04-Jun-2018 08:55 AM
1234806
रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन के साथ मोदी की यह कोई पहली भेंट नहीं थी। ये दोनों नेता पिछले चार साल में कई बार मिल चुके हैं। वे 15-20 दिन बाद फिर मिलने वाले हैं लेकिन अभी उनके मिलने का कारण क्या है? इसका सबसे बड़ा कारण डोनाल्ड ट्रंप है। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने ईरान और रूस के विरुद्ध अनेक प्रतिबंध घोषित कर दिए हैं। इन प्रतिबंधों का सीधा असर भारत पर पड़ेगा। भारत इस समय रूस से एस-400 नामक प्रक्षेपास्त्र खरीदना चाहता है, जिनकी कीमत करीब 30 हजार करोड़ रु. है। वह रूस से परमाणु पनडुब्बी भी लेना चाहता है और सुखाई टी-50 लड़ाकू विमान भी। इस वक्त भारत की 68 प्रतिशत शस्त्रास्त्र की जरूरत रूस ही पूरी करता है। भारत-रूस व्यापार अभी 80 हजार करोड़ रु. का है। उसमें गत वर्ष 17 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यदि ट्रंप के प्रतिबंध लागू हुए तो भारत-रूस का यह आदान-प्रदान बुरी तरह प्रभावित होगा। इसी प्रकार ईरान पर लगे प्रतिबंधों के कारण हमारी चाहबहार प्रायोजना ठंडे बस्ते में बंद हो जाएगी। तेल के दाम बढ़ जाएंगे। जाहिर है कि मोदी की इस यात्रा ने इन प्रतिबंधों को दरकिनार करने का संदेश दे दिया है। अमेरिका की खातिर भारत अपने राष्ट्रहितों की कुर्बानी क्यों करे? अमेरिका को नाराज किए बिना भारत अपने राष्ट्रहितों की रक्षा कर रहा है।
मोदी और पुतिन की इस भेंट में दोनों राष्ट्रों ने अपने-अपने हितों की रक्षा का प्रयत्न किया है। शीतयुद्ध के जमाने में रूस के साथ भारत के संबंध इतने घनिष्ट थे कि वे अमेरिका, चीन और पाकिस्तान की ओर से आने वाली चुनौतियों को संतुलित करते थे लेकिन अब रूस भी अपनी विदेश नीति के मामले में काफी लचीला और व्यावहारिक हो गया है तो फिर भारत अपने आपको सिर्फ अमेरिका के साथ नत्थी क्यों कर ले? वर्तमान में भारत और रूस के बीच आपसी आर्थिक सहयोग के छह महत्वपूर्ण क्षेत्र है- रक्षा, परमाणु, अंतरिक्ष, तेल और गैस, नवीकरणीय ऊर्जा, पर्यटन क्षेत्र। आंकड़े बताते हैं कि भारत दुनिया में सबसे बड़े रक्षा आयातकों में से एक है।
वर्तमान में भारत अपनी जरूरतों का अड़सठ फीसदी सैन्य हॉर्डवेयर रूस से ही खरीदता है। गौरतलब है कि भारत अपनी रक्षा तैयारियों पर अगले दस वर्षों में 250 अरब डॉलर अतिरिक्त खर्च करने जा रहा है। उसका बड़ा हिस्सा रूस से सैन्य साजो-सामान खरीदने में लगाएगा। अच्छी बात यह है कि ‘तकनीक का पावरहाउस’ कहलाने वाला रूस भारत को सैनिक साजो-सामान के साथ उसकी तकनीक भी हस्तांतरित कर रहा है, जबकि पश्चिमी देश इसे देने से कतराते हैं।
परमाणु ऊर्जा एक अन्य क्षेत्र है, जिसमें बड़ी तेजी से दोनों देशों के संबंधों का विकास हुआ है। 2030 तक रूस, भारत में सोलह से अठारह नए न्यूक्लियर पावर रिएक्टर लगाने वाला है। इसमें हर एक की क्षमता 1000 मेगावाट और कीमत सत्रह हजार करोड़ रुपए होगी। भारत को परमाणु ऊर्जा से बड़ी उम्मीदें रही हैं और सरकार का दावा है कि वह 2024 तक परमाणु ऊर्जा का उत्पादन 15000 मेगावाट तक पहुंचा देगी जो कि पिछले दशक के उत्पादन का तीन गुना होगा। यानी सहयोग की यह राह फायदेमंद है।
- अक्स ब्यूरो