आठ हजार करोड़ का सफेद हाथी
21-May-2018 09:15 AM 1234922
आज से 25 साल पहले 400 मेगावाट बिजली उत्पादन करने के उद्देश्य को लेकर शुरू की गई 465 करोड़ के अनुमानित लागत वाली महेश्वर जल विद्युत परियोजना अब 8000 करोड़ की हो गई है, लेकिन बिजली उत्पादन का सपना अभी भी अधूरा है। यह परियोजना कब शुरू होगी यह बताने को कोई तैयार नहीं है। खरगोन जिले में नर्मदा किनारे महेश्वर में शुरू हुई यह जल विद्युत परियोजना आज तक अपना साकार रूप नहीं ले पाई। यही कारण है कि यहां अभी तक बिजली उत्पादन शुरु नहीं हुआ। दरअसल, यहां केंद्र और राज्य सरकार की अनदेखी के चलते महेश्वर जल विद्युत परियोजना का काम लंबे समय से बंद पड़ा है। बांध तैयार होने के बाद भी बिजली उत्पादन अभी तक शुरु नहीं हुआ। करोड़ों रुपए की मशीनरी के साथ ही पूरे प्रोजेक्ट को लावारिस हाल पर छोड़ दिया है। इससे लोगों के मन में भी यह सवाल कौंध रहा है कि करोड़ों रुपए की यह परियोजना कभी शुरु होगी या नहीं। उल्लेखनीय है कि महेश्वर जलविद्युत परियोजना का काम नर्मदा वैली विकास प्राधिकरण के द्वारा शुरु किया गया था। शुरुआती दौर में इसकी लागत 465 करोड़ थी, जो बढक़र 8000 करोड़ तक पहुंच चुकी है। कंपनी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक इस 8000 करोड़ पर प्रतिदिन 80 लाख का ब्याज लग रहा है। महेश्वर परियोजना का मकसद ही सिर्फ बिजली उत्पादन करना था। जिसके चलते अन्य बांधों की तरह यहां नहरें नहीं बनाई गई। प्रोजेक्ट पर करोड़ों रुपए दांव पर लगने के बाद भी उपयोग नहीं हो रहा है, जो सरकारी धन की बड़ी बर्बादी है। उधर, आम आदमी पार्टी का आरोप है कि सरकार महेश्वर जल विद्युत परियोजना को फिर से चालू करने की तैयारी कर रही है। परियोजना स्थल पर पिछले 10 साल से काम ठप पड़ा है, यदि यह परियोजना बनती है तो मध्य प्रदेश की जनता के 42,000 करोड़ों रुपए की लूट होगी। मात्र 400 मेगावाट क्षमता की महेश्वर परियोजना की वर्तमान लागत लगभग 6,500 करोड़ रुपया है। परियोजना से साल में मात्र 80 करोड़ यूनिट बिजली पैदा होगी और इस बिजली की कीमत करीब 20 रूपए प्रति यूनिट होगी। हाल ही में विद्युत कंपनियों द्वारा दायर की गई टैरिफ याचिका में बताया गया है कि मप्र में वर्तमान में 23 सौ करोड़ यूनिट बिजली अतिरिक्त है, जिसे वह दो रुपए 45 पैसे यूनिट की दर पर अन्य राज्यों को बेचना चाहता है। इससे साफ है कि महेश्वर परियोजना की बिजली की थोड़ी सी बिजली की आवश्यकता नहीं है और यह बिजली आठ गुना महंगी होगी। परन्तु महेश्वर परियोजना कर्ता से हुए समझौते के अनुसार बिजली न खरीदने पर भी लगभग 12 सौ करोड़ रुपया प्रतिवर्ष सरकार को निजी परियोजनाकर्ता को 35 वर्ष तक देना पड़ेगा। अत: साफ है कि 35 वर्ष में बिना बिजली खरीदे 42,000 करोड़ों रुपए मध्य प्रदेश की जनता के लूट लिए जायेंगे। कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और भाजपा के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान दोनों ने ही महेश्वर परियोजनाकर्ता एस कुमार्स की लगातार पैरवी की है। यूपीए सरकार के दौरान जब तत्कालीन वन मंत्री जयराम रमेश ने महेश्वर परियोजनाओं में तमाम अनियमितताएं पाकर बांध का काम रोकने का प्रयास किया तो दिग्विजय सिंह ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर निजी परियोजनाकर्ता की पैरवी की और शिकायत की कि जयराम रमेश उनकी बात सुन नहीं रहे और अंत में जयराम रमेश को कहना पड़ा था कि उनसे गैर कानूनी काम कराया जा रहा है। इतना ही नहीं मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी महेश्वर परियोजनाकर्ता की पैरवी करने में पीछे नहीं रहे और फरवरी 2011 में शिवराज सिंह के चंद घंटे के उपवास का एक मुद्दा महेश्वर परियोजना भी था। आश्चर्य का विषय है यह कैसी परियोजना है जो मध्य प्रदेश की आर्थिक स्थिति को पूरी तरह से बर्बाद कर देगी उसे कांग्रेस और भाजपा के दोनों मुख्यमंत्री आगे बढ़ाने के लिए आतुर रहे हैं। महेश्वर परियोजना से मात्र 80 करोड़ यूनिट पैदा होगी वह भी 20 रु. प्रति यूनिट के हिसाब से, अत: महेश्वर परियोजना की आवश्यकता नहीं है। घोटालों से घिरी रही है महेश्वर परियोजना महेश्वर परियोजना शुरू से ही घोटालों से घिरी रही है। कांग्रेस हो या भाजपा सभी सरकारों ने निजी प्रयोजनाकर्ता को जनता की कीमत पर फायदा पहुंचाने का प्रयास किया है। इस परियोजना के संबंध में भारत की सर्वोच्च संस्था सीएजी ने वर्ष 1998, 2000, 2003, 2005 और 2014 की पांच रिपोर्ट में महेश्वर परियोजना के सम्बन्ध में भ्रष्टाचार की बात लिखी है। 2014 की रिपोर्ट में साफ लिखा है कि सरकार क्यों नहीं महेश्वर परियोजना का समझौता रद्द करती है, परंतु इसके बावजूद कांग्रेस और भाजपा कि दोनों सरकारों ने निजी परियोजनाकर्ता को लगातार फायदा पहुंचाने का प्रयास किया। महेश्वर परियोजना से 61 गावों के 60 हजार लोग प्रभावित हो रहे है। इनके पुनर्वास पर लगभग दो हजार करोड़ का खर्च आयेगा, जिसमें मात्र 203 करोड़ रूपये खर्च हुए है। शेष 90 प्रतिशत पुनर्वास की कोई योजना सरकार के पास नहीं है। - राजेश बोरकर
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