क्या इशरत जहां के लश्कर से रिश्ते थे?
17-Jul-2013 08:33 AM 1234808

इसे केंद्र सरकार की राजनीतिक चाल भी कह सकते हैं या न्याय के लिए लगातार लडऩे वाले इशरत जहां के परिवार वालों की न्याय के लिए अदम्य इच्छा। वर्षों बाद एक बार फिर इशरत जहां का प्रकरण भारत में सुर्खियों में है। जब इस मासूम सी दिखने वाली महिला को गुजरात पुलिस के एक इंस्पेक्टर ने अपने साथियों के मना करने के बावजूद गोलियों से छलनी करके मौत के घाट उतार दिया था उस वक्त भी काफी हंगामा मचा था। लेकिन लश्कर की वेबसाइट पर जिस अंदाज में इशरत जहां को शृद्धांजलि अर्पित की गई उससे कहीं लगा कि इशरत का लश्कर से कोई रिश्ता था। लश्कर अपने आपको आर्मी ऑफ द प्योर (पवित्र लोगों की सेना) कहता है। इसी कारण हर आतंकवादी को शहीद का दर्जा दिया जाता है। आईबी की पड़ताल का भी यही निष्कर्ष था कि इशरत जहां और उसके साथ मारे गए अन्य लोग आतंकवाद से ताल्लुक रखते थे।
भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि इशरत जहां प्रकरण में सीबीआई ने लश्कर-ए-तैय्यबा से उसकी नजदीकी को नजरअंदाज किया है जो कि खतरनाक है। इशरत और उसके साथियों की पृष्ठभूमि को सही तरीके से जाने बगैर सीबीआई ने इस एनकाउंटर को फर्जी घोषित किया है। भाजपा यह दलील इसलिए दे रही है क्योंकि यह मामला कहीं न कहीं नरेंद्र मोदी से भी जुड़ता है। गुजरात में होने वाली हर वारदात को नरेंद्र मोदी से जोडऩे का चलन भारतीय राजनीति में पिछले एक दशक से है। खासकर गुजरात दंगों के बाद से। हालांकि यह भी सच है कि पिछले दिनों लगभग तीन हजार एनकाउंटर ऐसे हुए हैं जो संदिग्ध हैं और जिनमें मरने वाले या तो ज्यादातर मुस्लिम नवयुवक हैं या फिर नक्सली। भाजपा की निर्मला सीतारमन कहती हैं कि इशरत और उसके साथ के लोगों की आतंकवादियों से निकटता थी। उन्होंने अपने सेटेलाइट फोन के जरिए लगभग 20 कॉल विदेशी आतंकवादियों को किए। सीतारमन का यह भी कहना था कि केंद्र सरकार ने सीबीआई पर दबाव डालकर मनमानी रिपोर्ट बनवाई है। जबकि यह मामला देश की सुरक्षा से जुड़ा हुआ है इसमें राजनीति नहीं की जानी चाहिए।
दरअसल 9 वर्ष पहले का यह मामला चर्चित इसीलिए है कि इसमें कहीं न कहीं गुजरात कनेक्शन है। सीबीआई ने जो अपनी पहली चार्जशीट दाखिल की है उसमें इशरत जहां और उसके तीन साथियों के एनकाउंटर को फर्जी बताया है। आरोप पत्र में इशरत को मारने वाले पुलिसकर्मियों के नाम हैं। जिनके नाम शामिल हैं उनमें तत्कालीन जेसीपी पीपी पांडे (जिन्हें भगोड़ा घोषित किया गया है) तत्कालीन एसीपी डीजी बंजारा, एनके अमीन, जीएल सिंघल, तत्कालीन पीआई जेजी परमार, तरुण बारोट तथा कमांडो अनाजु चौधरी और मोहन कलासवा शामिल हैं। कलासवा की मृत्यु हो चुकी है। हालांकि इस प्रकरण में तत्कालीन सीपी केआर कौशिक के अतिरिक्त वीडी वनार, एचपी अग्रावत, पीजी वाघेला, सीजे गोस्वामी, आरआई पटेल, केएम वाघेला, डीएच गोस्वामी, इब्राहिम चौहान, मोहन भरत पटेल, भला पटेल के साथ-साथ इंटेलीजेंस ब्यूरो के अफसर राजेंद्र कुमार, राजीव वानखेड़े, एमके सिन्हा, टी मित्तल व कुछ अन्य लोगों के खिलाफ भी जांच चल रही है, लेकिन उन्हें फिलहाल आरोप पत्र में शामिल नहीं किया गया है।
इशरत जहां प्रकरण से भारतीय राजनीति के कई दिग्गजों को भाई उम्मीदें हैं। स्वयं भारतीय जनता पार्टी के भीतर कई महत्वाकांक्षी राजनीतिज्ञ मन ही मन इस प्रकरण की तरफ आशा भरी नजरों से देख रहे हैं। नीतिश कुमार से लेकर कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं तक हर एक की नजर कहीं न कहीं इस प्रकरण पर लगी हुई है। इसका कारण यह है कि यदि इस प्रकरण में नरेंद्र मोदी के ऊपर आंच आती हैं तो उसका फायदा उनके विरोधियों को मिलेगा। जिस तरह देशभर में चल रहे सर्वेक्षणों में नरेंद्र मोदी को बढ़त मिली हुई है उसे देखते हुए दिग्गज राजनीतिज्ञों की इस प्रकरण से उम्मीद लगाने की मनोदशा अकारण नहीं है। यही कारण है कि सीबीआई द्वारा इस प्रकरण में दिखाई गई अतिरिक्त जल्दबाजी कहीं न कहीं संदेह उत्पन्न कर रही है। जबकि बाटला हाउस एनकाउंटर सहित कई एनकाउंटर्स ऐसे हैं जिनमें यह साफ पता चलता है कि मुस्लिम युवकों को केवल संदेह के आधार पर बिना किसी सबूत के मार डाला गया। उत्तर प्रदेश में ही ऐसे कई एनकाउंटर्स हुए जिनका कोई जिक्र नहीं होता है, लेकिन गुजरात में होने की वजह से इशरत जहां का प्रकरण अनुपात से कहीं अधिक उछाला जा रहा है बल्कि गुजरात के अन्य एनकाउंटर्स को भी खोज-खोज कर सामने लाया जा रहा है। दिग्विजय सिंह ने तो यहां तक कहा है कि बंजारा की गिरफ्तारी के बाद से अब कोई एनकाउंटर गुजरात में नहीं हुआ।
बहरहाल यह विशुद्ध राजनीतिक एनकाउंटर बनता जा रहा है, जिसके बहाने नीतिश कुमार को कांग्रेस के निकट आने का अवसर भी मिला है। क्योंकि इशरत मूलत: बिहार की हैं। लेकिन सवाल वही है जैसा कि राजनाथ सिंह ने कहा भी है कि सरकार को इशरत के आतंकवादियों से संपर्क का खुलासा करना चाहिए। सीबीआई ने अपने आरोप पत्र में यह कहा है कि इशरत का आतंकवादियों से कोई संबंध नहीं था। पर जिन सात वरिष्ठ अधिकारियों को आरोपी बनाया गया है वह कहीं न कहीं इशरत जहां के लश्कर-ए-तैय्यबा से जुड़े होने की बात कह रहे हैं। बहरहाल भले ही इशरत जहां लश्कर-ए-तैय्यबा से संबंधित थी, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि उसे बेरहमी से मार दिया जाए। अहमदाबाद की क्राइम ब्रांच ने 19 वर्षीय इशरत जहां व जावेद शेख उर्फ प्रणेश पिल्लई को मुठभेड़ से दो दिन पूर्व 12 जून 2004 को आणंद जिले के वासद टोल बूथ से उठाया था। इसमें पुलिस अफसर एनके अमीन व तरुण बारोट की खास भूमिका थी। केंद्र सरकार के लिए परेशानी की बात यह है कि गुजरात के आईबी अफसर एनके सिंहा व राजीव वानखेड़े ने इसमें क्राइम ब्रांच की मदद की थी। उसके बाद इशरत और जावेद को एसजी हाईवे के खोडियार फार्म में रखा गया। यहां पर बारोट के कांस्टेबल निजामुद्दीन तथा विश्वनाथ दोनों की निगरानी कर रहे थे तभी आईबी के गुजरात प्रभारी राजेंद्र कुमार व डीजी बंजारा ने दोनों से अलग-अलग पूछताछ की। बताया जाता है कि इस पूछताछ के दौरान नरेंद्र मोदी को मारने की कथित योजना के बारे में तहकीकात की गई। लेकिन बात तहकीकात तक ही नहीं थी। 14 जून 2004 को बंजारा ने जीएल सिंघई को आईबी के कार्यालय से हथियार भरा थैला लाने को कहा। सिंघल ने वह थैला निजामुद्दीन के बार्फथ बारोट तक पहुंचा दिया। बाद में बंजारा ने सिंघल को क्राइम ब्रांच के डफनाला स्थित कार्यालय बुला लिया जहां पर पीपी पांडे पहले से ही मौजूद थे। बंजारा ने मुठभेड़ की पूरी प्राथमिकी बनाकर रखी थी, जिसमें कुछ जगह खाली थी। 15 जून को क्राइम ब्रांच की टीम सुबह 4.00 बजे ही पहुंच गई। उसके बाद इशरत, जावेद, जिशान जौहर, अमजद राणा को कोतरपुर इलाके में डिवाडर पर गोली मार दी गई। गोली मारने वाले थे अमीन, बारोट, अनाजु व मोहन। कहा जाता है कि इशरत को गोली मारने के पक्ष में कुछ लोग नहीं थे लेकिन बाद में किसी ने उसे भी मार दिया यह कहते हुए कि जिंदा रह गई तो सरदर्द बन जाएगी। इशरत जहां की मां शमीमा कौशर का कहना है कि इशरत को मारने वाले पुलिस कर्मियों को सजा देने से काम नहीं चलेगा। सजा उन्हें भी मिलना चाहिए जिन्होंने यह षड्यंत्र रचा।
मुश्किल यह है कि सीबीआई द्वारा तैयार यह रिपोर्ट भी न्यायालय में ठहरने वाली है नहीं। क्योंकि इसमें कई सवाल ऐसे पैदा हो रहे हैं, जिनमें आरोपियों के बचने की गुंजाइश पूरी है। कांग्रेस महासचिव मधुसूदन मिस्त्री ने कहा है कि भले ही नरेंद्र मोदी का नाम इस प्रकरण में न आया हो लेकिन वे किसी न किसी दिन बेनकाब अवश्य होंगे। कांग्रेस के दूसरे दिग्गज नेताओं के बयान भी इसी से मिलते-जुलते हैं। इसी कारण अब यह तय लगने लगा है कि राजनीतिक लाभ की दृष्टि से कहीं न कहीं मुठभेड़ को कुछ ज्यादा ही तूल दी जा रही है। भारतीय जनता पार्टी के अतिरिक्त भी कई अन्य लोगों का मानना है कि मुठभेड़ों की जांच पड़ताल करने पर लगभग हर राजनीतिक दल कटघरे में खड़ा होगा क्योंकि कांग्रेस के शासनकाल में भी ऐसी फर्जी मुठभेड़ होती रही हैं। पंजाब में आतंकवाद के दौरान लापता हुए निर्दोष सिक्ख युवकों को किस तरह फर्जी मुठभेड़ का निशाना बनाया गया था यह किसी से छिपा नहीं है। इन लोगों के बारे में आज तक कोई पता नहीं है। उनके परिजन दर-दर भटकने को मजबूर हैं। यदि सही तरीके से जांच करनी हैं तो सारे प्रकरणों पर गंभीरता पूर्वक बिना किसी राजनीतिक दबाव के काम किया जाना चाहिए। लेकिन लगता है सीबीआई और भारत की अन्य सुरक्षा एजेंसियों को सरकार के इशारे पर काम करने की आदत बन गई है।
गुजरात पुलिस ने जिस अंदाज में 15 जून 2004 को तड़के जावेद की इंडिका में कोतापुर वाटरवर्क रोड के निकट इशरत जहां और इसके तीन साथियों को ले जाकर सबेरे-सबेरे गोलियों से छलनी कर दिया था वैसे कारनामें देश भर में होते आए हैं। इशरत प्रकरण में 20 जूनियर पुलिस वालों से पूछताछ करके निष्कर्ष निकाला गया है, लेकिन दिन दहाड़े होने वाले ऐसे कई एनकाउंटर्स हैं जिनकी जांच लगातार होने के बावजूद कोई नतीजा नहीं निकल पाता। बहरहाल कांग्रेस और भाजपा के बीच शब्दों की लड़ाई जारी है। उधर इंटेलीजेंस ब्यूरो ने भी अपने अधिकारियों को बचाने की कवायद शुरू कर दी है। हाल ही में इंटेलीजेंस ब्यूरो ने सीबीआई को एक पत्र लिखकर बताया है कि राष्ट्रीय अन्वेषण एजेंसी एनआईए ने जब अमेरिका के शिकागो की जेल में बंद आतंकवादी डेविड हेडली से वर्ष 2010 में पूछताछ की थी तब उसने बताया था कि इशरत जहां का संबंध आतंकवादियों से है। हेडली 26 नवंबर 2008 में मुंबई में हुए सिलसिलेवार हमले में परोक्ष रूप से शामिल था जिसमें 166 लोगों की जानें गई थी। 119 पृष्ठीय रिपोर्ट जो एनआईए ने हेडली से बातचीत के आधार पर तैयार की है, में हेडली के हवाले से कहा गया है कि लश्कर कमांडर जकीउर रहमान लकवी ने उसे (हेडली को) बताया था कि एक आतंकवादी हमला विफल हो गया है क्योंकि इशरत जहां के साथ जिन लोगों को यह काम दिया गया था उन्हें पुलिस ने मार दिया है। एनआईए ने हेडली की रिपोर्ट इंटेलीजेंस ब्यूरो को भी बताई थी। यह दस्तावेज मीडिया को भी उपलब्ध कराए गए थे, लेकिन कमाल की बात तो यह है कि इन दस्तावेजों में इशरत जहां से संबंधित दो पैराग्राफ शामिल ही नहीं किए गए थे। अब जबकि आईबी के अधिकारी फंसते नजर आ रहे हैं, आईबी ने यह नया खुलासा करके मामले को और पेंचीदा बना दिया है। जहां तक एनकाउंटर का प्रश्न है, यह एनकाउंटर यदि झूठा था तो निहायत घटिया और कायराना कार्रवाई कहा जा सकता है। क्योंकि भले ही इशरत के लश्कर-ए-तैय्यबा से रिश्ते रहें हो पर उसे यूं मारना उचित नहीं था। इशरत की जांच पड़ताल की जानी चाहिए थी। जहां तक राजनीति का सवाल है वह होती रहेगी, लेकिन देश की सुरक्षा सर्वोपरि है।

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