विकास की स्लेट पर विनाश की तस्वीर
04-Jun-2018 07:03 AM 1234847
अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में जब देश की 37 नदियों को आपस में जोडऩे का फैसला लिया गया, उनमें से एक केन बेतवा लिंक परियोजना भी थी। देश की इन 37 नदियों को आपस में जोडऩे पर 5 लाख 60 हजार करोड़ रुपए व्यय होने का अनुमान लगाया गया था। सबसे पहले केन बेतवा लिंक परियोजना शुरू होनी थी। इसलिए सितम्बर 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की उपस्थिति में मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर और उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के बीच समझौता हुआ था। उक्त समझौते पर दोनों मुख्यमंत्रियों ने दस्तखत भी किए। उसके बाद परियोजना के सर्वेक्षण कार्य पर 30 करोड़ रु. व्यय किए गए हैं। लेकिन यह परियोजना आगे नहीं बढ़ सकी। एक बार फिर इस परियोजना को शुरू करने के लिए फिर से दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के बीच नए सिरे से समझौता कराने की कवायद चल रही है। बताया जा रहा है कि केन-बेतवा लिंक परियोजना में मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीच विवाद हल कर लिया गया है और जल्द ही पानी के बंटवारे को लेकर फिर से साझा घोषणा पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया जाएगा। परियोजना में उप्र को मिलने वाले पानी की मात्रा पर मप्र को आपत्ति थी, लेकिन केंद्र सरकार के हस्तक्षेप के बाद मप्र को अपनी मांगों से पीछे हटना पड़ा था। हालांकि केंद्र सरकार ने मप्र को सिंचाई क्षेत्र बढ़ाने का आश्वासन दिया है। इसके तहत मप्र के पन्ना जिले का एक हजार हेक्टेयर से ज्यादा इलाका सिंचाई के लिए परियोजना के अंतर्गत आ जाएगा। सूत्रों के मुताबिक, केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी की मप्र और उप्र के मुख्यमंत्रियों के साथ हुई बैठक में तय हुआ था कि परियोजना में उप्र को जितना पानी देने का प्रावधान किया गया है, उतना ही पानी दिया जाएगा, लेकिन मप्र में सिंचाई क्षेत्र और बढ़ाया जाएगा। मप्र को सिंचाई सुविधा बढ़ाने के लिए परियोजना के तहत केंद्र से 80 फीसदी पैसा मिल जाएगा और 20 फीसदी हिस्सा ही राज्य को लगाना पड़ेगा। नए प्रावधानों की वजह से दोनों राज्यों के बीच एमओयू किया जा रहा है। गौरतलब है कि केन-बेतवा लिंक परियोजना का काम जल्द शुरू करने को लेकर प्रधानमंत्री कार्यालय से भी काफी दबाव आ रहा है। बताया जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस परियोजना को जल्द पूरा करना चाहते हैं। इसका काम शुरू होने से पहले मप्र सरकार ने परियोजना से उप्र को मिलने वाले पानी की मात्रा में कमी करने की मांग की थी। मप्र का तर्क था कि केन-बेतवा लिंक परियोजना से सबसे ज्यादा नुकसान मप्र में होगा। करीब 6 हजार करोड़ की इस परियोजना का मुख्य बांध पन्ना टाइगर रिजर्व के डोंदन गांव में बनना है। इसके साथ ही पन्ना टाइगर रिजर्व का कुछ हिस्सा भी इस परियोजना की वजह से बर्बाद होगा। बांध व नहरों के कारण सवा पांच हजार हेक्टेयर क्षेत्र नष्ट हो जाएगा, छतरपुर जिले के दस गांव डूब जायेंगे। यानी यह परियोजना शुरू होती है तो विस्थापन का एक और दौर शुरू होगा। फिर इसको लेकर राजनीति होगी और ममला खिंचती चला जाएगा। यानी यह परियोजना विकास की स्लेट पर विनाश की एक और तस्वीर बनकर रह जाएगी। शायद यही वजह है कि कोई भी सरकार आगे कदम बढ़ाने से पहले अपने राजनीतिक हानि लाभ का हिसाब लगाने लगती है। ज्ञातव्य है कि इस परियोजना को साकार करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विशेष रुचि ले रहे हैं इसलिए प्रधानमंत्री कार्यालय के अफसरों ने भी इस मामले के समाधान की कोशिश की। पीएमओ के साथ बैठक में भी कोई हल नहीं निकलने के बाद गडकरी ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक कर विवाद निपटाया था। परियोजना के तहत मप्र ने उप्र को 1700 मिलियन क्यूबिक मीटर की जगह 700 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी देने की मांग की थी। बताया जाता है कि केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी केन-बेतवा लिंक परियोजना पर पिछले एक साल से चल रहे विवाद में मप्र की आपत्तियों को केंद्र सरकार ने मान लिया है। परियोजना को लेकर मप्र अपनी मांगें मनवाने में कामयाब हो गया है। पिछले दिनों केंद्र, उप्र और मप्र सरकार के अधिकारियों के बीच बैठक के बाद एमओयू की सभी शर्तें तय हो गई हैं। उप्र को अब रबी के सीजन में परियोजना से 900 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी नहीं मिलेगा। बैठक में तय हुआ है कि उप्र को 700 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी दिया जाएगा, वह भी तब जब मप्र अपने हिस्से के पानी का उपयोग कर चुका होगा और उसके पास जितना अतिरिक्त पानी बचेगा, वह उप्र को दिया जाएगा। 23 अप्रैल को मप्र की तरफ से जल संसाधन विभाग के अपर मुख्य सचिव राधेश्याम जुलानिया के साथ दिल्ली में केंद्र और उप्र के अधिकारियों की बैठक हुई थी। बैठक में तय हुआ है कि फुल टैंक लेवल से कम पानी होने पर उप्र को मिलने वाले पानी की मात्रा घटा दी जाएगी। जुलानिया ने बैठक में कहा कि मप्र पहले अपने किसानों को पानी देगा, इसके बाद ही उप्र को पानी उपलब्ध कराया जाएगा। यूपी को कम पानी देने के साथ ही मप्र को परियोजना में होने वाले खर्च को लेकर भी राहत मिली है। केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने परियोजना पर आने वाले खर्च का 60 प्रतिशत ही देने को कहा था। जबकि पहले तय हुआ था कि केंद्र सरकार 90 प्रतिशत पैसा देगी। इस मुद्दे पर मप्र को नीति आयोग का सहयोग भी मिला और आयोग ने 90 प्रतिशत पैसा केंद्र सरकार द्वारा वहन करने की सिफारिश की। इससे मप्र को करीब 6 हजार करोड़ रुपए परियोजना में कम देने होंगे। अधिकारियों के बीच एमओयू की शर्तों के बाद माना जा रहा है कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बीच जल्द ही एमओयू हो सकता है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी कई बार परियोजना का काम जल्द से जल्द शुरू करने की घोषणा कर चुके हैं। मंत्री बदले प्राथमिकताएं बदलीं केन-बेतवा लिंक परियोजना की राह में लगातार बाधा आती रही हैं। केंर्द में मंत्री बदलने के साथ ही इसकी प्राथमिकताएं भी बदल जाती हैं। परियोजना पर कानूनी अड़चनें दूर हो जाने और औपचारिकताएं पूरी हो जाने के बाद भी इस पर काम शुरू नहीं हो पा रहा। यूपी और एमपी में इस परियोजना का लगातार विरोध हो रहा है। परियोजना में काफी दिलचस्पी ले रहीं तत्कालीन केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती 31 सितंबर 2015 को पन्ना टाइगर्स में परियोजना के बांध का शिलान्यास कर चुकी हैं। लेकिन काम आगे नहीं शुरू हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में नदियों को जोडऩे की परियोजना तैयार हुई थी। इसमें केन-बेतवा लिंक भी शामिल है। अब वर्तमान केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री नितिन गडक़री इस परियोजना को जल्द से जल्द शुरू करवाना चाहत हैं। लेकिन अभी दोनों राज्यों की सहमति नहीं मिली है। लिंक परियोजना से गंगा-यमुना भी प्रभावित केन-बेतवा लिंक परियोजना के मूर्त रूप लेने से गंगा और यमुना नदियों के जलस्तर पर भी विपरीत असर पड़ेगा। जैसे सहायक नदियों और नालों के दम तोडऩे से केन नदी सूख रही है। इसी तरह से केन यमुना और गंगा की सहायक नदी है। यदि केन का जल स्तर घटेगा तो गंगा और यमुना नदियों के जल स्तर पर भी इसका असर पड़ेगा। बांध बनने से नीचे के क्षेत्र के गांव सूखा प्रभावित होंगे और ऊपर के गांव बाढ़ प्रभावित। परियोजना से पन्ना को सबसे अधिक नुकसान होगा। केन नदी में बरियारपुर और गंगऊ डैम बनने के बाद नदी में बहुत बड़ा नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। बांधों के नीचे के गांव को पर्याप्त पानी नहीं छोड़ा जाता है। इससे वे सूखे हो रहे हैं, जबकि बांध के ऊपर के हिस्से के गांव बारिश के दौरान भराव क्षेत्र के कारण प्रभावित होते हैं। उनका आरोप है कि केन नदी में बाढ़ की स्थिति का आंकलन किए बगैर बहुद्देशीय बांधों का निर्माण कराया जा रहा है। पवई बांध योजना से प्रभावित लोगों को मुआवजा दिए बगैर ही काम को आगे बढ़ाया जा रहा है। - सिद्धार्थ पाण्डे
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