पुराने रंग में केजरी
18-Jun-2018 09:16 AM 1234829
खुद को बागी के तौर पर दुनिया के सामने पेश करने वाले नेता और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक बार फिर से देश की राजधानी दिल्ली में सक्रिय हो गए हैं। लोगों को याद दिला दें कि अरविंद केजरीवाल स्वघोषित अराजकतावादी हैं। पिछले कई बार की तुलना में इस बार उनके धरने में जो बात अलग है वह ये कि, इस बार की चिलचिलाती गर्मी में उन्होंने आंदोलन की जगह सड़क पर नहीं बल्कि दिल्ली के एलजी के रूम के वेटिंग रूम को चुना। जहां न उन्हें गर्मी सहनी पड़ी और ही कड़कड़ाती ठंड झेलनी पड़ी। मसलन- आराम से एसी कमरे में, सेंटर टेबल में पैर फैलाकर सोफे में आराम फरमाना या काउच पर पड़े होना- एक किस्म का आराम ही तो है। केजरीवाल ने इससे पहले अपना अंतिम धरना, साल 2014 की सर्दियों में गणतंत्र दिवस के कुछ दिन पहले ही रेल भवन के नजदीक दिया था, तब उन्होंने विजय चौक से कुछ पुलिस वालों जिनमें कुछ एसएचओ और कुछ एसीपी शामिल थे, उन्हें वहां से हटाने की मांग की थी। तभी उन्होंने पूरी शान के साथ ऐलान किया था कि, हां मैं एक अराजक इंसान हूं, हां मैं शांति भंग करता हूं...Ó उस वक्त केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री के पद पर आसीन थे लेकिन, तब भी उन्होंने अपना एक और प्रख्यात वक्तव्य दिया था, जिसमें उन्होंने देश में गणतंत्र दिवस क्यों मनाया जाए, इस पर सवाल किया था। तब उन्होंने ये भी कहा था कि वे कम से कम 10 दिनों तक के लिए धरना प्रदर्शन की तैयारी कर के आए हैं। 11 जून 2018 को अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के एलजी अनिल बैजल से मिलने का वक्त मांगा और अपने तीन मंत्रियों के साथ उनसे मिलने पहुंचे। उन्होंने एलजी महोदय के सामने मांग रखी कि दिल्ली के सभी कार्यरत आईएएस अफसरों को तत्काल प्रभाव से बुलाकर उन्हें अपनी तीन महीने पुरानी हड़ताल तोडऩे का आदेश दिया जाए। (हालांकि, तकनीकी तौर पर ऐसी कोई हड़ताल हुई ही नहीं है, क्योंकि सभी अफसर रोजाना दफ्तर आ रहे हैं और अपना काम भी कर रहें हैं चूंकि आम विधायकों ने मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ मुख्यमंत्री के घर पर केजरीवाल और सिसोदिया की मौजूदगी में मारपीट की है, इसलिए अब इन अफसरों ने मिलकर ये फैसला किया है कि वे अकेले में किसी मंत्री से उसके चेंबर में न तो मिलने जाएंगे न ही उनके आदेश लेंगे)। अब सरकार दोषी अधिकारियों के खिलाफ एस्मा कानून लगाने की बात कर रही है। केजरीवाल और उनके साथियों ने साफ लहजे में कह दिया है कि वे तब तक अपना धरना खत्म नहीं करेंगे, जब तक उनकी मांगें मान नहीं ली जातीं। अब ये समझने के लिए हममें से किसी को भी ज्योतिषी होने की जरूरत नहीं है कि- ये गतिरोध जल्द खत्म होने से रहा। इस बीच केजरीवाल और उनकी कंपनी वापिस से अपनी उन्हीं तौर-तरीकों में लौट आई जिनके लिए वे प्रख्यात हैं, और वो है हर बात के लिए पीएम मोदी को दोषी ठहराना। पिछले कुछ महीनों में आम आदमी पार्टी पंजाब चुनावों में करारी हार, दिल्ली उपचुनावों में भी निराशाजनक प्रदर्शन और कपिल शर्मा के विद्रोह के बाद केजरीवाल ने लगभग पीएम मोदी का नाम लेना ही बंद कर दिया था, (सही कहें तो उन्होंने एक तरह से चुप्पी साध ली थी), लेकिन अब वे फिर से मोदी का नाम जपने लगे हैं। हाल ही में उन्होंने अपने एक विश्वासी सहयोगी और राज्यसभा सांसद संजय सिंह के उस बयान का समर्थन किया था जिसमें संजय सिंह ने कहा था, उपराज्यपाल पीएम मोदी के हाथ की महज एक कठपुतली हैं, जो उनके इशारों पर नाच रहे हैं।Ó इस बात में कोई दो राय नहीं है कि 11 अप्रैल को मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ हुई मारपीट के बाद दिल्ली सरकार का कामकाज पूरी तरह से ठप्प हो गया है। लेकिन, इसके बावजूद केजरीवाल सरकार ने अफसरों की शिकायतों को दूर करने की कोई ठोस कार्रवाई नहीं की है। बदले में उन्होंने उन पीडि़त अधिकारियों पर कई तरह के आरोप ही लगाए हैं। इसी सरकार के साथ क्यों है ऐसी समस्या? ये भी सही है कि दिल्ली सरकार से जुड़े सभी प्रशासनिक अधिकार दिल्ली के राज्यपाल के पास है, न कि दिल्ली के मुख्यमंत्री के पास, जिसे दिल्ली हाईकोर्ट भी कह चुकी है। दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश या यूं कहे तो हाफ-स्टेट है। केजरीवाल यहां के दो उपराज्यपालों से सत्ता में आने के बाद से लगातार लड़ाई कर रहे हैं। पहली बार 2013-2014 में दो महीनों के लिए और दोबारा साल 2015 में सत्ता में आने के बाद से। यहां ये बताना जरूरी है कि इसी सिस्टम के भीतर दिल्ली के चार मुख्यमंत्रियों ने 20 सालों तक काम किया है- जिनमें मदनलाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा, सुषमा स्वराज और शीला दीक्षित शामिल हैं। इन लोगों का दिल्ली के एलजी के साथ किसी तरह का कोई बड़ा विवाद कभी नहीं हुआ। लेकिन केजरीवाल के साथ ये आए दिन की बात हो गई है, मानो ये उनकी दिनचर्या का हिस्सा है। यहां ये जानना बेहद दिलचस्प है कि केजरीवाल दूसरों पर दोष मढऩे और धरना-प्रदर्शन करने के अपने पुराने तौर-तरीके पर तब पहुंचे हैं जब वे बीजेपी समेत कई अन्य पार्टी के नेताओं से हाथ जोड़कर माफी मांग चुके हैं। इनमें बिक्रम सिंह मजीठिया, नितिन गडकरी, अमित सिब्बल (कपिल सिब्बल के बेटे), से लेकर दिल्ली पुलिस पर किया गया ठुल्लाÓ की टिप्पणी जैसे कई अन्य नाम शामिल हैं, जो काफी लंबा चल सकता है। लेकिन, केजरीवाल अपने पुराने तेवर में तब लौटे जब वित्तमंत्री अरुण जेटली ने उन्हें माफ कर दिया और उनके खिलाफ दायर कई सिविल और क्रिमिनल केस खत्म कर दिए। - बिन्दु माथुर
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