04-Jun-2018 07:01 AM
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वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) से होने वाली आमदनी में गिरावट का सिललिसा जारी है। जीएसटी कलेक्शन अप्रैल की तुलना में मई में घटकर 94,016 करोड़ रुपये रहा। अप्रैल में यह 1.03 लाख करोड़ रुपये था। वहीं, कुल 62.47 लाख इकाइयों ने बिक्री रिटर्न जीएसटीआर-3बी दाखिल किए। वित्त मंत्रालय की ओर से आज यह जानकारी दी गई। मंत्रालय के अनुसार वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) राजस्व मई 2018 में 94,016 करोड़ रुपये रहा। इसमें केंद्रीय जीएसटी (सीजीएसटी) 15,866 करोड़ रुपये, राज्य जीएसटी (एसजीएसटी) 21,691 करोड़ रुपये और आईजीएसटी (एकीकृत जीएसटी) 49,120 करोड़ रुपये रहा। उपकर संग्रह 7,339 करोड़ रुपये रहा। वित्त मंत्रालय ने कहा, हालांकि मई महीने का राजस्व संग्रह पिछले महीने से कम है, इसके बावजूद मई महीने में संग्रह पिछले वित्त वर्ष के औसत संग्रह (89,885 करोड़ रुपये) से कहीं अधिक है। अप्रैल में राजस्व अधिक होने का कारण साल समाप्ति का प्रभाव था।
राज्यों को मार्च 2018 के लिए जीएसटी क्षतिपूर्ति के रूप में 6,696 करोड़ रुपये 29 मई को जारी किए गए। मंत्रालय ने कहा कि वित्त वर्ष 2017-18 में (जुलाई 2017 से मार्च 2018) राज्यों को जीएसटी क्षतिपूर्ति के रूप में कुल 47,844 करोड़ रुपए जारी किए गए।
वित्त सचिव हसमुख अधिया ने इस बारे में ट्विटर पर लिखा, ‘कुल जीएसटी संग्रह मई 2018 में 94,016 करोड़ रुपये रहा, जो 2017-18 में औसत मासिक संग्रह 89,885 करोड़ रुपये से अधिक है। यह ई-वे बिल पेश
किए जाने के बाद बेहतर अनुपालन को प्रतिबिंबित करता है।
जीएसटी जिसे देश में सबसे बड़े कर बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है। जीएसटी जिसके आने से आम लोगों को राहत मिलने की उम्मीद दिखाई जा रही है। वो जीएसटी जिससे एक देश एक कर की व्यवस्था लागू हो रही है। आज उसी जीएसटी की पूरी एबीसीडी हम आपको समझाने जा रहे हैं। 30 जून 2017 की आधी रात से गुड्स एंड सर्विसिस टैक्स देश भर में लागू हो जाएगा और इसी के साथ बदल जाएगी देश की टैक्सेशन की पूरी तस्वीर। ऐसे ही कई सवाल इस वक्त आपके जहन में घूम रहे होंगे कि आखिर जीएसटी से पहले मैं क्या करूं और क्या ना करूं। इन सवालों के जवाब जानने से पहले आइये जानते हैं।
वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) से होने वाली आमदनी में गिरावट का सिललिसा जारी है। नवंबर के महीने में कुल कमाई करीब 81 हजार करोड़ रुपए की रही। जीएसटी एक जुलाई से लागू किया गया था। इसके तहत केंद्र और राज्यों के 17 तरह के परोक्ष करों और 23 तरह के उपकरों (सेस) को मिलाकर एक कर दिया गया। लेकिन टैक्स की दर एक नहीं रखी गई। अभी अलग-अलग सामान और सेवाओं पर 5, 12, 18 और 28 फीसदी की दर से कर लग रहा है। सोने-चांदी जैसे बहुमूल्य धातुओं के लिए 3 फीसदी की विशेष दर है। उधर मोटर वाहनों और लग्जरी सामान पर 28 फीसदी के ऊपर सेस भी लगाया जाता है। जीएसटी लागू करते समय बताया गया था कि इससे पूरा भारत एक बाजार बनेगा। इससे राजकोष में ज्यादा धन आएगा। कहा तो यह भी जाता था कि जीएसटी लागू होने भर से सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में डेढ़ से दो फीसदी तक इजाफा होगा। लेकिन शुरुआती नतीजे ऐसे नहीं लगते। यह कहा जा सकता है कि आरंभ में दिक्कतें आई हैं। जब चीजें सहज हो जाएंगी, तब जीएसटी के वास्तविक लाभ मिलने लगेंगे। लेकिन आलोचकों का कहना है कि जीएसटी की जो मूल सोच थी, उसके मुताबिक केंद्र ने इसका ढांचा नहीं बनाया। ना ही इसे लागू करने का तरीका सरल रखा गया। इसके नुकसान अब सामने आ रहे हैं। ऐसे में सवाल उठने लगा है कि आखिरकार सरकार ने यह कदम किस आधार पर उठाया है।
सरकार पर मंडरा रहे वित्तीय घाटे के कई संकट
राजस्व संग्रह में आई गिरावट के पीछे जीएसटी दर में कमी को मुख्य वजह बताया गया है। इस समय सरकार के वित्तीय घाटे पर कई प्रकार के संकट मंडरा रहे हैं। जीएसटी के लागू होने से सरकार की आय में जो सामान्य वृद्धि हो रही थी, उसमें ब्रेक-सा लग गया है। जुलाई 2017 में जीएसटी लागू होने के समय माह में 93 हजार करोड़ रुपए जीएसटी की वसूली हुई थी। इसके बाद इसमें कुछ गिरावट आई और गत माह अप्रैल 2018 में यह 100 हजार करोड़ की सीमा को पार कर गयी है। लगभग एक वर्ष में जीएसटी में केवल सात करोड़ की वृद्धि हुई। यह वृद्धि निराशाजनक ही नहीं बल्कि संकट का भी द्योतक है। निराशाजनक इसलिए कि सामान्य चाल में ही जीएसटी की वसूली में वृद्धि होनी चाहिए। जीएसटी का सद्प्रभाव तब देखने को मिलता जब अधिक तेजी से जीएसटी की वसूली में वृद्धि होती लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। जो बताता है कि जीएसटी लागू होने के बाद अब अर्थव्यवस्था सिर्फ अपनी पुरानी चाल पर आई है। जैसे व्यक्ति बीमार होने के बाद पुन: अपनी पुरानी परिस्थिति में आ जाये। अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य में सुधार नहीं हुआ है। जीएसटी की मुख्य समस्या यह है कि कागजी कार्य में वृद्धि हुई है।
- श्याम सिंह सिकरवार