04-Jun-2018 07:07 AM
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छत्ताीसगढ़ में विधानसभा चुनाव करीब आने के साथ आदिवासियों का ‘पत्थलगड़ी’ अभियान सरकार के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है। इस चुनौती से निपटने के लिए राज्य के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने ‘विकासगड़ी’ का नारा दिया है। देश के कई आदिवासी बहुल इलाकों में ‘पत्थलगड़ी’ की सामाजिक और सांस्कृतिक परंपरा रही है। इस परंपरा में गांव के श्मशान से लेकर गांव की सीमा तक पत्थर गाड़ कर उसके सहारे संदेश देने की कोशिश होती है।
चुनावी साल में आदिवासियों द्वारा गांव में गैर आदिवासियों का प्रवेश वर्जित करने का पत्थलगड़ी अभियान ऐसे समय में शुरू किया है जब रमन सिंह अपनी सरकार की 15 साल की उपलब्धियों को बताने के लिए विकास यात्रा पर निकले हुए हैं। इस बारे में पूछे जाने पर रमन सिंह कहते हैं कि पत्थलगड़ी का कोई विरोध नहीं है, विरोध उन ताकतों का है जो पत्थलगड़ी के नाम से विभाजन रेखा खींचना चाहती हैं। अगर कुछ अंकित करना ही है तब संविधान के दायरे में रहकर शहीदों की याद में चिह्न स्थापित करें। मुख्यमंत्री कहते हैं कि उनकी सरकार ने क्षेत्र में आदिवासियों के कल्याण के लिए विकास कार्यक्रमों को प्रतिबद्धता के साथ आगे बढ़ाया है, ऐसे में प्रदेश में ‘पत्थलगड़ी’ नहीं ‘विकासगड़ी’ ही लोगों को सशक्त बना सकता है। रमन सिंह ने कहा कि इलाके के लोग विकास के महत्व को समझ रहे हैं।
पत्थलगड़ी अभियान के तहत आदिवासी अपने संदेश को पत्थर पर लिखकर गांव की सीमा के पास गाड़ देते हैं। इस पर लिखा होता है कि ऐसे कोई भी बाहरी ‘लोगों’ का गांव में आना जाना, घूमना फिरना वर्जित है, जिनके गांव में आने से यहां की शांति व्यवस्था भंग होने की आशंका हो। इसके कारण सरकारी योजनाओं को लागू करने में समस्याएं पेश आने तथा सरकारी अधिकारियों के कामकाज में बाधा उत्पन्न होने की खबरें आई हैं। बहरहाल, पिछले वर्ष पत्थलगड़ी अभियान की शुरुआत झारखंड के खूंटी क्षेत्र से शुरू हुई थी और धीरे-धीरे इसका विस्तार छत्तीसगढ़ में हुआ। इसमें पंचायतों को अधिकार और खासकर आदिवासी बहुल इलाकों को संविधान की पांचवीं अनुसूची में रखते हुए ‘पंचायत एक्सटेंशन इन शिड्यूल एरिया कानून’ में ग्राम सभा को सर्वोपरि अधिकार के विषय को रेखांकित किया गया है। इससे पहले बस्तर जैसे इलाकों में मावा नाटे मावा राज यानी हमारा गांव, हमारा राज जैसे अभियान भी चले थे। सर्व आदिवासी समाज द्वारा छत्तीसगढ़ के कई इलाकों में पत्थलगड़ी अभियान चलाया जा रहा है। अदिवासियों का एक समूह इस अभियान का विरोध भी कर रहा है। पत्थलगड़ी अभियान के खिलाफ राज्य सरकार ने उन इलाकों में कई कार्यक्रम शुरू किए हैं। खनिज बहुल इन इलाकों में डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन के तहत अनेक योजनाओं को आगे बढ़ाया जा रहा है। इसमें खनिजों से आय के तहत कुछ राशि इस फाउंडेशन में रखी जाती है। रमन सिंह ने कहा कि डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन के तहत आदिवासी इलाकों में शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी सुविधाओं को सुदृढ़ बनाया गया है। इसके साथ ही जशपुर और अन्य क्षेत्रों में ‘मिशन संकल्प’ के तहत स्कूलों में शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए ‘यशस्वी जशपुर’ कार्यक्रम शुरू किया गया है।
जशपुर की जिला कलेक्टर प्रियंका शुक्ला कहती हैं कि इन योजनाओं के परिणाम भी सामने आए है। 10वीं की परीक्षा का परिणाम बेहद उत्साहवद्र्धक रहा है। जेईई मेन परीक्षा में जशपुर में 71 छात्र उत्तीर्ण हुए हैं। इस क्षेत्र में कौशल विकास कार्यक्रम को आगे बढ़ाया गया और काफी संख्या में यहां के बच्चे विभिन्न क्षेत्रों में अच्छे पद प्राप्त करने में सफल रहे हैं। वह कहती हैं कि प्रदेश में विकास से आदिवासियों की तस्वीर और तकदीर बदली है। आज प्रदेश विकास की मिसाल बना हुआ है।
आदिवासियों के लिए वरदान बनी सौभाग्य योजना
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले बरस सितंबर में जब घर-घर बिजली पहुंचाने के लिए सौभाग्य योजना शुरू की तो खुद उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि यह योजना नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ जैसे सूबे के दूरस्थ अंचलों के वाशिंदों के लिए वरदान बन जाएगी। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह की सरकार ने इस योजना को कामयाब बनाने के लिए बिजली तिहार यानी बिजली त्योहार मनाना शुरू किया। लोगों को प्रोत्साहन देने के लिए सरकार न केवल गांवों में शिविर लगा रही है बल्कि बिजली विभाग 100 फीसदी बिजली कनेक्शन वाले गांवों में बिजली तिहार का आयोजन भी कर रहा है। इस योजना में बिजली कनेक्शन लेने वाले ग्रामीणों के साथ ही ग्राम पंचायत के प्रमुख को प्रशस्ति-पत्र देकर सम्मानित किया जा रहा है। यही वजह है कि दो महीने से भी कम समय में डेढ़ लाख घरों में बिजली पहुंच गई है। यह योजना की कामयाबी ही है कि जिन गांवों के लोगों ने कभी बिजली नहीं देखी, अब उनका गांव रोशन हो रहा है।
-रायपुर से टीपी सिंह के साथ संजय शुक्ला