ये गठबंधन की लड़ाई का दौर है
04-Jun-2018 07:39 AM 1234803
चार लोकसभा सीटों के उपचुनाव में एनडीए को एक और विपक्ष को तीन सीटें मिली हैं और विधानसभा के उपचुनावों में एनडीए को एक और अन्यों को 11 सीटें मिली हैं। ये नतीजे अगले साल होने वाले आम चुनावों की पूर्व सूचना नहीं है, लेकिन इनसे यह साफ होता है कि वर्तमान में एकजुट विपक्ष के आंकड़े बेहतर हैं। गठबंधनों की बड़ी लड़ाई में विपक्ष के पास बढ़त है। कैराना उपचुनाव में भाजपा की हार चौंकाने वाली नहीं है, इस सीट पर मुस्लिम बहुसंख्यक हैं और नतीजे में यह दिखता भी है। भाजपा ने 2014 के चुनावों में विपक्षी मतों के बंटवारे का फायदा उठाते हुए यह सीट राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) से छीनी थी। इसी तरह से उसने 2017 में नूरपुर विधानसभा सीट पर कब्जा किया था। इससे एसपी, बीएसपी और अन्य के संदेश है कि शरीर के अंगों की तरह जुड़े रहो। इसी जुड़ाव के कारण इस बार भाजपा नूरपुर विधानसभा सीट हार गई है। यही हाल बिहार का है। जोकीहाट की सीट पर जदयू चुनाव हार गई है। नीतीश कुमार ने यहां प्रचार भी किया था जबकि राजद की तरफ से लालू यादव के जेल में बंद होने की वजह से तेजस्वी यादव ने कमान संभाल रखी थी और एक राजनीति में नौसिखिए ने नीतीश कुमार को पटखनी दे दी। तेजस्वी ने इसे अवसरवाद की राजनीति पर लालूवाद की जीत बताया है। ये बात सच भी है कि जोकीहाट में नीतिश कुमार ने अपनी पूरी कैबिनेट को काम पर लगा रखा था। अब इस सीट पर हार के बाद भाजपा-जदयू की दोस्ती में दरार सामने आ गई है। जदयू ने इस हार का ठीकरा पेट्रोल और डीजल की बढ़ती कीमतों पर फोड़ा है। बाकी विधानसभा उपचुनाव की बात करें तो अधिक उलटफेर नहीं है सिवाय भाजपा की सीटों को छोडक़र। पंजाब, कर्नाटक और महाराष्ट्र में कांग्रेस ने अपनी सीट बचा ली है जबकि केरल में सीपीएम और बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने भी अपनी सीट बचा ली है। झारखंड में जेएमएम ने गोमियो और सिल्ली की विधानसभा सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा है। भाजपा को इस बात से संतोष होगा कि उत्तराखंड की थराली सीट पर उन्होंने अपना कब्जा बरकरार रखा है। कुल मिला कर इस चुनाव से मिलने वाले संकेत साफ है कि भाजपा के लिए 2019 की राह बहुत आसान नहीं है। उसे भी अपनी रणनीति बदलनी होगी ठीक उसी तरह जैसे भाजपा ने उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में किया था जब हरेक जातियों की पार्टियों के साथ गठबंधन किया था और विपक्ष के लिए भी सबसे बड़ी सीख ये है कि मिल जाओ तो किसी को भी टक्कर दी जा सकती है। भाजपा के हाल के वर्षों में उपचुनाव दुखती रग बन गया है, भले ही पार्टी पिछले कुछ वर्षों में अपने सहयोगियों के साथ 20 राज्यों की सत्ता पर काबिज है, मगर इन वर्षों में उपचुनाव के नतीजे उसके लिए तकलीफदेह रहे हैं। लोकसभा उपचुनाव में लगातार हार रही भाजपा भाजपा 2014 से अब तक हुए 10 लोकसभा उपचुनावों में से 6 हार गई जिन सीटों पर 2014 में भाजपा के उम्मीदवार जीते थे। उपचुनावों के नतीजों का असर यह रहा कि साल 2014 में 282 सीटों के साथ सत्ता में आने वाली भाजपा के पास आज 272 सीटें ही रह गई हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह विपक्षी एकता है। विपक्ष को यह अंदाजा हो गया है कि नरेंद्र मोदी और भाजपा से निपटने के लिए एक साथ आना ही एकमात्र उपाय है। शायद यही वजह है कि उत्तर प्रदेश में दो धुर विरोधी दल सपा और बसपा उपचुनावों में साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं और इसका बेहतर नतीजा भी इन पार्टियों को गोरखपुर, फूलपुर और कैराना लोकसभा उपचुनावों में देखने को मिला है। साथ ही अब जबकि नरेंद्र मोदी सरकार को सत्ता में 4 साल हो गए तो लोग अब सरकार के कामकाज को लेकर भी ज्यादा सजग हो गए हैं और कई मुद्दों पर सरकार की नाकामी का भी असर उपचुनावों के नतीजों में दिख रहा है। -ऋतेन्द्र माथुर
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