राहत या आफत
18-Jun-2018 08:06 AM 1234761
सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण की सशर्त अनुमति देकर जहां केंद्रीय कर्मचारियों को बड़ी राहत दी है, वहीं मप्र में राजनीति को गरमा दिया है। हालांकि मप्र के अधिकारियों और कर्मचारियों को फिलहाल ये राहत नहीं मिल पाएगी। इसके लिए राज्य सरकार को फिर सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ेगा। विधि विशेषज्ञ कहते हैं कि केंद्रीय कर्मचारियों के परिप्रेक्ष्य में सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरण विशेष में अंतरिम आदेश दिया है, जो राज्यों पर लागू नहीं होता है। यदि गाइडिंग प्रिंसिपल ऑर्डर होता तो राज्य सरकार पदोन्नति करने के लिए स्वतंत्र होती। फिर भी चुनावी साल में इस मामले ने राज्य में एक बार फिर तूल पकड़ लिया है। आरक्षण का विरोध करने वाले कर्मचारियों का संगठन सामान्य, पिछड़ा, अल्पसंख्यक वर्ग समाज संस्था (सपाक्स) हो या फिर आरक्षण का समर्थन करने वालों का संगठन अनुसूचित जाति जनजाति अधिकारी कर्मचारी संघ (अजाक्स) दोनों ने मोर्चा संभाल लिया है। दोनों के निशाने पर सरकार है। अजाक्स के प्रांतीय महासचिव एसएस सूर्यवंशी का कहना है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण संबंधी निर्देश जारी कर दिए हैं तो फिर सरकार लेटलतीफी क्यों कर रही है। 13 दिसंबर 2015 को ग्वालियर में अजाक्स का एक बड़ा अधिवेशन आयोजित किया गया था, जिसमें मुख्यमंत्री भी शामिल हुए थे, उस समय उन्होंने हमारी मांगें मानने का आश्वासन दिया था, इसके बाद 12 जून 2016 को मुख्यमंत्री ने जो घोषणा की थी उसका पालन अब तक नहीं हुआ है। इस बात को 2 वर्ष निकल गए लेकिन अब तक घोषणा पूरी नहीं हुई है। सूर्यवंशी बताते हैं कि 1 लाख 4 हजार के बैकलॉग खाली पड़े हुए हैं, उन्हें पूरा नहीं किया जा रहा है। पदोन्नति नियम 2017 पिछले 1 वर्ष से ड्रॉप किया हुआ है। इसी के चलते 24 जून को राजधानी भोपाल के दशहरा मैदान में पूरे प्रदेश के कर्मचारी अधिकारी एकत्रित होकर एक बड़ा प्रदर्शन करने की तैयारी कर रहे हैं। वह कहते हैं कि बहुत ही दुख की बात है कि मुख्यमंत्री की घोषणाओं को पूरा करवाने के लिए अधिकारी कर्मचारियों को रोड़ पर आना पड़ रहा है। उधर सपाक्स के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. केएस तोमर का कहना है कि फैसला सिर्फ केंद्रीय कर्मचारियों के संबंध में है। इसे मप्र में लागू नहीं किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कानून के मुताबिक पदोन्नति देने को कहा है। मप्र के परिप्रेक्ष्य में देखें, तो हाईकोर्ट मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) नियम 2002 खारिज कर चुका है। जिसके खिलाफ राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट गई है। अब पदोन्नित की जाती है, तो 1998 के नियम से ही संभव है या फिर संविधान पीठ के फैसले का इंतजार करना पड़ेगा। उल्लेखनीय है कि मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 30 अप्रैल 2016 को मप्र लोक सेवा (पदोन्नति) अधिनियम 2002 खारिज किया है। तब से अब तक 55 हजार से ज्यादा कर्मचारी सेवानिवृत्त हो चुके हैं। इनमें करीब 22 हजार कर्मचारी ऐसे हैं, जिनकी पदोन्नित के लिए डीपीसी हो चुकी थी या डीपीसी की तैयारी चल रही थी। हर माह दो हजार से ज्यादा कर्मचारी सेवानिवृत्त हो रहे हैं। पूर्व अतिरिक्त महाधिवक्ता अजय मिश्रा कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट की अवकाशकालीन पीठ ने प्रकरण विशेष में कर्मचारियों के पदोन्नति के आदेश दिए हैं। यह गाइडिंग प्रिंसिपल ऑर्डर नहीं हैं। इसलिए राज्य सरकारें इस आधार पर कर्मचारियों की पदोन्नति नहीं कर सकती है। हां इस आदेश को आधार बनाकर राज्य सरकारें कोर्ट में अंतरिम व्यवस्था के लिए निवेदन कर सकती हैं। वहीं पूर्व महाधिवक्ता रविनंदन सिंह कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है तो केंद्र्र के साथ राज्यों पर भी लागू होगा। हालांकि यह फौरी राहत है। वे कहते हैं कि इस आदेश से मिलने वाली पदोन्नित कोर्ट के अंतिम फैसले के अधीन रहेगी। उधर राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) सामान्य प्रशासन विभाग लालसिंह आर्य कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने जो भी निर्णय दिया है, कर्मचारी हित का फैसला है। अभी मुख्यमंत्री स्तर पर इसकी समीक्षा होगी। सभी 230 सीटों से ताल ठोकेगी सपाक्स सामान्य पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी-कर्मचारी संस्था की सामाजिक शाखा ने विधानसभा चुनाव में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी करने का फैसला किया है। सपाक्स समाज के अध्यक्ष पूर्व सूचना आयुक्त हीरालाल त्रिवेदी का कहना है कि विधानसभा चुनाव में सपाक्स समाज की बड़ी भूमिका रहेगी। सभी 230 सीटों पर चुनाव में हिस्सेदारी की रणनीति है। अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए आरक्षित सभी सीटों पर ऐसे उम्मीदवारों को समर्थन दिया जाएगा, जो हमारे 6 मुद्दों को आगे बढ़ाने सहमति देंगे। ये सभी मुद्दे वे हैं जो समानता के सिद्धांत को बढ़ावा देते हैं। यदि कोई राजनीतिक दल हमारे मुद्दों पर पूर्ण सहमति व्यक्त करता है तो उसे समर्थन देंगे। दल यदि साथ नहीं आते हैं और उम्मीदवार व्यक्तिगत तौर पर सहमत होता है तो उसका भी साथ दिया जाएगा। इस बार सपाक्स समाज पूरी ताकत के साथ आवाज बुलंद करेगा। 17 जून को संस्था की कार्यकारिणी की बैठक बुलाई है। उसी में तय होगा कि क्या करेंगे। वे कहते हैं कि प्रदेश में राज्य स्तरीय नए और पुराने दल हैं। सभी को साथ लेकर चलेंगे। सपाक्स से जुड़े अधिकारी, कर्मचारी पर्दे के पीछे रहकर इस राजनीतिक पहल को समर्थन दे रहे हैं। कुछ तो नौकरी छोड़कर चुनावी मैदान में हाथ आजमाने की कोशिश भी कर सकते हैं। - राजेश बोरकर
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