राह आसानी नहीं
04-Jun-2018 07:34 AM 1234757
मप्र में सत्ता के खिलाफ जोरदार करंट है। लेकिन जिस तरह से भाजपा की जमीनी जमावट चल रही है उससे एक बात तो स्पष्ट है कि कांग्रेस की सत्ता की राह आसान नहीं है। कांग्रेस सत्ता तक तभी पहुंच सकती है जब बसपा, सपा और गोंगपा सहित अन्य पार्टियां कांग्रेस के साथ समन्वय से चुनाव लड़े। प्रदेश में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की जोड़ी बनाकर कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में अपने डेढ़ दशक के वनवास को खत्म करने का प्रयास शुरू कर दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने संकेत दिया है कि भाजपा की डेढ़ दशक पुरानी सत्ता को कांग्रेस न केवल गंभीर चुनौती देगी बल्कि चुनाव के बाद प्रदेश में अपनी सरकार भी बनाएगी और इसके लिए वह सभी भाजपा विरोधी दलों से समझौते की पहल भी करेगी। कांग्रेस जिस एकजुटता के साथ चुनावी समर में उतरने का दावा कर रही है यदि वह वास्तव में मतदान के दिन तक एकजुट रह पाती है तथा अन्य दल उसके साथ आ जाते हैं तो फिर वह भाजपा को कड़ी चुनावी टक्कर देने की स्थिति में होगी। जहां तक प्रदेश के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य का सवाल है कांग्रेस के लिए बसपा और गोंगपा अधिक मददगार साबित होंगे जबकि कहीं-कहीं सपा और जनता दल (यू) भी उसको टेका लगाने की स्थिति में आ सकते हैं। पिछले तीन विधानसभा चुनाव के नतीजों पर यदि गौर किया जाए तो लगभग 40 से लेकर 45 तक ऐसी विधानसभा सीटें हैं जिन पर कांग्रेस और बसपा के अलग-अलग लडऩे से भाजपा को लाभ हुआ है। 2003 के विधानसभा चुनाव में बसपा को 7.26 प्रतिशत मत मिले जो कि 2008 में बढक़र 8.97 प्रतिशत हो गये। 2013 के विधानसभा चुनाव में उसके मतों में कुछ कमी आई और बसपा ने 6.29 प्रतिशत मत हासिल किए। इन आंकड़ों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि यदि कांग्रेस और बसपा चुनाव पूर्व गठबंधन कर चुनाव लड़ते हैं तो फिर भाजपा और कांग्रेस के बीच मतों का जो बड़ा अंतर है वह करीबी चुनावी लड़ाई में परिवर्तित हो सकता है। कांग्रेस गोंडवाना गणतंत्र पार्टी से भी समझौता करने के संकेत दे रही है। इस पार्टी का महाकोशल और विंध्य क्षेत्र के कुछ आदिवासी इलाकों में असर है। 2003 के विधानसभा चुनाव में गोंगपा को 2.03 प्रतिशत मत मिले थे और उसके तीन विधायक जीते थे। 2008 के विधानसभा चुनाव में इस पार्टी में विभाजन हो गया लेकिन इसके अलग-अलग धड़े मिलकर आदिवासी इलाकों में कांग्रेस के वोटों में कुछ न कुछ सेंध लगाने में सफल रहे। कांग्रेस की कोशिश यह है कि जहां तक संभव हो गोंगपा के सभी धड़ों को कुछ न कुछ सीटें देकर उन्हें अपने साथ लाने में सफल हो। 2017 के उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का समझौता हुआ था और मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस की कोशिश है कि सपा उसकी सहयोगी बने। 2003 के विधानसभा चुनाव में सपा को 3.71 प्रतिशत, 2008 में 1.99 प्रतिशत और 2013 में उसे 1.20 प्रतिशत मत मिले। अगर कांग्रेस इन पार्टियों को साध लेती है तो उसकी सत्ता की राह आसान हो जाएगी। यादवी संग्राम से कांग्रेस की गिर रही साख कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष पद से हटने के बाद से ही अरूण यादव कोप भवन में नजर आ रहे हैं और यादव समाज ने कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। यादव समाज के पदाधिकारी विभिन्न मंचों से अरूण यादव के हटने का विरोध कर रहे हैं। प्रदेशभर में मचे इस ‘यादवी संग्राम’ से अरूण यादव की साख पर सवाल है। जिस अरूण यादव ने करीब चार साल तक भाजपा से लोहा लिया, उनका अचानक निष्क्रिय हो जाना कांग्रेस और खुद उनके लिए शुभ संकेत नहीं है। प्रदेश में 15 साल बाद कांग्रेस सत्ता में वापसी की ओर नजर आ रही है। इसको देखते हुए पार्टी के सभी दिग्गज चुनावी अभियान में जुट गए हैं, लेकिन पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरूण यादव कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। आखिर क्यों? यह सवाल कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के मन में उठ रहा है। इस सवाल के बीच जिस तरह यादव समाज के लोग बयान दे रहे हैं उससे अरूण यादव की प्रतिष्ठा धूमिल हो रही है। प्रदेश में यादव समाज एक बड़ा वोट बैंक माना जाता है। अगर यह वर्ग कांग्रेस से असंतुष्ट रहा तो बना बनाया काम बिगड़ सकता है। दिग्विजय सिंह अब पूरी तरह से मध्यप्रदेश में करेंगे राजनीति पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह अब पूरी तरह से मध्यप्रदेश में राजनीति करेंगे। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने उनसे महासचिव पद की जिम्मेदारी वापस ले ली है। उनके प्रभार वाले आंध्रप्रदेश राज्य की जिम्मेदारी ओमान चांडी को दे दी गई है। अब मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव नजदीक होने से यहां कांग्रेस के पुराने नेताओं को पार्टी में सक्रिय करने और रूठे हुए नेताओं को मनाने की जिम्मेदारी मिलने से दिग्विजय सिंह करीब तीन महीने तक लगातार दौरे करेंगे। गौरतलब है कि दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा के दौरान एआईसीसी के संगठन प्रभारी महासचिव अशोक गेहलोत ने उनसे मुलाकात की थी। तब से उनके भविष्य को लेकर अटकलों का दौर जारी था। द्य रजनीकांत पारे
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