18-Jun-2018 07:12 AM
1234780
बुंदेलखण्ड के विकास के लिए सरकारों ने फंड देने में कोई कमी नहीं कि लेकिन इस क्षेत्र की समस्याएं जस की तस हैं। इस क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या पानी की है। बुंदेलखण्ड पैकेज के तहत पानी पर जमकर पैसा बहाया गया फिर भी मप्र के छह जिलों सहित पूरा बुंदेलखण्ड पानी के लिए त्राहिमाम कर रहा है। स्थिति यह है कि पानी के लिए लोगों को कई किलोमीटर तक भटकना पड़ता है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर 15 हजार करोड़ रुपए कहां खर्च किए गए।
अगर मप्र के हिस्से वाले बुंदेलखण्ड की बात करें तो यहां पेयजल योजनाओं का ढांचा तो हर कहीं देखने को मिलता है लेकिन अधिकांश योजनाएं अधर में है। इस कारण इन जिलों के अधिकांश गांव अब भी पाइप्ड पेयजल योजनाओं से नहीं जोड़े जा सके। तकरीबन 800 गांव ऐसे भी हैं, जो सरकारी रिकॉर्ड में पाइप पेयजल योजनाओं से जुड़े हैं, लेकिन इन गांवों के नलों से कभी एक बूंद पानी नहीं टपका।
जल निगम के इंजिनियरों के अलावा जल संस्थान और शासन भी यह मानता है कि नदियों से ही पाइप्ड पेयजल योजनाएं बुंदेलखंड में सफल हो सकती हैं। यहां की भूजल स्तर की स्थिति ठीक न होने के कारण हैंडपंप और नलकूप आदि पर आधारित पेयजल योजनाओं का भविष्य ज्यादा टिकाऊ नहीं है। बुंदेलखंड के हर जिले में तीन-चार नदियां हैं। इन नदियों से पाइपों के जरिए शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों की जलापूर्ति की जा सकती है। बुंदेलखंड के कई शहरों में जल संस्थान कुओं से भी जलापूर्ति कर रहा है। गांवों में लोग अपने स्तर से कुओं में मोटर लगाकर पानी ले रहे है। बांदा शहर में जल संस्थान ने शहर के करीब एक दर्जन प्राचीन पनियार कुओं को पाइप लाइनों से जोड़ रखा है। ये कुएं सुबह-शाम बराबर जलापूर्ति कर रहे हैं।
उत्तरप्रदेश की बात करें तो यहां के बुंदेलखंड के सातों जिलों बांदा, चित्रकूट, महोबा, हमीरपुर, ललितपुर, झांसी और उरई-जालौन की कुल आबादी 96,59,718 है। इनमें करीब 44 लाख की आबादी को पाइप्ड पेयजल योजनाओं का लाभ मिल रहा है। तकरीबन 52 लाख की आबादी इस सुविधा से वंचित है। ये लोग कुएं-तालाब, नदी, पोखर और हैंडपंपो के गंदे पानी पर निर्भर हैं। बांदा जिले में 629 सरकारी नलकूप हैं। इनमें ज्यादातर खराब हैं जबकि कई बिजली न मिलने से ठप हैं। दर्जनों नलकूप चालकों की कमी से बंद पड़े हैं। भूजल स्तर गिर जाने से भी दर्जनों नलकूप पानी नहीं दे पा रहे हैं। विभागीय सूत्रों का कहना है कि इन नलकूपों की देखरेख के लिए सिर्फ तीन मकैनिक की तैनाती की गई है।
नलकूप खंड के अधिशाषी अभियंता लक्ष्मीनारायण खुद स्वीकारते हैं कि नलकूप खंड में 35 मकैनिक के पद हैं, लेकिन तैनाती सिर्फ तीन की है। नलकूप चालकों के 650 पद हैं, लेकिन तैनाती 235 की है। हमने विभाग और शासन को यह रिपोर्ट भेज दी है। विज्ञान शिक्षा केंद्र के निदेशक डॉ. भारतेन्दु प्रकाश कहते हैं कि एमपी के बुंदेलखंड की तुलना में यूपी के बुंदेलखंड की हालत ज्यादा खराब है। इसकी वजह यहां का नाकारा सिस्टम है। डॉ. प्रकाश के मुताबिक यूपी और एमपी के बुंदेलखंड का क्षेत्रफल 70 हजार वर्ग किमी है। दोनों को मिलाकर 10,800 गांव और छोटी-बड़ी 80 नदियां हैं जबकि जल संचयन संरचनाओं की संख्या 11,6000 है। सूखे से निपटने और पेयजल उपलब्ध करवाने के नाम पर एक दशक में तकरीबन 15 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। अब भी अरबों रुपये पानी की तरह बहाए जा रहे हैं, लेकिन खनन और पेड़ों के कटान की वजह से समस्या हल नहीं हो पा रही है।
-धर्मेन्द्र सिंह कथूरिया