उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदेश में दो जुलाई 2017 को महज तीन करोड़ 15 लाख पौधे रोपे गए हैं। इस रिपोर्ट के बाद से सरकार ने चुप्पी साध ली है। जिससे प्रदेश के नाम पर विश्व रिकार्ड दर्ज करने की मंशा पर पानी फिरना तय हो गया है। गौरतलब है कि दो जुलाई को प्रदेश भर में अभियान चलाकर पौधरोपण किया गया था। सरकार ने दावा किया था कि महज 12 घंटे में सात करोड़ 10 लाख पौधे रोपे गए हैं हालांकि हर पड़ताल के बाद लगाए गए पौधों की संख्या कम होती गई और हाल ही में शासन को जो रिपोर्ट सौंपी गई उसके अनुसार अभियान के दौरान तीन करोड़ 15 लाख पौधे रोपे गए हैं। विस सत्र को देखते हुए शासन ने इस रिपोर्ट को लेकर चुप्पी साध लेना ही मुनासिब समझा है। इस अभियान के नाम पर सरकार ने करीब 76 करोड़ रुपए खर्च किए थे। आयोग के अपर मुख्य सचिव रहे दीपक खांडेकर ने रिपोर्ट शासन को सौंपे जाने की पुष्टि की है। उनका कहना है कि गिनीज बुक संस्था के मापदंडों पर ऐसी स्थिति बनी है। वे कहते हैं कि संस्था ने पहले से नहीं बताया था कि कैसे प्रमाण चाहिए। उन्होंने फोटो और वीडियो बनवाने को कहा था। वह हमने किया भी लेकिन बाद में संस्था ने हर साइट का वीडियो मांग लिया। फिर भी हमने जो संभव था वह किया है। इसमें से ज्यादातर वीडियो दो मिनट से कम अवधि के होने के कारण हटा दिए गए। हालांकि खांडेकर ने कम पौधे लगाने के मामले में कुछ नहीं बोला। ज्ञात हो कि गिनीज बुक में रिकार्ड दर्ज कराने रिटायर्ड आईएफएस अफसर वाय सत्यम को बतौर एक्सपर्ट संविदा नियुक्ति की गई है। अफसरों का दावा है कि रिकार्ड ही बनाना है तो अब भी बन सकता है। दरअसल उत्तरप्रदेश सरकार का पांच करोड़ पौधे रोपने का रिकार्ड है लेकिन यह पौधे 24 घंटे मेें रोपे गए। यहां तो 12 घंटे में 3.15 करोड़ पौधे रोपे गए हैं जो अपने आप में रिकार्ड है। प्रदेश में हर साल 8 करोड़ से ज्यादा पौधे लगाए जा रहे हैं, फिर भी हरियाली बढऩे की बजाय घट रही है। भारतीय वन सर्वेक्षण संस्थान की सर्वे रिपोर्ट से पता चलता है कि वर्ष 2013 और 2015 के बीच प्रदेश में 60 वर्ग किमी हरियाली घटी है। जबकि पौधरोपण पर हर साल औसतन 60 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। इस हिसाब से पांच साल में 350 करोड़ रुपए खर्च होने के बाद भी हरियाली नहीं बढ़ी है। दरअसल बरसात के मौसम की शुरुआत होते ही पर्यावरण को सहेजने के प्रयास शुरू हो जाते हैं, जिनके तहत सरकारी अधिकारी, नेता, सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के कार्यकर्ता और यहां तक कि आमजन भी, हर वर्ष वृक्षारोपण अभियान में खूब उत्साह दिखाते हैं। बरसात में देश में वृक्षारोपण के अनगिनत आयोजन भी होते हैं। चारों ओर पेड़ लगाओÓ का शोर सुनाई पड़ता है। बड़ी संख्या में पेड़ लगाए भी जाते हैं। हाल के कुछ वर्षों में तो हर वर्ष बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण किया जाता है। लेकिन असल सवाल इन पौधों को सहेजने का है। पौधारोपण की औपचारिकता भर निभाई जाती है, इन्हें पेड़ बनने तक सहेजने की कोई योजना नहीं होती। हर साल पौधे रोपने के तो रिकार्ड बनाए जाते हैं, पर उन्हें बचाने के मामले में कोई गंभीरता नहीं दिखती। मानसून में रोपे गए अधिकतर पौधे पनपने से पहले ही दम तोड़ देते हैं। यही वजह है कि पेड़ लगाना ही नहीं, उनका संरक्षण करना भी आवश्यक है। वर्तमान में देश के कुल क्षेत्रफल के इक्कीस प्रतिशत हिस्से में जंगल हैं। लेकिन तमाम कारणों से जंगलों का क्षेत्रफल तेजी से घट रहा है। सेंटर फॉर ग्लोबल डवलपमेंट ने यह चेतावनी जारी की है कि यदि पेड़ के घटने की रफ्तार इसी गति से जारी रही तो वर्ष 2050 तक विश्व मानचित्र से भारत के क्षेत्रफल के बराबर जंगल समाप्त हो जाएंगे। भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के समग्र वन क्षेत्रों में एक चौथाई उत्तर-पूर्व के राज्यों में है। लेकिन हाल के वर्षों में उत्तर-पूर्व के राज्यों में भी वन क्षेत्र में कमी आई है। हाल में जारी हुई नेचर जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार भारत में सिर्फ पैंतीस अरब पेड़ हैं, यानी एक व्यक्ति के लिए सिर्फ अ_ाईस पेड़ ही बचे हैं। बावजूद इसके नए पौधों की देखभाल को लेकर कोई गंभीरता नहीं दिखती। कभी ये सिंचाई के अभाव में या तो सूख जाते हैं, तो कभी मवेशी खा जाते हैं। सड़कों के किनारे हों या किसी सरकारी दफ्तर का परिसर, आबोहवा को शुद्ध करने में योगदान देने वाले हजारों पेड़-पौधे देखभाल के अभाव में दम तोड़ देते हैं। खत्म हो गया प्रदेश का 12 वर्ग किमी जंगल फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में भले ही पिछले दो साल में 6778 वर्ग किमी इलाके में फॉरेस्ट कवर बढ़ गया हो, लेकिन मध्यप्रदेश में इसके उलट 12 वर्ग किमी में फॉरेस्ट कवर यानी जंगल पूरी तरह खत्म हो गया है। फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की ओर से गत दिनों जारी एफएसआई रिपोर्ट 2017 में यह तस्वीर सामने आई है। रिपोर्ट के मुताबिक 2015 से 2017 के बीच प्रदेश में 289 वर्ग किमी क्षेत्र से डेंस फॉरेस्ट घटा है। इसमें 23 वर्ग किमी अतिसघन वन क्षेत्र और 266 वर्ग किमी मध्यम सघन वन क्षेत्र शामिल है। इसी दौरान ओपन फॉरेस्ट में 277 वर्ग किमी का इजाफा हुआ है। जाहिर है कि पेड़ों की संख्या काफी कम हो जाने के कारण घना जंगल खुले वन में तब्दील हो गया है। -विशाल गर्ग
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