न नौ मन तेल होगा...
18-Jun-2018 06:56 AM 1235076
प्रदेश में सरकार औद्योगिक विकास के लिए कई जगह इंडस्ट्रीयल एरिया तैयार करके बैठी है, लेकिन वहां उद्योग स्थापित करने कोई नहीं आ रहा है। आलम यह है कि प्रदेश के 4 एकेवीएन भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और उज्जैन ने अपने-अपने क्षेत्र में 20 औद्योगिक क्षेत्रों में 2398 हेक्टेयर भूमि पर 1017 करोड़ रुपए अधोसंरचना विकास के कार्य करवाए हैं। इससे इंडस्ट्रीयल एरिया में प्लाट काफी महंगे हैं। इस कारण इन क्षेत्रों में नए उद्योग नहीं लग पा रहे हैं। यानी स्थिति यह हो गई है कि न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी। यही कारण है कि सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद मध्यप्रदेश में उद्योग नहीं आ पा रहे हैं। दरअसल, सरकार द्वारा जो औद्योगिक क्षेत्र विकसित किए जा रहे हैं, उसमें अनाप-शनाप तरीके से राशि खर्च की जा रही है। जिससे उद्योगपतियों को प्लाट खरीदना महंगा सौदा साबित हो रहा है। इसी कारण उद्योगपतियों ने औद्योगिक क्षेत्र से बाहर निजी जमीन खरीदकर उस पर उद्योग डालने की कवायद शुरू कर दी है। इससे सरकार की चिंता बढ़ गई है और कई औद्योगिक क्षेत्रों में जमीन की कीमतें कलेक्टर गाइड लाइन से कम करने की तैयारी की जा रही है। गत दिवस मंत्रालय में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में कैबिनेट कमेटी फार इंवेस्टमेंट प्रमोशन की बैठक हुई। बैठक में प्रदेश में उद्योगों की स्थिति पर चिंता व्यक्त की गई। बैठक में मुख्यमंत्री ने छह माह से अधिक समय से लंबित सागर गु्रप के चार प्रस्तावों को मंजूरी दी। सागर गु्रप द्वारा रायसेन जिले के तामोट गांव में टेक्सटाइल उद्योग की चार अलग-अलग यूनिट लगाई जाएगी। साथ ही समिति ने वेलस्पन गु्रप के भी प्रस्ताव को मंजूरी दी। इसके अलावा बैठक में निर्णय लिए गए कि औद्योगिक क्षेत्र बंगरोदा, तामोट, विक्रमपुरी में जमीन की कलेक्टर गाइड लाइन कम की जाए। स्टाम्प ड्यूटी में छूट और सस्ती बिजली दी जाए। साथ ही जीएसटी से मिलने वाली राशि का 75 फीसदी लौटाया जाएगा। उल्लेखनीय है कि अभी तक औद्योगिक संगठनों को कलेक्टर गाइड लाइन पर जमीन मिलती है जो काफी महंगी होती है। उस जमीन पर डेवलपमेंट कराए जाने से उसका भी चार्ज उसमें जुड़ जाता है और औद्योगिक भूखण्ड काफी महंगा हो जाता है। दरअसल अधिकारी और इंजीनियर अपनी जेबे भरने के लिए महंगा डेवलपमेंट करवाते हैं यही कारण है कि प्रदेश के अधिकांश क्षेत्रों में प्लॉट खाली पड़े हैं। ज्ञातव्य है कि प्रदेश में औद्योगिक निवेश आमंत्रित करने के लिए एकेवीएन भोपाल, इंदौर, ग्वालियर और उज्जैन द्वारा औद्योगिक क्षेत्रों में एप्रोच रोड, बिजली, पानी और उद्योग से जुड़ी अन्य बुनियादी सुविधाएं विकसित की गई हैं। औद्योगिक विकास में इतनी बड़ी राशि खर्च कर दी गई है कि अब प्लाट आसपास के क्षेत्रों से महंगे हो गए हैं। यही नहीं देखने में यह भी आया है कि जब कोई उद्योगपति उद्योग लगाने के लिए जमीन लेने आता है तो उसे विभिन्न प्रक्रियाओं में इधर-उधर दौड़ाया जाता है। ऐसे में वह उद्योगपति निराश होकर लौट जाता है। लेकिन जब इज्जत बचानी होती है तो सरकार औद्योगिक क्षेत्रों में उद्योगपतियों को आमंत्रित करने के लिए तरह-तरह की छूट का प्रावधान करती है। भोपाल एकेवीएन द्वारा प्लास्टिक पार्क तामोट जिला रायसेन में 50 हेक्टेयर में 108 करोड़ लागत के, कीरतपुर जिला होशंगाबाद में 83 हेक्टेयर में 27 करोड़ के, बाबई जिला होशंगाबाद में 640 हेक्टेयर भूमि पर 45 करोड़ के, अचारपुरा और बगरोदा भोपाल जिले में 336 हेक्टेयर भूमि में 80 करोड़ रुपए के कार्य करवाए हैं। प्रदेश में औद्योगिक विकास की रफ्तार कैसी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भोपाल एकेवीएन द्वारा रायसेन के तामोट में विकसित प्लास्टिक पार्क में छह साल में महज दो प्लॉट बिके हैं। दरअसल, इस पार्क की जमीन की कीमत भोपाल के आस-पास के आधा दर्जन औद्योगिक क्षेत्रों में सबसे ज्यादा 2700 रुपए वर्गमीटर है। इसमें एक औद्योगिक इकाई शुरू हो पाई है और दूसरी निर्माणाधीन है। इसी तरह उज्जैन एकेवीए में 4 औद्योगिक क्षेत्र में अधोसंरचना के कार्य करवाए जा रहे हैं। इनमें विक्रम उद्योगपुरी जिला उज्जैन में 450 हेक्टेयर भूमि विकसित की जा रही है। इस पर करीब 325 करोड़ रुपए खर्च किए जा रहे हैं। लेकिन स्थिति यह है कि इन क्षेत्रों में उद्योग लगाने के लिए निवेशक उत्सुक नहीं दिख रहे हैं। इसकी मूल वजह जमीनों के भाव आसमान पर होना है। यही हाल ग्वालियर एकेवीएन द्वारा तैयार किए गए औद्योगिक क्षेत्र का भी है। हालांकि अब जाकर सरकार इन क्षेत्रों में उद्योग लगाने के लिए कई तरह की रियायत देने जा रही है। कैबिनेट कमेटी ऑफ इन्वेस्टमेंट प्रमोशन के निर्णय पर कैबिनेट ने भी मुहर लगा दी है। इस पहल के बाद सरकार को उम्मीद है कि प्रदेश में औद्योगिक विकास गति पकड़ेगा। 20 हजार रोजगार देने का वादा अधूरा दो साल पहले जब प्लास्टिक पार्क का शिलान्यास किया गया था मकसद था क्षेत्र के 20 हजार लोगों को रोजगार देना मगर निवेशकों ने उत्साह ही नहीं दिखाया क्योंकि पार्क की जमीन के रेट ज्यादा है। नतीजा 155 प्लाट में से बिके केवल दो। तामोट गांव में आकार ले रहा प्लास्टिक पार्क देशभर के चार प्लास्टिक पार्क में से ये एक पार्क है, जहां 100 से ज्यादा प्लास्टिक ईकाइयां स्थापित करने की योजना है। पार्क में 155 प्लॉट है जिन पर इकाइयां स्थापित होनी है। मगर निवेश की रफ्तार बेहद सुस्त है। आलम ये है कि महज दो प्लाट ही बिक सके है। उद्योगपति इसके पीछे प्लाट की ज्यादा कीमतों को जिम्मेदार बता रहे है। एकेवीएन प्लास्टिक पार्क का डेवलेपमेंट कर रहा है और अब 108 करोड़ का भारी भरकम निवेश कर चुका है। मगर निवेश का रिटर्न नहीं मिल रहा है। अहम बात ये है कि दो साल में यहां इकाइयां शुरू हो जानी चाहिए थी। मगर दो साल बाद जब निवेशकों ने दिलचस्पी नहीं दिखाई तो अब अधिकारी जागे है। जबकि सरकार निवेश लाने के भरपूर प्रयास कर रही है। जाहिर है कि जो मौजूदा प्रोजेक्ट है उन पर ध्यान देने की जरूरत है ताकि निवेशक आए और लोगों को रोजगार के अवसर मिल सके। - श्याम सिंह सिकरवार
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