04-Jun-2018 07:51 AM
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प्र सहित देशभर में पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती कीमतों से हाहाकार मच गया है। कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी पार्टियों को भाजपा को कोसने का मुद्दा मिल गया है। 2012-13 में पेट्रोलियम पदार्थों की बढ़ती कीमतों के विरोध में भाजपा ने मनमोहन सरकार की चूलें हिला दी थी। अब उसी भाजपा के शासन में पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में इस कदर बेतहासा वृद्धि हुई है की तेल अंगारा बन गया हैं।
राजनीति का कर्नाटक राउंड जीतने वाले विपक्ष के लिए तेल की अंगार से पैदा ये आंच कलेजे पर ठंडक डालने वाली है। विपक्ष के पास 2013 का बताया जा रहा एक वीडियो क्लिप है, जिसमें पीएम इन वेटिंग नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि- जिस तरह से पेट्रोल के दाम बढ़ा दिए हैं, ये सरकार की शासन चलाने की नाकामी का जीता-जागता सबूत है। देश की जनता के अंदर भारी आक्रोश है। मैं आशा करूंगा कि प्रधानमंत्री जी देश की स्थिति को गंभीरता से लेंगे। ठीक यही डायलॉग अब कांग्रेसी गुनगुना रहे हैं।
जहां एक ओर अभी तक मोदी सरकार ने सिर्फ एक बार डीजल-पेट्रोल पर लगने वाला उत्पाद शुल्क घटाया है, वहीं दूसरी ओर नवंबर 2014 से लेकर जनवरी 2016 के बीच में मोदी सरकार ने पेट्रोल पर लगने वाली एक्साइज ड्यूटी 9 बार बढ़ाई है। 2013 में जब कच्चे तेल की कीमत 110 डॉलर प्रति बैरल थी, तब डीजल-पेट्रोल पर लगने वाला उत्पाद शुल्क 9 रुपए था। आज के समय में यह शुल्क 10 रुपए बढ़ चुका है और 19 रुपए हो गया है।
तेज गर्मी के साथ आम आदमी पेट्रोल-डीजल की कीमतों में लगी आग से हलाकान है। 37 रुपए लीटर का पेट्रोल और 40 रुपए लीटर का डीजल केंद्र व राज्य सरकारें मिलकर 83.17 व 72.24 रुपए प्रति लीटर में बेच रही हैं। इस पर भारी करारोपण करते हुए एक्साइज, पर्यावरण सेस, राज्य सरकार का वैट व अतिरिक्त कर लागत से ज्यादा या बराबर तक का कर वसूल रही हैं। पेट्रोल पर करीब 46 रुपए लीटर व डीजल पर 32 रुपए लीटर कर लिया जा रहा है। 11 माह में अब तक पेट्रोल में 13 व डीजल में 11 रुपए प्रति लीटर का इजाफा हो गया है।
कीमतें बढऩे का ठीकरा सरकारें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ रही कीमतों पर फोड़ रही हैं, जबकि हकीकत देखेंगे तो आप खुद भी ठगा सा महसूस करेंगे। सरकार कूड ऑइल की कीमत की तुलना जनवरी की कीमतों से कर रही है, जबकि 2013 में कूड ऑइल में लगी आग के समय दाम 110 डालर तक पहुंचने के बाद भी पेट्रोल 5 से 6 रुपए और डीजल 12 से 14 रुपए सस्ता था। यहां दिलचस्प बात ये है कि अंतरर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत अभी 76 डॉलर प्रति बैरल पर है। यानी अगर देखा जाए तो डीजल-पेट्रोल की बढ़ी हुई कीमतों का असली कारण कच्चे तेल के दाम नहीं हैं, बल्कि सरकार की तरफ से लगाया जाने वाला टैक्स है।
इधर केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी दोगुनी कर दी, वहीं डीजल में यह बढ़ोतरी 5 गुना तक कर दी गई। इसी तरह राज्य सरकारों ने भी वैट की अधिकतम सीमा 32 प्रतिशत पूरी होने के बाद अतिरिक्त कर भी लगा दिया। हालांकि पिछले दिनों मप्र सरकार ने दामों पर नियंत्रण के लिए पेट्रोल-डीजल पर वैट की दर कम की थी। पेट्रोल डीलर्स एसोसिएशन के पारस जैन का कहना है, दोनों सरकारें अपने हिस्से के सेस व अतिरिक्त कर समाप्त कर व वैट की दरों को युक्तिसंगत बनाकर कीमतों में 5 से 7 रुपए प्रति लीटर की कमी ला सकती हैं।
दिलचस्प तथ्य यह है, मई 2008 में पेट्रोल की कीमत 45 से 48 रुपए और डीजल 32 से 35 रुपए प्रति लीटर था। वर्तमान में कीमतें 10 साल में लगभग दोगुनी हो गई हैं। इसी साल का एक और मसला देखें तो पता चलता है, कूड ऑइल प्राइस से ज्यादा फर्क नहीं होता है, क्योंकि तब भी कूड ऑयल की कीमतें 145 डॉलर तक चली गई गई थीं, जो वर्तमान से दोगुनी हैं।
हर बार जीएसटी की होती है बात
जब कभी कीमतें अधिक बढ़ जाती हैं तो सरकार की ओर से यह जरूर कहा जाता है कि हम जल्द ही इसे जीएसटी के दायरे में लाने वाले हैं। जीएसटी में आने के बाद कीमतें कम हो जाएंगी। धर्मेंद्र प्रधान ने अपने ताजा बयान में इस बात को दोहराया है। वे राज्यों से वैट कम करने की अपील कर रहे हैं और जीएसटी काउंसिल से गुजारिश कर रहे हैं कि पेट्रोल-डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाए। लेकिन दिक्कत ये है कि राज्य सरकारों के लिए डीजल-पेट्रोल राजस्व का बेहद अहम जरिया है, जिसे वह केंद्र सरकार को सौंपना नहीं चाहते। एक ओर केंद्र सरकार उत्पाद शुल्क घटाने को तैयार नहीं है, तो वहीं दूसरी ओर राज्य सरकारें मनमाने ढंग से टैक्स लगाकर डीजल-पेट्रोल को महंगा कर रहे हैं। दोनों के बीच में पिस रहा है आम आदमी, जिसे अपनी जेब कटवानी पड़ रही है।
- नवीन रघुवंशी