जस के तस आदर्श गांव
04-Jun-2018 07:36 AM 1234867
गांवों को विकसित बनाने की सांसद आदर्श ग्राम योजना माननीयों को नहीं भायी। तभी तो सांसदों ने अपने संसदीय क्षेत्र के पांच गांवों को भी संवारने में कोई रुचि नहीं दिखाई। आंकड़ों के हिसाब से संसद के दोनों सदनों के कुल मौजूदा 784 सांसदों में से 615 ने योजना से ही पल्ला झाड़ लिया है। केवल 172 सांसदों ने तीसरे चरण में भी अपने संसदीय क्षेत्र के गांवों का चयन किया है। सत्तापक्ष के माननीयों ने भी योजना से मुंह मोड़ा है, जिनमें कुछ मंत्री भी हैं। सांसदों के चयनित गांवों के विकास में केंद्र व राज्य सरकारों की दर्जनों योजनाओं की मदद लेनी है। महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी सांसदों से स्वैच्छिक तौर पर हर साल एक गांव चुनकर उसे संवारने का दायित्व लेने को कहा था। योजना अक्टूबर 2014 में लांच हुई थी जो 2019 तक पूरी हो जाएगी। पहले चरण में लोकसभा के 543 सांसदों में से केवल 500 सांसदों ने ही गांवों को चुना है यानी 43 सांसद ऐसे हैं जिन्हें गांवों की तरक्की से कुछ लेना-देना नहीं है। पहले साल लोकसभा के सांसदों में पश्चिम बंगाल के तृणमूल कांग्रेस के सभी 37 सांसद, उड़ीसा के दो, दिल्ली, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश के एक-एक सांसदों ने इस योजना का बायकाट किया था। जबकि राज्यसभा के सांसद तो गांवों को लेकर और भी उदासीन हैं। पहले चरण में 253 सांसदों में से केवल 203 सांसदों ने ही गांवों को चुना जबकि बाकी के 50 सांसद चुनने की जहमत तक नहीं उठा सके। दूसरे चरण में तो सत्तापक्ष के भी ज्यादातर सांसदों ने योजना से किनारा करना शुरु कर दिया है। दूसरे चरण में 545 लोकसभा सांसदों में से केवल 323 सांसदों ने ही गांवों को चुना जबकि 222 सांसद गांवों को चुनने में नाकाम रहे। राज्यसभा के 241 सांसदों में से केवल 120 सांसदों ने गांवों को चुना, बाकी सांसदों ने तो इस के बारे में सोचा तक नहीं। लेकिन सांसद आदर्श गांव बनाने की योजना का तीसरा चरण बहुत दयनीय रहा। लोकसभा में 542 सांसदों में से केवल 140 सदस्यों ने गांवों को गोद लेने की जहमत उठाई। इसी तरह राज्यसभा के 242 सदस्यों में से मात्र 32 ने गांवों को संवारने का जिम्मा लिया। गांवों से दूरी बनाने वालों में केंद्रीय मंत्रि परिषद के सदस्य भी शामिल हैं। कई सांसद आदर्श गांवों का दौरा करने पर पता चलता है कि ऐसे गांवों के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। ज्यादातर सांसद ऐसे हैं जिन्होंने गांवों को चुन तो लिया है लेकिन तरक्की के कामों में वे फिसड्डी साबित हुए। जो छोटे-मोटे काम हुए भी हैं, उस का फायदा दबंगों तक ही सिमट कर रह गया। सडक़ों पर बजबजाती नालियों का गंदा पानी व कूड़े का ढेर आदर्श गांवों की साफ-सफाई व्यवस्था की धज्जियां उड़ा रहे हंै। जिन सांसदों ने प्रधानमंत्री के दबाव में तीनों चरणों के गांवों को चुन भी लिया, अभी उनके द्वारा चुने गए पहले चरण के गांवों में ही तरक्की को रफ्तार नहीं मिल पाई है, ऐसे में जब अगले साल यानी 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं, तो सांसद आदर्श गांवों में तय किए गए तरक्की के कामों को अमलीजामा पहनाना मुश्किल दिख रहा है। आज जब देश और देश जिन राज्यों में भाजपा की सरकार है, उसके बाद 3 गांवों को चुन पाना और उन गांवों की तरक्की करने में पूरी तरह फेल हो जाने से सरकार की गांवों के प्रति अनदेखी का पता चलता है। सांसद आदर्श गांवों को लेकर लोग यहां तक कह रहे हैं कि ये गांव 4 साल बाद भी गोदी में ही खेल रहे हैं। इससे जाहिर होता है कि सरकार गांव के लोगों को बेवकूफ बना कर अपना चुनावी उल्लू सीधा करना चाहती है। जिन सांसदों ने आदर्श गांवों को चुना, वे उस गांव में जाने की कोशिश ही नहीं करते। इस वजह से गांव के ज्यादातर लोग सांसदों को पहचानते ही नहीं हैं। देश में ऐसे तमाम सांसद हैं जो सदन की बैठक तक में शामिल नहीं होते, ऐसे में गांवों में जाने की बात तो दूर की कौड़ी है। जिन गांवों की पड़ताल की गई वहां के ज्यादातर लोगों का यही कहना था कि वे सांसद को नहीं पहचानते। ...तो बदल गई होती तस्वीर साल 2014 में नेता जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के दोनों सदनों के सांसदों को 3-3 गांवों को ‘सांसद आदर्श गांव’ के रूप में चुन कर देशभर से तकरीबन 6 लाख गांवों में से 2500 गांवों में बुनियादी सुविधाओं समेत उन्हें हाईटैक बनाने का टारगेट दिया था। इन गांवों को चुनने के पीछे कुछ शर्तें भी रखी गई थीं जिन के तहत कोई भी सांसद खुद का या पत्नी के मायके का गांव नहीं चुन सकता था। गांव की आबादी 3 से 5 हजार के बीच होनी थी। इन गांवों में 80 से ज्यादा समस्याओं को ध्यान में रख कर तरक्की के काम किए जाने थे। सेहत, सफाई, पीने का साफ पानी, पढ़ाई-लिखाई, ईलाइब्रेरी, कसरत, खेतीबारी, बैंकिंग, डाकघर समेत ऐसे तमाम मुद्दों पर तरक्की के काम होने थे। इससे गांवों में शहरों की तरह सुविधाएं मिलना शुरू हो जातीं और वहां के लोगों को शहरों की तरफ नहीं भागना पड़ता। लेकिन सांसद आदर्श गांवों की हकीकत कुछ और ही है। अगर सांसद आदर्श गांवों में हुए तरक्की के कामों की हकीकत की बात करें तो देश में तकरीबन 6 लाख गांवों में से अब तक 3 चरणों में 2500 गांवों को चुन लिया जाना था। -सत्यनारायण सोमानी
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