18-Jun-2018 07:06 AM
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आज नीतीश कुमार की स्थिति न घर के न घाट के वाली हो गई है। राजद से उन्होंने नाता तोड़ लिया और अब भाजपा भाव नहीं दे रही है। ऐसे में अब उनकी छटपटाहट सामने आने लगी है। वे भाजपा से उखड़े-उखड़े नजर आ रहे हैं। ऐसे में उनकी पार्टी ने भी यह ऐलान कर उनकी मंशा को जाहिर कर दिया है कि बिहार में नीतीश कुमार एनडीए का चेहरा होंगे। इससे लगता है कि पार्टी अब उस झटके से उबर रही है, जो उन्होंने खुद लिया था। पिछले साल महागठबंधन से नाता तोड़ कर बीजेपी के साथ सरकार बनाने के फैसले की वजह से नीतीश कुमार की आलोचना और प्रशंसा दोनों हुई। लेकिन हाल में हुए दो उपचुनावों में हार से यह साफ हो गया है कि कहीं न कहीं रणनीति में चूक है, इसलिए पार्टी अब फिर कमर कसने लगी है। 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भी अपना हक लेना है। जदयू जिस उम्मीद के साथ बीजेपी की सरकार से मिली, वो पूरी नहीं हुई है। ऐसे में उसकी स्थिति ऐसी हो गई जैसे कोई लड़की परिवार
को छोड़कर प्रेमी के साथ जाए और प्रेमी उसे धोखा दे।
भ्रष्टाचार को लेकर नीतीश कुमार ने महागठबंधन सरकार से इसलिए नाता तोड़ा था कि बीजेपी के साथ मिलकर बिहार का विकास करेंगे। हालांकि, नीतीश कुमार को पहला झटका तब लगा जब सार्वजनिक मंच से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पटना विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देने से इनकार कर दिया। मंत्रिमंडल में उनकी पार्टी को जगह नहीं मिली। उसके बाद बाढ़ के समय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बाढग़्रस्त इलाकों का दौरा किया और केवल 500 करोड़ की फौरी राहत दी। लोगों को लगा कि हो सकता है बाद में केन्द्र सरकार मदद करेगी। बिहार सरकार ने दिल खोल कर लोगों को राहत पहुंचाई और लगभग 7400 करोड़ का राहत का प्रस्ताव केन्द्र के पास भेजा, लेकिन मिले कुल 1700 करोड़। साफ है कि बिहार को लेकर केन्द्र की मंशा क्या है। यही वजह है कि नीतीश कुमार ने फिर से बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग को तेज कर दी।
नीतीश कुमार अभी भी देश के उन गिने-चुने नेताओं में से है, जिनकी छवि अच्छी है। और अच्छी छवि की वजह से ही कई गलतियों के बाद भी जनता उन्हें मौका देती रही है। बीजेपी के साथ न जाने के 2013 के उनके प्रण को छोड दें तो बाकी वायदों को वो पूरा करने की पूरी कोशिश करते हैं और उनकी यही छवि भी रही है। 12 साल से बिहार में उनका शासन है, लेकिन व्यवस्था का दोष कहें या फिर बिहार का दुर्भाग्य, जिस गति से प्रगति होनी चाहिए, उस गति से बिहार की प्रगति नहीं हुई है। अब लालू-राबड़ी के 15 साल का मुद्दा भी नहीं रहा। ऐसे में नीतीश कुमार के लिए अपनी छवि के साथ-साथ बिहार को तेज गति से विकास कराने की बड़ी चुनौती है।
यानी नीतीश कुमार को अपनी टीम का विकेट बचाने के साथ-साथ रन गति को भी तेज करना होगा। नीतीश कुमार के लिए अपनी कुर्सी उतनी महत्वपूर्ण नहीं होनी चाहिए। 15 साल का शासन कम नहीं होता है, बल्कि उन्हें ऐसा करना चाहिए कि लोग उनके विकास के कामों को लेकर वर्षों तक याद करें और सम्मान में भी कोई कमी न हो। लेकिन ये होगा कैसे? बिना रोए तो मां भी बच्चे को दूध नहीं पिलाती है। नीतीश कुमार में अभी भी दम है। अपने फैसले को लेकर वो भले ही कुछ दिनों से चुप हैं, लेकिन अब शायद ऐसा नहीं होगा। जदयू की कोर कमेटी के इस फैसले से साफ है कि नीतीश कुमार ही बिहार में एनडीए का चेहरा होंगे। पार्टी ने अपनी कमर कसनी शुरू कर दी है।
अब लालू या पासवान
संकेत और भाव भंगिमा की बात छोड़ भी दें तो बिहार की सियासत से आने वाली भीतर की खबरें भी कह रही हैं कि नीतीश सियासी शतरंज पर मोहरे फिट करने का काम शुरू कर चुके हैं। पटना के सियासी गलियारों में राम विलास पासवान से एक बार फिर उनकी नजदीकी के चर्चे हैं। इसके अलावा नीतीश कुमार केंद्र में मंत्री और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के नेता उपेंद्र कुशवाहा के साथ अपने गिले-शिकवे दूर कर चुके हैं। पहले इसे नीतीश की एनडीए में वापसी पर एक सामान्य बात माना जा रहा था, लेकिन उनके मौजूदा रुख ने साफ कर दिया है कि वे प्लान बी और सी पर भी गंभीरता से काम कर रहे हैं। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष सार्वजनिक रूप से कह भी चुके हैं कि 2019 के चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधनों में री-अलाइनमेंट हो सकता है। वैसे भी रालोसपा जब-तब न्यायपालिका और निजी सेक्टर में आरक्षण की मांग कर भाजपा सरकार को असहज करती रहती है। विश्लेषकों के मुताबिक ये तमाम राजनीतिक गतिविधियां अभी भले ही बिखरी-बिखरी लग रहीं हैं, लेकिन नीतीश इन्हें एक दिशा में लाने की कवायद में जुटे हुए हैं। चर्चा तो यहां तक है कि इस कुनबे में पप्पू यादव भी शामिल हो सकते हैं।
- विनोद बक्सरी