परमार्थ धर्म का आधार
04-Jun-2018 06:58 AM 1235204
मानव जीवन का परम लक्ष्य क्या है और इसे प्राप्त करने के लिए किस मार्ग को अपनाना चाहिए, इसका वर्णन रामचरित मानस में अत्यंत जीवंतता के साथ किया गया है। अर्थ न धर्म न काम रुचि, पद न चहँउ निर्वान। जनम-जनम रति राम पद, यह वरदान न आन।। परमार्थ धर्म का आधार है या कहें मानव मूल्यों की धारा परमार्थ के पथ से होकर निकलती है। तुलसी कहते हैं-परमारथ स्वारथ सुख सारे, भरत न सपनेहुँ मनहिं निहारे। साधन सिद्धि राम पग नेहू, मोहि लखि परत भरत मत ऐहू।। राम विश्व संस्कृति के अप्रतिम महामानव हैं। वह उन सभी सुलक्षणों, सद्गुणों, शुभाचारों और धर्मों से युक्त हैं जो किसी महामानव में होने चाहिए। राजमहल में पैदा होकर भी सामान्य जीवन व्यतीत करने वाले श्रीराम का जीवन, निश्चय ही सब के लिए प्रेरणीय और अनुकरणीय है। राम का सारा जीवन ही सन्देश है। राम के सभी कार्य विलक्षण और सत्य के पर्याय हैं। मानव जीवन की उत्कृष्टता जिन मूल्यों और भावों से भाषित होती है उसे सर्व स्वीकारिता और सार्वदेशिकता के परिपेक्ष्य में देखना ही उत्तम है। राम का सारा जीवन मानव की सर्वोच्चता, शुभता और ज्ञान-भक्ति-प्रेम की अभिव्यंजना से परिपूर्ण है। तुलसी ने इसे अपने भावों के उद्देग में देखा है। राम नाम को अंक के माध्यम से सजाने वाले तुलसी ज्योतिष की दृष्टि से मूल्यों को देखने का प्रयास किया है। ‘‘राम नाम कौ अंक है, सब साधन हैं सून’’(दोहावली) राम वेद पढऩे वाले थे। उनका सारा जीवन वेद के अनुकूल था। रामचरित मानस की ये पंक्तियां ‘‘वेद पढ़हिं जनु वटु समुदाई’’। वेद पढऩे वाला मनुष्य ज्ञानवान बनता है। उसे जीवन की सुभाषितों का सम्यक् ज्ञान होता है। वह ज्ञान-विज्ञान धर्मी बनकर मानवता के कल्याण के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर करने में स्वयं को गर्व का अनुभव करता है। राम का जीवन सुभाषितों से परिपूर्ण इसी लिए था क्योंकि वे वेद का स्वाध्याय करने वाले थे और वेद के पथ का ही अनुशरण करने वाले थे। शुभ और अशुभ नामों का स्मरण संत तुलसी दास की दृष्टि में जानना आवश्यक है। जैसे राम नाम का स्मरण करना शुभ और रावण नाम का स्मरण अशुभ माना गया है। इसी प्रकार सीता और सती अनुसूया का स्मरण शुभ और मन्दोदरी और सूपनखा का स्मरण अशुभ बताया है। इसके पीछे मनोविज्ञान है जिसे समझने की आवश्यकता है। हम राम नाम का स्मरण करते ही यह धारणा बना लेते हैं कि राम नाम के जप मात्र से शुभ होता है। इसी तरह सीता नाम के स्मरण और जप से कल्याण होता है। किसका कितना कल्याण होता है, यह परीक्षण और शोध का विषय हो सकता है। हमारी संस्कृति में शुभ-लाभ जैसे प्रतीक शताब्दियों से प्रचलित रहे हैं। ये हमारे मूल्यों के साथ किसी न किसी रूप में जुड़े दिखाई पड़ते हैं। यहां तक कि यात्रा के समय निकलते हुये भी इन्हें स्मरण करना शुभ माना गया है। दोहावली में तुलसी कहते हैं-‘तुलसी सहित सनेह नित सुमिरहु सीता राम। सगुन मंगल शुभ सदा आदि मध्य परिनाम।।’’ मूल्यों को जीवन में अपनाना जीवन को सफल बनाने की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण है। धीरज, साहस, प्रेम, करुणा, दया, अहिंसा और सत्य जैसे अनेक सद्गुण हमारे जीवन को महत्वपूर्ण बनाते हैं। ‘‘धीर बीर रघुबीर प्रिय सुमिरि समीर कुमारू। अगम सुगम सब काज करु करतल सिद्धि विचारु।। राम धीर, वीर, गम्भीर प्रकृति वाले हैं। आगम ग्रन्थों में मानव के धर्म-अध्यात्म की चर्चा की गई है। राम वेद-वेदांग दोनों का स्वाध्याय किये थे। वेद में सभी प्रकार के सद्गुणों का वर्णन किया गया है। इसी तरह अनेक प्रकार की मर्यादाओं, प्रेरणाओं और सुचिताओं का भी वर्णन किया गया है। राम ने वेद-वेदांग में से जो मूल्य, तत्व और ज्ञान-प्रेरणा ग्रहण किये थे वे उनके जीवन के अभिन्न अंग बन गये थे। राम इस दृष्टि से भी हमारे लिए प्रेरणीय और वन्दनीय हैं। जिसका जीवन ही वेदमय हो, वह कैसा होगा इसे राम के जीवन को देखकर हम सुगमता से समझ सकते हैं। सुख-दुख जीवन के वास्तविक पक्ष हैं। धरती पर ऐसा कोई मानव नहीं जिसे दोनों से कभी न कभी गुजरता न पड़ा हो। राम के जीवन में भी ये दोनों पक्ष बराबर द्रष्टव्य होते हैं। लेकिन वे न तो सुख में इतराए और न दुख में घबराए। यानी वह दोनों स्थितियों में सम्यक् रूप से ‘सम’ बने रहे। मूल्यवान और ज्ञानवान मानव का जीवन इसी प्रकार का होता है। दूसरों के लिए जिसका जीवन समर्पित होता है, उसका जीवन कभी व्यर्थ नहीं जा सकता है। मानसकार कहते हैं-परहित लागि तजइ जो देहि, संतत संत प्रसंसहिं तेही। मानस में मूल्यपरक व्यंजना पग-पग पर है। ये व्यंजनाएं जीवन को सम्पूर्ण और अर्थपूर्ण बनाती हैं। तुलसी कहते हैं-परहित बस जिनके मन मांही, तिन कहुं जग दुर्लभ कछु नाहीं। जिन मूल्यों, सद्गुणों, सद्भावों, विशिष्टताओं और आचरणों के कारण कोई मानव भगवान पद प्राप्त करता है वे मानव को उसकी सर्वोच्चता को प्राप्त कराते हैं। उदाहरण के रूप में भगवान पदवी प्राप्त करने वाले महामानव मर्यादा पुरुषोत्तम राम उन सभी सदगुणों, सद्भावों, विशिष्टताओं और आचरणों से ओतप्रोत हैं जिनसे वह अलौकिक और दिव्यात्मा बनते हैं। यह श्लोक ऐश्वर्यस्य समग्रस्य शौर्यस्य यशस: श्रिय:।। ज्ञानवैराग्य योश्चैव षष्णं भग इतीरणा।। यानी सम्पूर्ण ऐश्वर्य, शौर्य, यश, लक्ष्मी, ज्ञान और वैराग्य-ये छ: गुण ‘भग’ के कहे गये हैं। इसी ‘भग’ से भगवान् शब्द बना हुआ है। संत तुलसी ने व्यक्ति, परिवार, समाज, देश और विश्व स्तर पर मानव मूल्यों की महत्ता का वर्णन राम के माध्यम से किया है। एक सम्पूर्ण मानव राम, एक आदर्श मित्र राम, एक आदर्श पुत्र राम, एक आदर्श भाई राम, एक आदर्श पति राम, एक आदर्श शिष्य राम, एक पिता राम, एक आदर्श राजा राम और एक आदर्श साधक राम के रूप में तुलसी ने राम के गुणों का जो वर्णन किया है, वह प्रत्येक दृष्टि से सर्वोत्तम है। -ओम
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