खलनायिकी के प्राण अलविदा
17-Jul-2013 08:31 AM 1234981

फिल्म जगत के सहस्राब्दी खलनायक प्राण अब हमारे बीच नहीं हैं किन्तु उनकी अदाकारी की छाप लोगों के जेहन से सदियों तक निकलने वाली नहीं है। प्राण साहब अभिनय की वो जीती-जागती मिसाल थे, जिन्होंने अपने दमदार अभिनय से लोगों का दिल जीता। उनकी पहचान खासतौर पर एक खलनायक की थी, लेकिन चरित्र अभिनेता के तौर पर भी खूब वाहवाही लूटी।  प्राण ने कई फिल्मों में अपने दमदार अभिनय की छाप छोड़ी। 12 फरवरी 1920 को दिल्ली में पैदा हुए प्राण ने हालांकि लाहौर से अपना करियर बतौर फोटोग्राफर शुरू किया था। 1940 में यमला जटÓ फिल्म में उन्हें पहली बार काम करने का मौका मिला। इसके बाद प्राण ने एक से बढ़कर एक करीब 400 फिल्मों में काम किया। अभिनय में उन्हें इस कदर महारत हासिल थी कि खलनायक के रूप में उनकी ऐसी छाप बन गई थी कि परदे से अलग भी लोग उनसे नफरत करने लगे थे। हालांकि खलनायक के अलावा प्राण एक सशक्त चरित्र अभिनेता भी रहे। 1968 में उपकारÓ, 1970 में आंसू बन गए फूलÓ और 1973 में बेईमानÓ फिल्म के लिए प्राण को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के लिए फिल्म फेयर अवॉर्ड मिला। इसके बाद उन्हें सैकड़ों सम्मान और अवॉर्ड मिले। इसी साल यानी 2013 में प्राण को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से भी नवाजा गया था। प्राण की शख्सियत विराट थी। निश्चित रूप से कहीं न कहीं अपने जीवन में अनुशासन को उन्होंने भरपूर तवज्जो दी है और अपनी आत्मशक्ति को विकसित। अपने प्रति समाज और इंडस्ट्री के मन में व्याप्त आदर की झलकियां जब वे बड़े आयोजनों, सभा सोसाइटियों में देखते तो भावुक हो जाते। लाखों-करोड़ों आंखों में अपने प्रति जो जज्बात देखते, वह उनको उनके स्वर्णिम अतीत की ओर ले जाता। प्राण साहब को भारतीय सिनेमा की इंडिपेडेंट आयडेंटिटी कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। उनकी एक फिल्म धर्माÓ का उदाहरण इसी संदर्भ में लिया जा सकता है। उस फिल्म का नाम ही प्राण साहब के निभाए चरित्र पर रखा गया था। दिलचस्प यह है कि उस फिल्म में भी हीरो-हीरोइन थे, मगर गौण थे। सारी फिल्म प्राण साहब के कंधों पर थी।  उस फिल्म की एक कव्वाली जो बिन्दु के साथ फिल्माई गई, इशारों को अगर समझो, राज को राज रहने दोÓ एवरग्रीन कव्वाली है, जिसको लोगों ने तब रट तक लिया था, जब यह फिल्म प्रदर्शित हुई थी। प्राण की अदाकारी के मुरीद दर्शक इस फिल्म को देखने महीनों तक सिनेमाघर तक जाते रहे। किसी भी फिल्म को सफलता के दरवाजे तक अपने दमखम पर ले जाने की महारत प्राण साहब को हासिल थी। प्राण साहब की सक्रियता का कालखंड इतना विस्तीर्ण है कि उनके सामने ही कितने ही चरित्र अभिनेता, कितने ही नायक, कितने ही खलनायक, कितनी ही हीराइनें आईं और चली गईं मगर प्राण साहब वहीं के वहीं रहे। प्राण साहब एक यशस्वी अभिनेता रहे। उनके निभाए किरदार आज तक लोग भुला नहीं पाए। इसका यही कारण है कि वे अपने काम को पूजा मानते। खलनायक, चरित्र अभिनेता, कॉमेडियन सभी आयामों में प्राण उत्कृष्ट ही रहे। सभी डायमेंशनों में सबसे सर्वोत्कृष्ट नजर आने वाले प्राण के व्यक्तित्व और उनकी सर्जनात्मक क्षमता को रेखांकित करना समुद्र की लहरें गिनने से भी ज्यादा बड़ा और कठिन काम है। सिनेमा में अविस्मरणीय और कालजयी योगदान को माप सकने के लिए हमारे पास कोई बैरोमीटर नहीं है। फिल्म जगत में वे सर्वोत्कृष्ट रहेंगे।

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