04-Jun-2018 07:32 AM
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मप्र सरकार के दावों के अनुसार, भारत सरकार द्वारा मप्र को 15 करोड़ 50 लाख मानव दिवस का लक्ष्य दिया गया था। इस लक्ष्य से आगे प्रदेश में 16 करोड़ 22 लाख मानव दिवस रोजगार सृजित कर 104.70 प्रतिशत उपलब्धि हासिल की गई। लेकिन सरकार रिकार्डतोड़ काम करने वाले मजदूरों को अभी तक उनकी पूरी मजदूरी नहीं दे पाई है। प्रदेश सरकार ने पूर्व में दावा किया था कि प्रदेश के मनरेगा मजदूरों की 83 फीसदी मजदूरी का भुगतान कर दिया गया है। लेकिन अभी हाल ही में आई केंद्र सरकार की रिपोर्ट में बताया गया कि प्रदेश में अभी तक मनरेगा मजदूरों की 63 फीसदी मजदूरी का ही भुगतान हो पाया है। यानी वित्तीय वर्ष 2017-18 बीतने के करीब डेढ़ माह बाद भी अभी तक 37 फीसदी मजदूरी सरकार पर बकाया है। 12 अप्रैल, 2018 तक, योजनाओं की वेबसाइट से डेटा के अनुसार मप्र सहित 19 राज्यों में सितंबर 2017 से भुगतान नहीं किया गया है, नवंबर 2017 के बाद से 100 फीसदी एफटीओ लंबित है।
एक फंड ट्रांसफर ऑर्डर (एफटीओ) पहली बार जिला स्तर पर बनाया जाता है, और फिर कार्यकर्ता के खातों में धनराशि हस्तांतरण के लिए राज्य स्तर पर जाता है। वहां से केंद्र सरकार को। केंद्र सरकार को एफटीओ प्राप्त करने के 24 घंटों के भीतर भुगतान की प्रक्रिया पूरी करनी चाहिए। हालांकि, अध्ययन में पाया गया, एफटीओ 15 दिनों के भीतर मिलने के बाद मजदूरी भुगतान करने में औसतन 25 दिन तक लग रहे हैं। इस योजना के प्रावधानों के तहत, श्रमिकों को मस्टर रोल’ (उपस्थिति रजिस्टर) के बंद होने के 15 दिनों के भीतर मजदूरी भुगतान प्राप्त करना चाहिए, यानी, उनके काम के तुरंत बाद। यदि ऐसा नहीं होता है, तो वे देरी की पूरी अवधि के लिए, मस्टर रोल बंद होने के 16 वें दिन से प्रति दिन की मजदूरी के 0.05 फीसदी की निश्चित दर पर मुआवजे के हकदार हैं।
मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूरों को राज्य सरकार ने पिछले तीन साल से 29 करोड़ रुपए से ज्यादा की क्षतिपूर्ति (मुआवजा) नहीं दिया है। मजदूरों को 15 दिन के बाद भुगतान किए जाने पर राज्य सरकार को क्षतिपूर्ति देनी होती है। जानकारी के अनुसार वित्तीय वर्ष 2015-16 का बकाया क्षतिपूर्ति 21.25 करोड़ है। वहीं 2016-17 का 6.42 करोड़ और 2017-18 का 1.53 करोड़।
मनरेगा में मजदूरी मिलने में हो रही देरी के पीछे कई कारण हैं। मजदूरी भुगतान में देरी का प्राथमिक कारण धन की कमी है। दिसंबर 2017 के पहले सप्ताह में, वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए 48,000 करोड़ रुपए के आवंटित बजट में से 45,000 करोड़ रुपए पहले ही समाप्त हो चुके थे। इससे बाद में हुए कामों में धन की कमी आ गई। मजदूरी भुगतान में देरी का दूसरा कारण राज्य की कार्यप्रणाली है। अपर्याप्त स्टाफ, देर से उपस्थिति की रिपोर्टिंग, डेटा एंट्री, मजदूरी सूचियों और एफटीओ आदि में देरी के कारण मजदूरी अटक जाती है। तीसरी वजह है मनरेगा श्रमिकों के बैंक खातों को आधार से जोडऩे की अनिवार्यता। चौथा कारण है राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक फंड प्रबंधन प्रणाली। यानी सरकार की गलतियों के कारण मनरेगा मजदूरों की मजदूरी का समय पर भुगतान नहीं हो पा रहा है। इस मामले में प्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री गोपाल भार्गव कहते हैं कि अब तो श्रमिकों को ऑनलाइन भुगतान हो रहा है। प्रदेश में जिन मजदूरों की मजदूरी अटकी है वह जल्द ही उनके खाते में पहुंच जाएगी।
मनरेगा में जबलपुर रहा फिसड्डी, नरसिंहपुर को तीसरा स्थान मिला
मनरेगा के तहत श्रमिकों को रोजगार दिलाए जाने के मामले में जहां प्रदेश में भिंड ने प्रथम स्थान पाया है तो वहीं आगर-मालवा द्वितीय व नरसिंहपुर तीसरे स्थान पर रहा। इसके अलावा जबलपुर हमेशा की तरह फिसड्डी रहा, जिसका कोई नम्बर ही नहीं लग पाया है। बताया जाता है कि जिला पंचायत में चल रही वर्चस्व की जंग ने जिले भर के विकास कार्याे को प्रभावित किया है। जिला पंचायत अध्यक्ष मनोरमा पटेल व अधिकारियों के बीच लम्बे समय से चल रही खींचतान, आपसी समन्वय की कमी ने ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा के तहत होने वाले कार्याे को भी प्रभावित किया है, यहां तक कि कुछ नगर पंचायतों से रिकार्ड तक गायब होने की चर्चाएं भी आम रही। जिसके चलते जबलपुर में मनरेगा के कार्य लक्ष्य से बहुत पीछे रहे। गौरतलब है कि मनरेगा में वर्ष 2017-18 में मध्यप्रदेश में लक्ष्य से अधिक उपलब्धि अर्जित की गई है। भारत सरकार द्वारा मध्यप्रदेश को 15 करोड़ 50 लाख मानव दिवस का लक्ष्य दिया गया था। इस लक्ष्य से आगे प्रदेश में 16 करोड़ 22 लाख मानव दिवस रोजगार सृजित कर 104.70 प्रतिशत उपलब्धि हासिल की गई। रोजगार सृजन में प्रदेश में भिण्ड जिला प्रथम, आगर-मालवा द्वितीय और नरसिंहपुर जिला तृतीय स्थान पर रहा है।
-राजेश बोरकर