18-Jun-2018 09:47 AM
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कहने-सुनने की आजादी। संवाद की आजादी। ये दो वाक्य ऐसे हैं जो हमारे कानों में पिछले चार सालों में कुछ ज्यादा ही पडऩे लगे हैं। मोदी सरकार को इनटॉलरेंट बताया जाता है और उसके मूल में संघ के विचारों को रखा जाता है। संघ के आलोचक मानते हैं कि मोदी सरकार में बढ़ी कथित असहिष्णुता के पीछे की मूल वजह संघ का हिंदू राष्ट्रवाद का सिद्धांत है। लेकिन 7 जून की शाम को पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का भाषण सुनने के बाद बहुत से लोगों की यह धारणा जरूर बदली होगी।
दरअसल प्रणब मुखर्जी की इस यात्रा को लेकर कांग्रेस पार्टी के भीतर और स्वघोषित सेकुलर धड़े की तरफ से आलोचना की बौछारें जमकर की जा रही थीं। यहां तक कि खुद उनकी बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने भी लगभग नाराजगी वाले अंदाज में प्रणब दा को चेताया कि लोग आपका भाषण तो भूल जाएंगे लेकिन तस्वीरें हमेशा याद रखी जाएंगी। इस विरोध के पीछे संघ की कट्टरपंथी छवि ही वजह थी। लेकिन इस पूरे विवाद का जिस तरह से अंत हुआ उसने बता दिया कि प्रणब मुखर्जी ने देश की राजनीति में दशकों यूं ही नहीं बिताए हैं।
संघ प्रमुख के वैचारिक भाषण के बाद जब प्रणब मुखर्जी बोलने के लिए आए तो उन्होंने कांग्रेस के उन्हीं सिद्धांतों को पूरी ताकत के साथ रखा जिसे हम नेहरूवाद के नाम से जानते हैं। उन्होंने राष्ट्रवाद, राष्ट्रभक्ति और सेकुलरिजम की पूरी अवधारणा को स्पष्ट कर दिया। प्रणब मुखर्जी ने जिस अंदाज में भाषण शुरू किया उसके बाद ही लगने लगा कि जो उनकी आलोचना कर रहे थे वो अब अपनी बगलें झांकेंगे। प्रणब मुखर्जी ने कहा, जैसा गांधी जी ने बताया है भारतीय राष्ट्रीयता ना बहुत खास है और ना किसी को नुकसान पहुंचाने वाली है। पंडित नेहरू ने कहा कि भारतीय राष्ट्रीयता राजनीति और धर्म से ऊपर है। यह आजादी से पहले था और आज भी यह सच है।
उन्होंने अपने भाषण के दौरान संघ की उस मूल अवधारणा को भी काटा जिसके हिसाब से भारत की जमीं पर पैदा हुए हर व्यक्ति का हिंदू होना बताया जाता है। उन्होंने कहा, जब मैं अपनी आंखें बंद करता हूं तो भारत के एक छोर से दूसरे छोर तक का सपना आता है। त्रिपुरा से लेकर द्वारका। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी। इससे मैं बेहद खुश होता हूं। अनेक धर्म, भाषाएं, जाति और सब एक ही संविधान के दायरे में हैं। इससे भारत बनता है। सब भारतीय हैं। इन सबसे भारत बनता है। सार्वजनिक जीवन में बातचीत जरूरी है। Ó प्रणब मुखर्जी ने अनेकता में एकता के मूल सिद्धांत को बेहतरीन तरीके से लोगों के सामने रखा।
इमेज सुधार की कोशिश
प्रणब मुखर्जी ने एक धुर विरोधी खेमे में जाकर बेहतरीन भाषण दिया इसमें कोई संदेह नहीं लेकिन संघ की इस बात के लिए तारीफ करनी होगी कि उसने बेहतर संवाद का एक जबरदस्त मंच तैयार किया। लोगों के बीच जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय की तारीफ अक्सर इसी बात के लिए की जाती है कि वो संवाद की बेहतर जगह है। जेएनयू को पूरे देश में एक अलग मुकाम उसकी कहने-सुनने की आजादी के कारण ही मिला है। अगर संघ भी प्रणब मुखर्जी जैसे वरिष्ठ नेताओं को अपने मंच पर बुलाकर सुनता है तो इसे संवाद और अभिव्यक्ति की आजादी में एक और नए अध्याय के तौर पर ही देखा जाना चाहिए। यह बात संघ के आला लोगों को भी मालूम होगी कि प्रणब मुखर्जी उनके मंच से संघ की तारीफ नहीं करने जा रहे हैं। प्रणब ने भाषण के दौरान ऐसा किया भी और बिना नाम लिए उन्होंने अपना मतांतर भी स्पष्ट कर दिया। भले ही संघ का ये कार्यक्रम प्रणब दा के बेहतरीन भाषण के साथ खत्म हुआ हो लेकिन इसने संघ की उस असहिष्णु इमेज को भी कमजोर करने का काम किया जिसके आरोप उस पर अक्सर लगते रहे हैं।
-अरविन्द नारद